युग-निर्माण योजना का ‘समाज सुधार’ विशेषांक

June 1965

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गुरुपूर्णिमा (13 जुलाई 1965) के अवसर पर युग-निर्माण योजना को अपना विशेषांक निकालना है। साधारण अंक 20 पृष्ठ का होता है पर वह 48 पृष्ठों का होगा। लगभग ढाई गुना। यों निकालना इसे जुलाई में ही चाहते थे पर हमारे जेष्ठ शिविर तथा समाज सुधार सम्मेलन में व्यस्त रहने के कारण उसे कुछ लेट करना पड़ेगा। 7 अगस्त का अंक विशेषांक निकल सकेगा।

इस अंक को समाज सुधार अंक बनाया जा रहा है। सामाजिक प्रगति पर व्यक्ति की प्रगति निर्भर है। सामाजिक वातावरण यदि अच्छा होगा तो उसमें रहने वाले व्यक्तियों को भी टकसाल में ढलने वाले सिक्कों की तरह वैसा ही ढलते चलना पड़ेगा। बुरी रिवाजों और बुरी परिस्थितियों से भरे हुए समाज में बुराइयों से भरे हुए निकृष्ट व्यक्ति ही उत्पन्न होते हैं। यदि वातावरण बदल दिया जाय तो उसकी छाप बचपन से ही पड़ना शुरू हो जाती है और उन्हीं संस्कारों में परिपोषित होते चलने के कारण मनुष्य का स्तर उन्हीं परम्पराओं के अनुरूप बन जाता है। नर भक्षी जंगली लोगों से लेकर, मल त्याग कर जल शुद्धि न करने वाले भीलों तक, गाड़ियाँ लुहारों से लेकर जुर्म करते जिन्दगी बिताने वाले कंजड़ों तक जो अगणित प्रकार की अव्यवस्थाएं फैली पड़ी हैं उनका मूल कारण उस समाज की प्रचलित परंपराएं ही हैं।

यह ठीक है कि मनस्वी व्यक्ति अपने मनोबल से परिस्थितियों को बदलने और परम्पराओं को ठुकरा कर नया मार्ग बनाने में समर्थ होते हैं पर ऐसे होते बिरले ही हैं। सर्वसाधारण में न तो इतना मनोबल होता है और न विवेक। वे जिस वातावरण में रहते हैं, जो कुछ देखते सुनते हैं, उसे ही सर्वोत्तम मान लेते हैं और उसी का अनुकरण करने लगते हैं। ऐसी दशा में यह नितान्त आवश्यक है कि मनुष्यों में श्रेष्ठता एवं सज्जनता उत्पन्न करने योग्य सामाजिक परिस्थितियाँ उत्पन्न की जायें। जब कभी यह परिस्थितियाँ बिगड़ जाती हैं तब उनका सुधारना आवश्यक होता है। आज वैसी अनिवार्य आवश्यकता सामने आ खड़ी हुई है। जिस समाज में हम रहते हैं उसे पिछले दो हजार वर्षों से अज्ञानांधकार युग में भटकना पड़ा है। फलस्वरूप इतनी विकृतियाँ सामने आई हैं कि उनके कारण समाज का ढर्रा अनुपयुक्त मार्ग पर लुढ़कने लगा है। इसे सुधारा ही जाना चाहिए। पर यह चंद व्यक्तियों को सुधार देने मात्र से संभव न होगा। इसके लिए सारा वातावरण ही बदलना पड़ेगा। समय-समय पर ऐसे परिवर्तन प्राचीनकाल में भी होते रहे हैं। आज भी वैसे ही समाज सुधार के-सामाजिक क्रान्ति के अभियान की आवश्यकता है। युग-निर्माण योजना के माध्यम से यही किया भी जा रहा है।

नैतिक क्रान्ति, बौद्धिक क्रान्ति वैयक्तिक हैं, उनका दृश्य स्वरूप, बाह्य कलेवर, व्यावहारिक प्रयोग सामाजिक क्रान्ति के रूप में ही हो सकता है। उसकी पृष्ठ भूमि में नैतिक एवं बौद्धिक परिवर्तन सन्निहित ही होगा इनके बिना सामाजिक क्रान्ति संभव ही न होगी। अस्तु यह मानना तो होगा कि सामाजिक क्रान्ति के माध्यम से हम नैतिक क्रान्ति एवं बौद्धिक क्रान्ति की आवश्यकता भी पूर्ण करते हैं। वर्तमान युग की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए 17,18,19 जून को परिवार के प्रबुद्ध कार्यकर्ताओं का सम्मेलन भी बुलाया गया है।

समाज सुधार अभियान में अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य को सम्मिलित होना है, इसलिए उसे आन्दोलन की आवश्यकता, उपयोगिता, स्वरूप, कार्यक्रम एवं प्रयोग के बारे में भी समुचित जानकारी प्राप्त कर ही लेनी चाहिए। अतएव युग-निर्माण योजना पाक्षिक का यह विशेषांक निकाला जाना निश्चित किया गया। कहना न होगा कि प्रस्तुतः अंक पाठकों को अभिनव जानकारी देगा और इनके सामने एक प्रेरणाप्रद, प्रकाश एवं ओजस्वी मार्ग दर्शन प्रस्तुत करेगा। कलेवर की दृष्टि से भी बड़े साइज के 48 पृष्ठ बहुत होते हैं। उसमें आवश्यक चित्रों का भी बाहुल्य रहेगा। पाठ्य सामग्री की उत्कृष्टता का अनुमान तो पाठक दो महीने बाद उसे देखकर स्वयं लगा लेंगे, अभी से कुछ कहना व्यर्थ है।

इस अंक में छपने वाली सामग्री पाठकों को ही जुटानी चाहिए। उन्हें अपने क्षेत्र की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए और निम्न बातों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखकर भेजने चाहिए। उसी सूचना के आधार पर सुव्यवस्थित लेख तैयार कर लिये जायेंगे।

(1) आपके क्षेत्र में किस-किस जाति में ऐसी क्या-क्या कुरीतियाँ प्रचलित हैं। उनके कारण क्या-क्या हानि होती हैं। इन हानियों के कुछ प्रामाणिक उदाहरण एवं घटनाएं भी लिखे।

(2) विशेषता विवाहों में तथा उससे आगे पीछे बरती जाने वाली कुरीतियों का उल्लेख करें। प्रथाएं हर बिरादरी में अलग-अलग प्रकार की होती हैं, इसलिए उनकी चर्चा भी उसी क्रम से की जानी चाहिये। इन कुरीतियों का शिकार बनकर जिन्हें कष्टकर उत्पीड़न सहने पड़े हों, ऐसी घटनाएं अवश्य लिखी जायें।

(3) इन कुरीतियों को मानने से जिन्होंने इनकार किया हो, और बहती हुई धारा से उलटे चलने का साहस दिखाया हो उनके साहस का विस्तृत विवरण लिखें।

(4) संगठित रूप से समाज सुधार के लिए जो प्रयत्न किये गये हों और उनमें जो सफलता मिली हो उसकी विस्तृत सूचना भेजें।

(5) बहुत दिन पहले आपके क्षेत्र में कौन-कौन-सी ऐसी उत्तम प्रथाएं प्रचलित थीं, जिनके कारण समाज को लाभ होता था। पर अब वे प्रथाएं लुप्त हो गईं।

(6) बहुत दिन पहले ऐसी कौन-कौन बुरी प्रथाएं उस क्षेत्र में प्रचलित थीं, जिनके कारण उन दिनों लोगों को बहुत कष्ट होता था, पर समयानुसार वे कुरीतियाँ अपनी अनुपयोगिता एवं लोक विरोध के कारण अपनी मौत मर गई।

(7) उपरोक्त प्रकार की घटनाओं से सम्बन्धित व्यक्तियों, के घटनाओं के फोटो भी यदि उपलब्ध हो सकें तो वह भी भेजे जायँ।

(8) अगले दिनों आप किन श्रेष्ठ परम्पराओं को समाज में प्रचलित करना पसंद करेंगे जो इन दिनों नहीं हैं। उस प्रचलन से लोगों को क्या लाभ होंगे?

(9) अपने संगठन के सदस्यों ने क्या कोई समाज सुधार संबंधी कार्य किये हैं? यदि किये हों तो उनका उल्लेख कीजिए।

(10) अगले दिनों आप लोग इस दिशा में क्या करने की योजना बना रहे हैं, और उसे किस प्रकार कार्य रूप में परिणित करेंगे।


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