स्वाध्याय सन्दोह - - जीवन का सदुपयोग कीजिए

January 1965

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समय का मूल्य समझिये-

हम लोग प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा करके जो समय खो दिया करते हैं, वह पहले तो सामान्य ही जान पड़ता है, पर यदि हम अपने जीवन के अंतिम भाग में पहुँच कर इस प्रकार के खोये समय का हिसाब लगायें, तो उसका विशाल परिणाम देखकर आश्चर्य होगा। जिन क्षणों को छोटा समझकर हम व्यर्थ खो देते हैं उन्हीं छोटे क्षणों को काम में लाकर अनेक व्यक्तियों ने बड़े-बड़े महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाए हैं। संसार में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं जिन्होंने इसी प्रकार प्रतिदिन दस-दस, बीस-बीस मिनट का समय बचाकर नई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया है, महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिख डाले हैं, या कोई कार्य कर दिखलाया है। अगर हम यह कहें कि संसार में जितने महापुरुष हुये हैं उनकी सफलता की कुँजी वास्तव में उनके समय के सदुपयोग में ही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। संसार के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति ऐसे भी हुए हैं जिनमें कोई विशेष प्रतिभा अथवा असाधारण जन्मजात गुण नहीं था तो भी वे अविश्रान्त परिश्रम तथा समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करके ही इतिहास में अपना नाम स्थायी कर गये हैं।

-जीवन संग्राम में विजय

अवसर न चूकिए-

जीवन में सिद्धि प्राप्त करनी हो तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। समय का सदुपयोग करना हमारे हाथ में है। बाजार में जाकर हम रुपये देकर कोई चीज खरीदते हैं। इस तरह हम उन रुपयों को गँवाते नहीं हैं, बल्कि वस्तु के रूप में वे हमारे पास ही बने रहते हैं। समय की भी यही बात है। समय का का सदुपयोग करके हमने यदि शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों की प्राप्ति की तो हमारा वह समय व्यर्थ नहीं गया, लेकिन शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों के रूप में हमारे ही पास है। जिन्होंने इस प्रकार समय का सदुपयोग किया है, उन्हें अपने जीवन में शान्ति, प्रसन्नता, धन्यता और कुतार्थता का अनुभव होता है। यही यथार्थ जीवन है। ऐसा जीवन बिताने वाले को मृत्यु का भय भी नहीं लगेगा। उस अवसर पर भी वह शान्त और स्थिर रह सकेगा। जिसने मानव-जीवन का महत्व समझकर संयम का पालन करके मानवता प्राप्त की है, वह कभी चिन्ताग्रस्त या बेचैन नहीं रहता।

मनुष्य को धन, विद्या, सत्ता, सामर्थ्य आदि का अनेक प्रकार का मद चढ़ता है। लेकिन उच्च तथा उदात्त जीवन की आकाँक्षा रखने वाला मनुष्य भिन्न प्रकार के आत्म गौरव का अनुभव करता है। वह कठिन प्रसंगों में, मृत्यु के समय भी शान्त रह सकता है। ऐसे प्रसंगों में उसका तेज बढ़ता है। यदि वह ऐसे अवसर पर निर्बल बनता है तो उसके आत्म-विश्वास में कमी समझी जायेगी। शूर का तेज रण में जाग्रत होता है, पक्षी को आकाश का भय नहीं होता, सिंह को जंगल का भय नहीं लगता। मछली पानी से नहीं डरती। इसी तरह सज्जन को संकट का भय नहीं होता। उसमें भी वह शांति का अनुभव करता है। मृत्यु के समय भी शान्ति और प्रसन्नता का भाव रह सके तभी जीवन सार्थक हुआ ऐसा कह सकते हैं।

-विचार दर्शन

बूँद-बूँद करके घड़ा भर जाता है-

छोटे से छोटे काम को भी निर्लिप्त भाव से मन लगा कर करने में न केवल सुख ही मिलता है वरन् काम करने की बहुत बड़ी ताकत भी प्राप्त होती है। जिस प्रकार बूँद-बूँद करके घड़ा भर जाता है, कण-कण मिल कर नदी बन जाती है, उसी प्रकार हमारा समस्त जीवन भी छोटी-छोटी बातों के मिलने से बना है। ईंट पर ईंट रखने और उन्हें गुनिया द्वारा ठीक प्रकार से जमा देने पर अन्त में एक सुन्दर मकान तैयार हो जाता है। छोटे-छोटे से मिलकर ही बड़ा बनता है। छोटा बड़े का गुलाम नहीं है वरन् उसका मार्गदर्शक तथा स्वामी है। बच्चा ही मनुष्य का बाप है। स्वार्थी और घमण्डी लोग बड़ा बनना तो चाहते हैं, कोई बड़ा काम भी करना चाहते है किन्तु छोटे-छोटे कामों को टालते जाते हैं, उन्हें तुच्छ समझते हैं। वे उनको साधारण और छोटा समझकर उनमें हाथ लगाने में हीनता अनुभव करते हैं। ऐसे व्यक्तियों में चूँकि नम्रता नहीं होती इसीलिए उनमें वास्तविक बुद्धि और योग्यता का भी अभाव होता है। वे तेजी से भूलकर ऐसे कामों में हाथ डाल देते है जिनको पूरा करने की न उनमें शक्ति है, न योग्यता।

बड़ा व्यक्ति इसीलिये बड़ा बन सका है कि उसने छोटे-छोटे कामों को दिल लगाकर किया है। अपने स्वार्थ, अभिमान, नाम और वाहवाही की चिन्ता नहीं की है। उसने साँसारिक ऐश्वर्य और प्रशंसा को कभी नहीं ढूँढ़ा, वरन् सत्य, निष्ठा, श्रद्धा, सत्यता, निर्लिप्तता, भक्ति और समानता के भाव से ऐसे कामों को पूरा किया है, जिनके करने में न तो उसकी प्रशंसा ही हुई, न कोई शाबाशी ही मिली और न कोई पारितोषिक ही प्राप्त हुआ। ऐसा व्यक्ति कोई मतलब न रखकर सत्य का पक्ष लेता है और नित्यप्रति के साधारण कर्तव्यों को पूरा करता हुआ अज्ञात प्रेरणा से अच्छों से अच्छा बनता चला जाता है और अन्त में स्वयमेव ही महानता की चोटी पर जा पहुँचता है। महानता प्राप्त करने के लिये सदैव बड़े से बड़ा काम ही करने की आवश्यकता नहीं हैं वरन् साधारण कर्तव्यों को भी ईमानदारी से पूरा करने की आवश्यकता है। यदि काम में स्वार्थपरता की भावना न आने पाये तो प्रशंसा स्वयं चरण चूमती है।

- आनन्द पथ

समय ही हमारी सच्ची सम्पत्ति है-

यदि संसार में कोई ऐसा पदार्थ है जो मनुष्य के हिस्से में बहुत थोड़ा आया है और जिसका सबसे अधिक अपव्यय और नाश होता है, तो वह समय ही है। जब हम इस बात का ध्यान करते हैं कि जीवन में हमें कितना कम समय मिला है, तो हमें उसके अपव्यय का बड़ा आश्चर्य और खेद होता है। और बातों में हम लोग बहुत कुछ सावधानी से काम लेते हैं, पर समय को नष्ट करने की चिन्ता बहुत कम करते हैं। यदि आप अपने समय के उचित या अनुचित उपयोग या व्यर्थ उपयोग का हिसाब लगावें तो आपको अपनी भूल और असावधानी पर पश्चाताप ही करना पड़ेगा।

मनुष्य जब समय की उपयोगिता समझने लगता है तो उसमें महत्ता, योग्यता आदि सद्गुणों की वृद्धि होने लगती है। मनुष्य में चाहे अन्य कितने ही गुण क्यों न हो, पर जब तक उसमें समय के सदुपयोग करने का गुण न होगा, तब तक वह अपने जीवन को सार्थक नहीं बना सकता और न उपस्थित होने वाले अवसरों से लाभ उठा सकता है।

-सफलता और उसकी साधना

छोटे कामों से बड़प्पन की जाँच होती है-

दूसरों को सहायता देने वालों को एक दिव्य सन्तोष और सुख मिलता है। उनके शरीर में स्फूर्ति आ जाती है, वाणी में निश्चयात्मक भावना और स्पष्टता समा जाती है। उनकी चेष्टाएँ एक स्थिर आदर्श का संकेत करती हैं, उसकी हँसी में भी एक गम्भीरता की झलक जान पड़ती है। उनके चेहरे पर संसार के सुख-दुख, छाया, प्रकाशमय जीवन का सच्चा चित्र खिंच जाता है, जीवन का सम्पूर्ण सौंदर्य उनके दिल पर चित्र की तरह चित्रित हो जाता है।

निःस्वार्थ, निराभिमानी व्यक्ति सबका प्रिय होता है। उसे सब लोग अपने सुख का भागी बनाना चाहते हैं। उसकी सम्मति पूछते हैं और सम्मति का सम्मान करते हैं जब वह घर से बाहर जाता है तो सब लोग उसे बुलाते हैं, उसका स्वागत करते हैं, उसके विपरीत स्वार्थी से सब डरते है। यह कभी रास्ते में मिल जाय तो बचकर निकल जाते हैं। उसके बुलाने पर भी लोग पास नहीं जाते। उसकी सम्मति को कोई पूछता। वह एक बहिष्कृत व्यक्ति के समान अकेला जाता है। आप इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों में कौन सा बनना चाहते हैं?

हमें छोटे कामों में ही स्वार्थ को छोड़कर परार्थ की भावना बनानी चाहिये। अच्छे कामों का प्रारम्भ अपने निकट से ही किया जा सकता है, दूर जाने की जरूरत नहीं। मनुष्य का बड़प्पन छोटे कामों में ही जाँचा जाता है। दैनिक कार्यों में ही मनुष्य बड़े काम कर सकता है।

- चरित्र निर्माण


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