मुझे रुकना नहीं (Kavita)

January 1965

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मिल गया है पथ मुझे रुकना नहीं जो जानता है,

जो न राही को चलाता आप चलना ठानता है।

साथ चलता है कि जिसके क्रान्ति का तूफान भारी,

जो बदल देता जगत को हाथ में ले शक्ति सारी।

हैं हुये बलिदान कितने रक्तरंजित राह है यह,

जो सदा विश्वास को दृढ़तर बनाती चाह है यह।

हार हो कितनी कभी आशा न मन की टूटती है,

आँधियों का वेग लेकर जो थकावट लूटती है।

-रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’



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