कुटिल कुनीति (Kavita)

January 1965

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दुर्भाव, दम्भ, दुर्गुण-दुर्दुग बिदारें,

कुटिल कुनीति को बार-बार धिक्कारें।

समता, शुचिता, नैतिकता नित अपनायें,

हों स्वस्थ सुखी, सब स्नेह मेह बरसायें।

भ्रष्टाचारों का घोर विरोध करें हम,

दीनों दुखियों के दारुण दुःख हरें हम।

प्यारा ‘स्वराज्य’ सुखमय ‘सुराज्य’ बन जाये,

भगवान भि ता भगे एकता आये।

- हरिशंकर शर्मा


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