मनुष्य में अन्य सब प्राणियों से एक विशेषता यह है कि वह वाणी द्वारा अपनी अनुभूति और भावनाओं को अच्छी तरह प्रकट कर दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। यह परमात्मा की मनुष्य को सबसे बड़ी देन है। पर हम देखते हैं कि आजकल लोग इस अमूल्य निधि का नित्य दुरुपयोग कर संसार में अनेक प्रकार के कष्ट, दुःख, अपमान, निन्दा आदि सहन कर रहे हैं तथा अपने जीवन को भी गर्हित और पतित बनाते जा रहे है। हमें आज इसी विषय पर गम्भीरतापूर्वक सोचना है कि हम अपनी वाणी के दुरुपयोग को रोककर उसे किस तरह सुसंस्कृत, सुमंगलकारी, सर्वकल्याणकारी बना सके, और छल, कपट, पीड़ा, और असन्तोष के स्थान पर स्वर्गीय आनन्द और उल्लासपूर्ण वातावरण का निर्माण कर सकें।
शास्त्रों में शब्द को ब्रह्मा की उपमा दी गई है। वास्तव में शब्दों में बड़ी सामर्थ्य हैं। हम जब किसी शब्द का उच्चारण करते है, तो उनका प्रभाव न केवल हमारे गुप्त मन पर अपितु सारे संसार पर पड़ता है, क्योंकि शब्द का कभी लोप नहीं होता, प्रत्येक शब्द वायुमण्डल में गूँजता रहता है और वह समानधर्मी व्यक्ति के गुप्त मन से टकराकर उसमें तदनुकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। यह अनुभव सिद्ध बात है कि जिसके प्रति हम शब्दों द्वारा अच्छी भावना प्रकट करते हैं, वह व्यक्ति अच्छी अनजाने ही हमारा प्रेमी और शुभ चिन्तक बन जाता है। इसके विपरीत जिसके बारे में हमारे विचार या शब्द कलुषित होते हैं, वे अनायास ही हमारे अहित चिन्तक, शत्रु बन जाते हैं। अर्थात् शुभ एवं अमंगल वाणी से आप्तजनों एवं सर्वसाधारण समाज में सद्भावना का प्रचार होता है जिससे समाज का वातावरण आनन्द और उल्लासपूर्ण बनता है।
अच्छे और बुरे शब्दों का मनुष्य के जीवन पर बड़ा गहरा असर पड़ता है। अच्छे शब्द बोलने वाले व्यक्ति प्रायः निर्भय, प्रशान्त, प्रफुल्लित एवं आनन्दित पाये जाते हैं जबकि कटु एवं बुरे शब्दों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति क्रोधी, ईर्ष्यालु, दम्भी, असन्तुष्ट एवं कर्कश स्वभाव के होते है।
बुरे एवं गन्दे शब्दों के उच्चारण का अबोध बालकों पर बड़ा बुरा असर पड़ता है, जिससे उनके चरित्र का क्रमशः पतन होता जाता है। क्योंकि छोटे बालक जैसे शब्द बड़ों के मुँह से सुनते हैं, वे उन्हीं का बिना अर्थ समझे बूझे अनुकरण करने लगते हैं। परिणामस्वरूप उनके गुप्त मन में उन बुरे शब्दों के संस्कार बीज रूप से जम जाते हैं, जो बड़े होने पर उनको पतन के गहरे गर्त में गिरा देते हैं। आजकल बालकों में सिनेमा के अश्लील एवं गन्दे गीतों को गुनगुनाने की प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह बड़ी ही अनिष्टकर बात है। आगे चलकर इस प्रकार के अश्लील भाव संस्कार के रूप में उनके मन को कलुषित कर उनके जीवन को ही मटियामेट करने का सामर्थ्य रखते हैं।
इसके विपरीत सुमधुर, शान्त एवं पवित्र शब्दों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति अपने शब्दों द्वारा न केवल अपने विचारों, भावनाओं एवं संस्कारों को परिमार्जित करते हैं अपितु अन्य अनेक व्यक्तियों को प्रभावित कर उनके जीवन में भी नयी स्फूर्ति नयी प्रेरणा एवं नया मोड़ उत्पन्न करते हैं। अच्छे लेखों एवं कविताओं से अनेक व्यक्तियों को सत्प्रेरणायें मिली हैं और उनका जीवन परिवर्तन हुआ है, इससे शब्दों के अतुल सामर्थ्य की कल्पना की जा सकती है।
हमारे मनस्वी ऋषियों ने मन्त्र शक्ति द्वारा अनेक आश्चर्यजनक कार्य सम्पन्न किये हैं। मन्त्र आखिर सशक्त तेजस्वी एवं गूढ़ शब्दों की ध्वनियाँ ही तो हैं, पर इन शब्दों से न केवल मानसिक वरन् भौतिक जगत में भारी उलटफेर हुए हैं। इसका एकमात्र कारण मन्त्रों के पीछे ऋषियों की अनुभव जन्य ज्ञान-युक्त वाणी की प्रबल शक्ति है।
मन्त्रों के नियमित और श्रद्धापूर्वक जप से नयी शक्ति और अनेक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि उत्तम एवं पवित्र शब्दों में महान गुणकारी शक्ति समाई रहती है और उसके द्वारा एक ऐसा अदृश्य वातावरण पैदा होता है, जो जीवन की दिशा को ही मोड़ देता है। आप जिस प्रकार के शब्द का उच्चारण करेंगे, वैसे ही भाव आपके मन और शरीर के अंग और प्रत्यंगों में फैल जायेंगे और आपकी आत्मा भी उसी उच्च या निम्न स्थिति में आ जायेगी।
तात्पर्य, हमारा प्रत्येक शब्द हमारे अन्तःकरण पर एक अमिट गुप्त छाप छोड़ जाता है, जो हमारे स्वभाव और चरित्र के निर्माण में योग देता है। हमारे मनीषियों और उपनिषदों ने प्रत्येक शब्द के प्रति अत्यन्त सावधान रहने का संकेत किया है क्योंकि शब्दों में अतुल सामर्थ्य है। जो काम हम वर्षों में नहीं कर पाते उसे मनस्वी और पुरुषार्थी व्यक्ति अपने चुने हुए शब्दों की शक्ति से अल्पावधि में सम्पन्न कर डालते हैं। इसका कारण भी यही है। अतएव हमें शब्दों के इस असीम सामर्थ्य का ध्यान रखते हुए वाणी को सदा मधुर, पवित्र और हितकारी बनाये रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
तैत्तिरीय उपनिषद् में कहा गया है-
‘जिह्वा में मधुमत्तमा’ अर्थात् हे ईश्वर! मेरी यह जिह्वा सदा मधुर वचन बोले। मैं कभी कटु, कर्कश और कुवचन द्वारा अपनी वाणी को कलंकित न करूं। अतः हम सदा अपने जीवन में, घर में, समाज में, प्रत्येक व्यवहार के समय ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करें जो मधुर, शिष्ट, उत्साहप्रद एवं हितकारी हों,। गोस्वामी तुलसीदास जी ने क्या ही अच्छा कहा है-
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण एक मन्त्र है, तज दे वचन कठोर॥
मीठे और हितकारी वचन वास्तव में ऐसा वशीकरण मन्त्र हैं, जिससे हमारे इष्ट मित्र, स्वजन परिजन ही नहीं, सारे संसार के लोग हमारी ओर आकर्षित होकर हम पर अपना स्नेह लुटा सकते हैं। फिर क्यों व्यर्थ ही हम कटु, अभद्र एवं अशिष्ट शब्दों के उच्चारण द्वारा अपने चारों ओर के वातावरण को कलुषित और अमंगलजनक बनाकर अपने तथा दूसरों के जीवन को कष्टप्रद एवं अशान्त बनाने की चेष्टा करें।
मन में सदा अच्छे संकल्प करते रहिये और वाणी से सदा मधुर एवं हितकारी वचन ही बोलिए। अपने मन को हमेशा सत्संकल्पपूर्ण वाणी से सम्बोधित करते हुए उसे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहें। मन को एकाग्र और शान्त कर एकान्त में ऐसे शब्दों का उच्चारण कीजिए जिससे उसे नई चेतना और नयी प्रेरणा मिले। जैसे कहिये कि - “मेरा मन असीम शक्ति का भण्डार है, मैं उससे अपनी इच्छानुकूल कार्य ले सकता हूँ। मेरा मन इन्द्रियों का दास नहीं, उनका स्वामी है। वह इन्द्रियों को विषयों की ओर कदापि नहीं बढ़ने देगा। मन इन्द्रियों का स्वामी है पर मैं मन का भी स्वामी हूँ अर्थात् मन पूर्णतः मेरे वश में है। मैं उसे हर प्रलोभन से बचाये रखने की क्षमता रखता हूँ और उसे कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर चलाने की भी मुझ में पूर्ण शक्ति है। सारी इन्द्रियाँ और मन मेरे आज्ञाकारी हैं और मैं इन्हें हरदम ठीक रास्ते पर चलने की ही प्रेरणा दिया करता हूँ।”
आप इस प्रकार के आत्मनिर्देशपूर्ण शब्दों द्वारा अपनी मानसिक शक्ति और आत्मबल को पर्याप्त मात्रा में बढ़ाकर जीवन को पवित्र, सुखी और सम्पन्न बना सकते हैं।
शब्द अमृत और विष का काम करते हैं। जो वाणी मधुर तथा हितकर होगी वही अमृतमय कहलायेगी। इसके विपरीत जिस वाणी में कठोरता अहंमन्यता, उपहास, कटुता, द्वेषभाव, छिछोरापन आदि होगा वह अपने और दूसरों के लिए भी विषमय एवं हानिकारक होगी।
वाणी का दुरुपयोग कभी न किया जाय। हो सके तो सप्ताह में या महीने में एक दिन का मौन रखें और उस दिन केवल आत्मचिन्तन, सच्चिन्तन में मन को लगायें। मौन में बड़ी शक्ति है जो व्यक्ति वाणी का संयम कर यथासम्भव मौन का पालन करता है, उसकी वाणी में बड़ा रस आता है।