प्रतिनिधि फार्म इसी महीने आ जाय

January 1965

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इस अंक के अंतिम पृष्ठों पर प्रतिनिधियों की नियुक्ति संबंधी फार्म लगा है। जहाँ से अभी उसे भर कर भेजा न गया हो, वहाँ के सदस्य मिल-जुलकर विचार करें और इस प्रतिनिधि फार्म को भर कर इसी महीने भेज दें। अखण्ड-ज्योति का पच्चीसवाँ वर्ष-रजत-जयन्ती वर्ष इसी बसन्त पंचमी को समाप्त होकर 26वाँ लगेगा। इस अवधि तक प्रतिनिधियों की नियुक्ति का कार्य सम्पन्न हो जाना चाहिए।

जहाँ एक भी प्रति अखण्ड-ज्योति की पहुँचती है वहाँ अपना एक प्रतिनिधि तो होना ही चाहिए। अखण्ड-ज्योति के प्रत्येक सदस्य को अपने को किसी अखबार का ग्राहक मात्र नहीं समझना चाहिए, वरन् इस युग की ऐतिहासिक घटना-’युग-निर्माण योजना’ का सदस्य मानना चाहिए। एवं इस सदस्यता के साथ ही जो उत्तरदायित्व उसके कन्धे पर आते हैं उनका भी अनुभव करना चाहिए।

परिवार के हर सदस्य के कन्धे पर यह सुनिश्चित जिम्मेदारी सौंपी जा रही है कि विचार क्रान्ति के महान् अभियान में उसे हमारा साथी सहयोगी बनना चाहिए। अखण्ड-ज्योति तथा युग-निर्माण पत्रिकाओं के माध्यम से दूर रहने को इस प्रकार परिवर्तित करने एवं आवर्धक प्रयत्न किया जा रहा है कि जो व्यक्ति इन चारों से प्रभावित हो वह नव-निर्माण के कार्य में भी उपयोगी सिद्ध हो सके। विचार-सम्पत्ति से रहित व्यक्ति उत्साह में कुछ काम कर भी जायें तो उनका वह आवेश क्षणिक होता है, अस्तु हमारा सबसे पहला, सबसे महत्वपूर्ण सबसे कठिन कार्य यह है कि नव-निर्माण की विचार धारा से अधिक लोगों को प्रभावित करके बौद्धिक क्रान्ति की भूमिका तैयार कर लें।

हर प्रतिनिधि को अपने जिम्मेदार व्यक्तियों तक युग-निर्माण की विचारधारा पहुँचाते रहने का उत्तरदायित्व उठाना चाहिए। अपनी पत्रिकाएँ कम से कम दस व्यक्तियों को पढ़ानी या सुनानी चाहिए और फिर समय-समय पर उनसे विचार विमर्श करने का अवसर निकाल कर वे धारणायें परिपक्व कराने का प्रयत्न करना चाहिए, जो पत्रिकाओं के माध्यम से निरन्तर भेजी जाया करती हैं। संगठन में नियमितता बना लेनी चाहिए। शाखा कार्यालय के लिए हर जगह स्थान नियत हो जाने चाहिए जहाँ सदस्यगण एक क्लब की तरह एकत्रित होकर परस्पर विचार विनिमय किया करें। शाखा का पुस्तकालय, वाचनालय भी केन्द्र पर हो जहाँ से नव-निर्माण का साहित्य सदस्यगण लेते और वापिस करते हैं

जन्मदिन मानने की प्रथा इस वर्ष हर जगह चल पड़नी चाहिए। जहाँ संभव हो वहाँ विवाहोत्सव मनाये जाया करें। षोडश संस्कारों को ठीक तरह मनाने की प्रथा अब अपने परिवारों में चल ही पड़नी चाहिए। इन माध्यमों से हर घर में नव-निर्माण की प्रेरणाओं का प्रकाश प्रवेश करेगा। त्यौहारों को सामूहिक रूप से मनाया जाया करें। आरम्भ में अपने सदस्य ही एकत्रित हों तो हर्ज नहीं, बात उपयोगी होगी तो उसे जनता स्वतः अपनाने लगेगी। पुरानी सत्यनारायण कथा का थोड़ा परिष्कार करके उसे बहुत ही प्रेरणाप्रद और शिक्षाप्रद बना दिया गया है उसमें युग-निर्माण प्रेरणा के समस्त बीज समाविष्ट कर दिये गये हैं। इस कथा को हर जगह प्रचलित किया जाना चाहिए। शाखायें अपना वार्षिकोत्सव गीता सप्ताह आयोजन के साथ मनाया करें। सौ, दो सौ रुपये के खर्च में एक पंच कुण्डी गायत्री यज्ञ और सात दिन तक एक प्रकार का शिक्षण शिविर होने का लाभ ऐसा है जिसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए।

यह कार्य विचार क्रान्ति के बीजारोपण के लिए है। उपरोक्त माध्यमों से छोटे-छोटे जन-समूह एकत्रित करने और धार्मिक श्रद्धा को रचनात्मक दिशा में मोड़ने का अवसर प्राप्त हो सकता है। इसके बिना जन-जागरण का उद्देश्य पूरा न होगा। सभाओं, भाषणों एवं लेखों से आवेश तो उत्पन्न होता है, जानकारी तो मिलती है पर ठोस कार्य छोटी विचार गोष्ठियों में ही होता है। संस्कार, त्यौहार, जन्मदिन, वार्षिकोत्सव आदि आयोजनों से यही व्यवस्था बनती है। अतएव इनका महत्व सामान्य नहीं असामान्य है। इन प्रयोजनों को ठीक तरह पूरा कर सकने वाले अनुभवी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ेगी। उनका प्रशिक्षण गायत्री तपोभूमि में करने की व्यवस्था कर दी गयी है। एक महीने के लिए हर जगह से कम से कम एक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिए आना चाहिए। वक्तृत्व संगीत आदि का जिन्हें अभ्यास भी यहाँ करना हो उन्हें चार महीने रहने की तैयारी करके आना चाहिए।

संगठन एवं विचारों गोष्ठियों की व्यवस्था चल पड़ने का काम जैसे ही आरम्भ हो गया, जैसे ही बौद्धिक क्रान्ति का यह क्रम ठीक प्रकार चल पड़ा वैसे ही सामाजिक एवं नैतिक क्रान्ति का मूर्त रूप सामने खड़ा होने में विलम्ब न लगेगा। भूमि की तैयारी ठीक हो जाने पर बोये हुए बीज चार सप्ताहों में हरियाली का रूप धारण कर लेते हैं। कठिन कार्य तो भूमि की तैयारी का ही होता है। हमें पहली मंजिल में वहीं तो पूरा करना है।

विवाहों में होने वाला अपव्यय हमारे समाज के लिए सबसे अधिक कष्टकर, सबसे अधिक अनैतिक, सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण है। इस पागलपन को जितनी जल्दी मिटाया जा सके उतना ही अच्छा है। हमारे अगले कदम इस पागलपन का इलाज करने के लिए ही उठने वाले है। पर इलाज से पूर्व चिकित्सा के आवश्यक उपकरण भी होने चाहिए। संगठन और प्रचार के माध्यमों को ठीक कर लेने से सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन का, उनसे लड़ पाने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। हम हिन्दू-जाति को विवेकशील लोगों की तरह सोचने और करने के अभ्यासी बनते हुए देखकर ही मरना चाहेंगे। इसके बाद तीसरा कदम नैतिक क्राँति का है। हर व्यक्ति सज्जनता, क्षमता और मानवता के आदर्शों के अनुकूल जीवन जीने के लिए विवश हो ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करना नैतिक क्रान्ति का स्वरूप होगा। चारों ओर भ्रष्टाचार का वातावरण फैला हो तो उपदेशात्मक सदाचार एक सस्ते मनोरंजन की बात बनकर रह जाती है। आज ऐसी ही मखौलबाजी हो रही है। हर बेईमान आदमी दूसरों को ईमानदारी का उपदेश देता है। इससे कुछ भी प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं है।

हमें इस प्रकार का वातावरण बनाना पड़ेगा, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी पड़ेंगी, इतना प्रबल लोकमत जागृत करना पड़ेगा, जन-साधारण की सुरुचि को इतना विकसित करना पड़ेगा कि किसी बेईमान आदमी को एक कदम उठा सकना असंभव हो जाय। ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न किये बिना सदाचार-भ्रष्टाचार की बहस का न कोई मूल्य है और न कोई महत्व। दहेज माँगने वालों का मुँह काला होने की तरह अनैतिकता बरतने वालों का जीवित रहना असंभव हो जाने की परिस्थितियाँ उत्पन्न करने लिए हमें रचनात्मक कार्य करने होंगे।

इन सब कार्यों में योगदान देने के लिए हमारे प्रतिनिधियों और उत्तराधिकारियों को कटिबद्ध रहना होगा। योगदान भले ही कम हो, पर पूर्ण निष्क्रिय उन्हें नहीं रहना होगा। इस मार्ग पर कदम उठाने पर उन्हें क्या मिलेगा? क्या लाभ होगा? यह अभी न पूछा जाय। समय ही बताएगा कि उन्हें, क्या मिला। हमें सच्चे अध्यात्म का अवलंबन करने के कारण ही कुछ मिला है। जो मिला है, उस पर हमें संतोष और गर्व है। अपने प्रत्येक प्रतिनिधि को हम विश्वास दिला सकते है कि हमारी तरह उन्हें भी बहुत मिलेगा। और वह ऐसा होगा जिस पर वे हमारी ही तरह गर्व ओर संतोष कर सकेंगे। उत्तराधिकार की यही हमारी पूँजी तो उन्हें मिलने वाली है। ईश्वर के उत्तराधिकार पाने का प्रयत्न करने वाले ईश्वर तुल्य बन जाते हैं तो हमारे उत्तराधिकारी बनने का प्रयत्न करने वाले कम से कम हम सरीखे तो सहज ही बन सकते हैं।

प्रतिनिधित्व के फार्म भर कर प्रत्येक स्थान से इसी महीने आ जाने की यहाँ उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा की जायेगी।

*समाप्त*


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