रुकें कभी नहीं चरण!
अपार हिम-शिखिर सदैव पंथ पर अड़ा रहे, अथाह सिन्धु मुक्त राह रोक के पड़ा रहे, बनी रहे परन्तु साधना पुनीत आमरण।
न फूल माँग किंतु भय कभी न मान शूल से, छिपा न तू भविष्य शून्य भाग्य के दुकूल से,
सदैव शक्तिमान ने किया है भूमि का वरण।
पुकार भानु कह रहा प्रभात है, प्रकाश है, नवीन राह, प्रेरणा नई, नया प्रयास है, नवीन विश्व का नवीन कुम्भकार कर सृजन।
रुके कभी नहीं चरण!!
- विद्यावती मिश्र