उठो फूट के पात्र को फोड़ डालो,
अभी भेद की शृंखला तोड़ डालो,
भटकते दिलों को पुनः जोड़ डालो,
समय की प्रबल धार को मोड़ डालो,
विषैली विषमता मिटाते चलो तुम।
सभी को गले से लगाते चलो तुम॥
स्वयं जाग कर दूसरों को जगा दो,
अभी नाव को तुम किनारे लगा दो,
उठो इस धरा को गगन में उठा दो,
नहीं तो गगन ही धरा पर झुका दो,
नयी नींव खोदो नये घर बनाओ।
नई रागिनी में नये गीत गाओ॥
- उदयभानु ‘हंस’