वाणी का दुरुपयोग मत कीजिए

December 1964

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विश्व का संचालन करने वाली सार्वभौम शक्तियों का स्वर कभी सुनाई नहीं पड़ता और वे चुपचाप अपना कार्य करती रहती हैं, संसार में ऋतुयें आती हैं, मौसम बदलते हैं, ग्रह नक्षत्र अपनी-अपनी परिधि में चक्कर लगाते रहते हैं। सृजन पोषण नाश की लीला होती रहती है। संसार में अनेकों उथल-पुथल हलचलें होती हैं, किन्तु जिस शक्ति की प्रेरणा से यह सब होता रहता है उसका स्वर कभी सुनाई नहीं देता।

इंजन को गति देने वाली भाप चुपचाप बड़ी मुस्तैदी के साथ अपना काम करती है। लम्बी चौड़ी भारी भरकम रेलगाड़ी को मंजिल तक पहुँचाती है किन्तु उसकी आवाज कभी नहीं सुनाई पड़ती। व्यर्थ में बाहर निकलने वाली भाप अधिक शोर मचाती है।

मौन में अजेय शक्ति है। मौन से समस्त शक्तियों का केन्द्रीय करण होता है। जीवन के बाह्य पटल पर यत्र-तत्र बिखेरी हुई जीवनी-शक्ति मौन के बाँध में जब एकत्रित करली जाती है तो वह उसी तरह शक्ति शाली, घनीभूत हो जाती है जैसे बाँध में रोकी गई नदी। शक्ति और क्षमतायें सदैव मौन की गोद में ही पलती हैं। संसार के महापुरुषों ने जो भी महत्वपूर्ण काम किए हैं वे सब ठण्डे दिल और ठण्डे दिमाग से ही सम्पन्न हुए हैं। किसी भी महान् कार्य के सम्पादन के लिए समस्त अन्तर एवं बाह्य प्रवृत्तियों को एकत्रित करके उन्हें लक्ष्य पर लगाना पड़ता है। महत्वपूर्ण कार्य मौन से ही सम्भव होता है।

भौतिक विज्ञान का नियम है, जो वस्तु या जिस मशीन के पुर्जों में संघर्ष जितना कम होगा, वे जितनी समस्वरता से कार्य करेंगे उतनी ही वह मशीन टिकाऊ एवं शक्ति शाली होगी। मौन भी मनुष्य के जीवन में समस्वरता प्रदान कर उसे अधिक टिकाऊ प्रभावशाली महत्वपूर्ण बना देता है। जिस मनुष्य के अन्तर बाह्य जीवन में और आदर्शों में पर्याप्त सामञ्जस्य होगा, किसी तरह का संघर्ष, गतिरोध न होगा, वह व्यक्ति महत्वपूर्ण, शक्ति शाली सिद्ध होगा और सन्तुलित होगा। यह सब मौन की ही देन है।

मौन से जहाँ शक्ति , प्रवृत्तियों और मन की गति का नियन्त्रण होता है वहाँ स्वास्थ्य के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण वरदान है। मौन से मनुष्य के हृदय, मस्तिष्क स्नायु संस्थान और शरीर की पेशियाँ पर्याप्त विश्राम प्राप्त करती हैं। किसी तरह का तनाव दबाव न होने से वे तरोताजा कार्यक्षम एवं शक्ति शाली बने रहते हैं। जिस तरह विश्राम निद्रा आदि से शरीर और मन पर होने वाला तनाव दूर होता है उसी तरह मौन से मन, मस्तिष्क, शरीर आदि को पर्याप्त विश्राम मिलता है और उनमें यह शक्ति , स्फूर्ति तथा सजीवता बनी रहती है।

आध्यात्मिक विकास के लिए मौन को महत्वपूर्ण साधना माना गया है। समस्त वृत्तियों को एकाग्र करके जीवन की गति में सामञ्जस्य एवं समस्वरता प्राप्त कर जब मनुष्य चेतना की गहन अन्तरात्मा में प्रवेश करता है तो एक दिन वह विराट की उस परमसत्ता का साक्षात्कार करता है जिसे योगी, तपस्वी, मोक्षार्थी श्रेयार्थी सभी अपना लक्ष्य बनाकर कठिन साधनायें करते हैं। मौन मनुष्य के समक्ष जीवन, संसार और प्रकृति के रहस्यों को एक-एक कर खोल देता है। मौन की गति सर्वत्र ही होती है। इस तरह वह शीघ्र ही समस्त की अनुभूति, दर्शन प्राप्त कर लेता है। मौन से दुष्प्रवृत्तियों का संयम होकर शील सदाचार, सादगी, सौजन्यता, सदाशयता जैसे महत्वपूर्ण सद्गुणों की प्राप्ति होती है। इस तरह मौन की साधना से मनुष्य का अन्तर-बाह्य जीवन दिव्य बन जाता है।

अधिकाँश महत्वपूर्ण गम्भीर प्रश्नों का समाधान मौन से होता है क्योंकि मौन की अवस्था में मनुष्य को आत्मा की वाणी सुनाई पड़ती है। मुक्त चेतना के प्रतिबिम्ब में जब प्रश्न का समाधान निकल कर आता है तो उससे मनुष्य को सन्तोष प्राप्त होता है। मौन की स्थिति में मनुष्य को प्रकृति और विश्व- चेतना का स्पन्दन सुनाई देता है जिसमें वे सत् चित् आनन्द की मधुर ध्वनि सुन कृतार्थ हो जाते हैं, फिर और कुछ भी सुनने को शेष नहीं रह जाता।

मौन से वाणी की शक्ति प्रबल होती है। शाप और वरदान इसी शक्ति शाली वाणी के रहस्य हैं। नियमानुसार कोई भी शक्ति व्यय से जितनी रोकी जायगी उतनी ही अभ्यस्त और शक्ति शाली बन जायगी। अन्धे व्यक्तियों को देखा जाता है कि उनकी प्रज्ञा मेधा बड़ी तीव्र होती है। क्योंकि नेत्रों से मनुष्य की बहुत कुछ मानसिक शक्ति नष्ट होती रहती है। गान्धारी ने जीवन भर आँखों से पट्टी बाँधी रखी। जब दुर्योधन के शरीर पर जहाँ भी उसकी दृष्टि पड़ी वह वज्रवत मजबूत बन गया। यही बात वाणी के सम्बन्ध में भी लागू होती है। सदैव मौन रहकर चिन्तन-मनन करने वाले ऋषि महात्माओं के आशीर्वाद वरदान, का सत्य इसी मौन के निहित में रहा है। वाणी का संयम मौन वाणी में ओज, तेज, शक्ति , चैतन्य भर देता है।

दिन भर बकझक करते रहना, गप्पे लड़ाना अनावश्यक बोलते रहना, अपनी प्रवृत्तियों को नाना दिशाओं में स्वच्छन्द विचरण करने देना अपनी शक्ति को नष्ट करना है। अनावश्यक बोलते रहने से मनुष्य की शारीरिक मानसिक शक्तियाँ इतनी तेज से क्षीण होती हैं कि थोड़ी देर बाद ही थकावट महसूस होने लगती है। छिछली नदी बड़ी आवाज करती हुई बहती है, किन्तु उसका अन्त भी जल्दी ही आ जाता है। वह जल्दी ही सूख जाती है। वाचाल और असंयमी व्यक्ति की जीवनी शक्ति जल्दी ही नष्ट हो जाती है। उसके व्यक्तित्व में कोई वजन और जीवट शेष नहीं रहता।

मौन की उपेक्षा करने वाले असंयमी व्यक्ति उस मूर्ख किसान की तरह हैं जो रेतीली और बंजर अनुपजाऊ धरती में अपना कीमती बीज बिखेरते फिरते हैं। अन्त में उन्हें असफलता और पश्चाताप का सामना करना पड़ता है। व्यर्थ ही शब्दों के वाद-विवाद, गपशप, दलीलबाजी, निन्दा-स्तुति में दूसरों को बहकाने में अपनी शक्तियों को नष्ट करते रहने वाला व्यक्ति जीवन के महत्वपूर्ण लाभों से वंचित ही रहता है। सच तो यह है कि ऐसे व्यक्ति का जीवन भी एक शब्दों का खेल, दलीलबाजी, वाद-विवाद का अखाड़ा और थोथा- चना मात्र ही रह जाता है।

कई लोग जन कोलाहल और संसार के वातावरण से दूर एकान्त शान्त स्थान में रहना ही मौन समझते हैं। कुछ हद तक ऐसे स्थानों का उपयोग मौन की साधना में आवश्यक भी है। उसका प्रयोग करना भी चाहिए। एकान्त शान्त स्थानों में चित विक्षेप नहीं पड़ते। किन्तु मौन का आधार बाह्य वातावरण नहीं अपितु अपना अन्तर-प्रदेश है। मौन का सम्बन्ध अन्तर से अधिक है। अन्तर की नीरवता, शान्ति, स्तब्धता, स्थिरता हो, चित्तवृत्तियों का नियन्त्रण हो, तो अपार जन-कोलाहल के बीच भी हम मौन का अवलम्बन ले सकते है— मौन की साधना कर सकते हैं।

मौन की साधना का अर्थ घर छोड़कर एकान्त में जाना अथवा अपने कर्त्तव्यों से विमुख हो जाना नहीं है, अपितु अपना कर्त्तव्य पालन करते हुए दिन भर किए जाने वाले अनावश्यक प्रलाप, हा-हा ही-ही, पर नियन्त्रण किया जाय। वाचाल वाणी और उच्छृंखल गति-विधियों पर अंकुश रखा जाय। वही किया जाय, वही बोला जाय, जो आवश्यक, उपयोगी और सर्व हितकारी हो। सत्य और मधुर वचन बोले जाएं। इससे गृहस्थ जीवन में रहते हुए अपने कर्त्तव्य और उत्तरदायित्वों का पालन करते हुए भी मौन की साधना की जा सकती है। ऋषि परम्परा में इसी तरह मौन का पालन किया जाता रहा है। जिन्हें विशेष सुविधा अनुकूलता हो वे सप्ताह में माह में एक दिन या अधिक समय निश्चित समय मौन व्रत रख सकते हैं। मौनी अमावस्या का विधान तो इसी लिए रखा गया था। जिस किसी भी रूप में मौन की साधना हो सके अवश्य करनी चाहिए।

मौन शक्ति , क्षमताओं का आगार है। मौन जीवन के प्रश्नों का महत्वपूर्ण समाधान है। मौन -चिन्तन - सत्य की प्राप्ति का राज- मार्ग है, मौन— आध्यात्मिक विकास का सोपान है, मौन- जीवन में समस्वर सामञ्जस्य पैदा करने का मन्त्र है। मौन- जीवन, जगत, प्रकृति, परमेश्वर के रहस्यों की खुली किताब है। जगत के अपार कोलाहल के बीच, जीवन यात्रा के संघर्षमय क्षणों में ही हमें मौन की साधना करनी होगी, तभी वह अपने अमूल्य वरदानों से हमें कृतार्थ कर सकेगी।

स्वाध्याय सन्दोह


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