युग निर्माण योजना, हर सदस्य पढ़े

December 1964

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‘युग-निर्माण योजना’ पाक्षिक का देश भर में असाधारण स्वागत हुआ है। चार मास का स्वल्प समय ही अभी उसे निकलते हुए हुआ कि उसकी चर्चा चारों ओर फैली। इस थोड़ी अवधि में उसके जितने ग्राहक बने हैं उतने ‘अखण्ड-ज्योति’ के अपने आरम्भिक जीवन में दस वर्ष के लगातार प्रयत्न के बाद बन पाये थे। ऐसा सुन्दर, सुसंपादित, विविध विषय विभूषित सस्ता पाक्षिक अब तक हिन्दी में नहीं निकला ऐसा लोगों को कहना है। जिस आदर्श और उद्देश्य को लेकर यह प्रयास आरम्भ हुआ है उसकी विचारशील क्षेत्र में एक स्वर से भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है।

योजना को व्यापक बनाने के लिए ऐसे पत्र की भारी आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो नव-निर्माण के बहुमुखी आँदोलन को अग्रसर बनाने के लिए आवश्यक उत्साह एवं प्रकाश उत्पन्न कर सके। तीस हजार व्यक्तियों ने व्यक्तिगत चरित्र एवं सामाजिक सद्भाव उत्पन्न करने के लिए जो ऐतिहासिक आँदोलन आरम्भ किया है उसकी जानकारी दूसरों को होनी ही चाहिए ताकि उसका अनुकरण करने के लिए अन्यत्र से भी प्रोत्साहन प्राप्त हो सके।

संसार के कोने-कोने में जो रचनात्मक सत् प्रवृत्तियाँ चल रही हैं उन्हें प्रकाश में लाना आवश्यक है। दुष्प्रवृत्तियों से संघर्ष भी अपेक्षित है। इस प्रकार की प्रेरणायें व्यापक बनाने के लिये जहाँ ठोस कार्यक्रमों की नींव डालना, उन्हें मजबूत करना और बढ़ाना अभीष्ट है, वहाँ उन्हें प्रकाशित किया जाना भी आवश्यक है। आज की परिस्थितियों में किसी महत्वपूर्ण आँदोलन का संचालन बिना प्रभावशाली समाचार पत्र के कठिन है। उपयोगिता को देखते हुए इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये ‘युग-निर्माण’ योजना मासिक का निकालना जब अनिवार्य प्रतीत हुआ तभी उसका प्रकाशन आरम्भ किया गया। हर्ष की बात है कि वह सफलता पूर्वक गतिशील हो रहा है।

‘अखण्ड-ज्योति’ के प्रत्येक सदस्य को इसे पढ़ना चाहिए। ताकि उसे अपने परिवार द्वारा चल रही महत्वपूर्ण प्रवृत्तियों की जानकारी रह सके। जो प्रेरणायें परिवार को दी गई हैं उन्हें किस प्रकार कार्यान्वित किया जा रहा है, या किया जाना चाहिए, उसका व्यावहारिक स्वरूप प्रस्तुत पाक्षिक पत्रिका से ही सामने आता है। जो विचार ‘अखण्ड-ज्योति’ द्वारा दिये जा रहे हैं उन्हें कहाँ किस प्रकार किसने, कब, किसको कार्यान्वित किया और उसके क्या परिणाम निकले, उसकी जानकारी हम सब को होनी ही चाहिए। अपने निजी परिवार के बारे में हमें जितनी दिलचस्पी रहती है उतनी ही इस धर्म परिवार के बारे में भी रहनी चाहिए। अन्यथा संकीर्णता के दायरे में सीमाबद्ध रहने का, समाज विमुख स्वार्थी होने का दोष अपने ऊपर आवेगा। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना कम-से-कम अपने धर्म परिवार ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवार तक तो बढ़ानी ही चाहिए। और उसकी उन्नति अवनति के सम्बन्ध में, क्रिया प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में दिलचस्पी भी लेनी ही चाहिए।

बेशक ‘अखण्ड-ज्योति’ पीढ़ियों तक संग्रह करने की चिरस्थायी वस्तु है। उसका प्रत्येक अंक एक पुस्तक है जो सैंकड़ों वर्षों तक बेटे पोतों के लिये भी संजोकर रखी जानी चाहिए। मासिक पत्रिका के सम्बन्ध में यह बात नहीं कही जा सकती क्योंकि वह सामाजिक है। पर इसे पढ़ना तो आवश्यक है ही। इसलिए हर जगह ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि सम्मिलित रूप में एक दो अंक उपलब्ध करा लिये जाएं और उन्हें बारी-बारी सब सदस्य पढ़ लिया करें। जो साधन सम्पन्न हैं, वे अकेले ही वार्षिक चन्दा का छः रुपया भेजकर उसे मँगाने एवं अन्य सदस्यों तक उसे पहुँचाने का श्रेय लाभ कर सकते हैं। तरीका जो भी हो हर नगर में जहाँ ‘अखण्ड-ज्योति’ पहुँचती है वहाँ युग पत्रिका का पहुँचना भी आवश्यक है। जहाँ अभी तक व्यवस्था नहीं है। वहाँ अखण्ड ज्योति पत्रिका पहुंचाने की व्यवस्था कर ली जानी चाहिये। ‘अखण्ड-ज्योति’ का नये वर्ष का चंदा भेजते समय साथ ही ‘युग-निर्माण’का चन्दा भेजने की बात का भी स्मरण रक्खा जाना चाहिए। पत्रिका के नये ग्राहक बढ़ाते समय युग-निर्माण की भी पाठक संख्या बढ़ती रहे, ऐसी चेष्टा करते रहना चाहिए।

जहाँ जो रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चल रही हैं उनके समाचार भी छपने के लिए भेजते रहने चाहिये। जन जागरण के लिये, सत्य वृत्तियों के अभिवर्धन के लिये, चारित्रिक उत्कृष्टता प्रतिपादित करने के लिए अनौचित्य से संघर्ष करने के लिए जहाँ जो कुछ किया जा रहा हो, उसका विवरण इस मासिक में छपने के लिए भेजते रहना चाहिए।

*समाप्त*


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