न काष्ठे विद्यते देवो न पाषाणे न मृन्मये।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावस्तु कारणम्॥
देवता काष्ठ , पाषाण या मिट्टी में नहीं रहते।
उनका निवास तो भावना में है। इसलिए भावना ही प्रधान कारण है।
गेह मेवोपशान्तस्य विजनं दूर काननम्।
अशान्तस्याप्यख्यानि विजना सजनापुरी॥
शान्त मन वाले के लिए घर ही निर्जन वन है और अशान्त व्यक्ति के लिए निर्जन वन भी कौलाहलपूर्ण है।
प्रकाशमय है, वही सम्पूर्ण प्राणियों में समाया है फिर एक प्राणी की दूसरे प्राणी के साथ विलगता कैसी? यह दुराव क्यों हो, जब तात्विक दृष्टि से हममें कोई भेद नहीं है। धर्म एक आध्यात्मिक तत्व है, वह निर्मल है, पवित्र है और जिस मनुष्य के पास रहता है, उसे भी निर्मल अन्तःकरण वाला बना देता है। कहते हैं—सोहागे से सोने के रंग-रूप में निखार आता है, मनुष्य में निखार और तेजस्विता धर्म जगाता है। धर्म ही मनुष्य -जीवन का प्राण है।