वरदान

August 1964

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एक बार कुछ तपस्वी एक वट वृक्ष के नीचे बैठे यह विचारने लगे कि तप के फलस्वरूप क्या वरदान माँगा जाय?

एक ने कहा—विपुल अन्न माँगना चाहिए ताकि जीवन आनन्द से कटे। दूसरे ने कहा—बल माँगा जाय, क्योंकि बल बिना कैसे उपजाया जा सकेगा? तीसरा बोला—बुद्धि क्यों न माँगे? बुद्धि बिना बल भी किस काम का? चौथे ने कहा—शान्ति माँगनी चाहिए। अन्यथा अशान्त की बुद्धि भी कुण्ठित हो जाती है।

विवाद लंबा हो गया। पर किसी निर्णय पर न पहुँच सके। तब वट वृक्ष ने कहा—उलझन में समय नष्ट करने की अपेक्षा आप लोग अपनी-अपनी अभिरुचि का वरदान माँग लें तो भी क्या बुरा?


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