सजग हुए प्राण (kavita)

August 1963

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मैं चला शंख अपना बजाता हुआ।

मैं चला तो प्रभाती सुनाता हुआ॥

मैं चला तो जमीं आसमाँ हिल गये।

मैं चला शैल भी धूलि में मिल गये॥

मैं चला सिन्धु में आ गया ज्वार-सा

मैं चला शूल भी फूल बन खिल गये॥

मैं चला आँधियों को उठाता हुआ।

मैं चला बिजलियों को गिराता हुआ॥

मैं चला चाँद सूरज सितारे चले।

मैं चला सृष्टि के कार्य सारे चले॥

मैं चला साथ में चल पड़ा विश्व भी।

मैं चला लोग मेरे सहारे चले॥

मैं चला राह अपनी बनाता हुआ।

मैं चला राह जग को दिखाता हुआ॥

मैं चला चल पड़े सुप्त पाषाण भी।

मैं चला, तो सजग से हुये प्राण भी॥

मैं चला, पा गये शक्ति म्रियमाण भी।

मैं चला तो चले भाग्य-भगवान भी॥

मैं चला राष्ट्र सोया जगाता हुआ।

मैं चला जागरण - गीत गाता हुआ॥

-विनोद रस्तोगी


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