Quotation

August 1963

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शतं दद्यान्न विवदेदिति विज्ञस्य संमतम्।

बिना हेतुमपि द्वन्द्वमेतन्मूर्खस्य लक्षणम्॥

-हितोपदेश

अपनी सैकड़ों की हानि सहन करले पर झगड़े को बचावे यह बुद्धिमानों का मार्ग है और बिना किसी कारण ही कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण है।

‘अखण्ड-ज्योति’ के पाठकों में से प्रत्येक को अपने परिवार के निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिये परिवार-विद्यालय चलाने पर बहुत जोर दिया है। वास्तव में प्रत्येक श्रेष्ठ कार्य का आरम्भ अपने घर से होना चाहिये। घर में शिक्षा का प्रसार करने के बाद स्वभावतः मनुष्य का उत्साह बढ़ेगा और वह उसके लिये समय तथा धन भी खर्च करने लगेगा। आचार्य जी का व्यक्तिगत प्रभाव लाखों लोगों पर है, उनके चलाये आन्दोलनों में सहज ही वे लोग आगे बढ़कर भाग ले सकते हैं। इस आन्दोलन से देश का महान कल्याण होगा इसमें कोई सन्देह नहीं।

लघु कथा-


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118