कायरों की सदा मृत्यु है

August 1963

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एक बार एक डरपोक खरगोश अपनी झाड़ी के पास बहुत चिन्तित होकर बैठा था। पास में रहने वाले दूसरे जानवर उसकी व्यथा जानने के लिये इकट्ठे हो गये और पूछने लगे कि वह किस कारण इतना परेशान हो रहा है?

खरगोश ने कहा-विपत्ति के बादल सिर पर मँडरा रहे हैं, क्या तुम इस बात को समझते नहीं। किसी भी क्षण मुसीबत हमारे ऊपर बिजली की तरह गिर सकती है। तुम को इस बात पर खूब विचार करना चाहिये और उससे बचने के उपायों पर ध्यान देना चाहिये।

सभी जानवर गम्भीर हो गये और किसी भारी विपत्ति की कल्पना करके डरने लगे। उन्होंने खरगोश से कहा- आखिर बात क्या है? कुछ बतलाओ तो सही।

खरगोश की छाती धड़क रही थी। उसने किसी प्रकार अपने को संभालकर कहना आरम्भ किया-यह इतना बड़ा आकाश हमारे सिरों के ऊपर फैला हुआ है। इसके वजन का कुछ ठिकाना नहीं। असंख्य तारों समेत इस भारी आसमान का कभी भी हमारे ऊपर गिर पड़ना संभव है। यदि ऐसा हुआ तो हम बात की बात में कुचल जायेंगे। क्या यह कोई कम डर की बात है?

उसने फिर कहा-यह धरती बिना किसी सहारे के अधर में लटक रही है। क्या पता कभी नीचे धसकने लग जाय। यदि ऐसा हुआ तो हम न जाने किस गर्त में जा गिरेंगे। और तुम देखते नहीं कि धरती पर प्राणियों की संख्या बढ़ रही है और खाद्य घट रहा है। यदि ऐसा ही क्रम रहा तो एक दिन भूखों मन जाने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रहेगा।

वहाँ पर मौजूद जानवरों को ये बातें व्यर्थ की जान पड़ी और उन्होंने उन्हें अनसुनी कर दिया। कई जानवर कहने लगे कि विपत्ति का समय आने पर उसका कोई न कोई उपाय कर लिया जायगा, अभी से इस प्रकार का भय करके सदा डरते रहना मूर्खता की बात है।

पर कोई-कोई जानवर बहुत शंकाशील निकले। वे भी खरगोश की तरह डर गये और अपने बचाव का उपाय सोचने लगे। टिटहरी आकाश की ओर पैर करके सोने लगी ताकि ऊपर से इतना भारी बोझा गिरे तो वह उसे अपने पैरों पर रोक ले। बन्दर पेड़ से कई-कई बार उतर कर यह देखने लगा कि कहीं धरती धसक तो नहीं रही है। केंचुए ने मिट्टी खाने की आदत डाली ताकि भोजन समाप्त होने पर भी वह अपना गुजारा कर सके।

कहते हैं कि खरगोश को यह तीन ही अनुयायी मिले और वे तीनों उसी चाल पर अब तक चले जा रहे हैं।


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