जो मनुष्य दूसरे के ऐश्वर्य को नहीं सह सकता, जिसकी बुद्धि कलुषित है, जो परधन हरण करता है, जो प्राणियों की हिंसा करता है, जो झूठ बोलता है, जो कठोर वचन कहता है और जिसका मन निर्मल नहीं है, उसके हृदय में भगवान् निवास नहीं करते।
*****
इन्द्रियाँ ही मनुष्य की शत्रु हैं। आशा मिट जाने पर यह पृथ्वी ही स्वर्ग है। विषयों में प्रेम ही बन्धन है। सदा सन्तुष्ट ही बड़ा धनी है। मन को जय करने वाला ही संसार में विजयी है।
*****
दूसरों की उन्नति करने में स्वाभाविक ही तुम्हारी भी उन्नति हुआ करती है। दूसरों की भलाई करने में तुम अपने अहंकार और लौकिक हित को जितना ही भूलोगे, उतना ही उसका परिणाम अधिक शुभ होगा।