सभी को उर से प्यार करो।
कंज वलियाँ प्रस्फुटित प्रसून,
ज्योत्स्ना शुभ्र सिंधु गंभीर।
नवोदित ऊषा साँध्याकाल,
दिव्य गोधूलि-रम्य सारि-तोर।
इन्हें देखो सुविचार करो।
सृष्टि की सुन्दर है हर चीज,
दृष्टि यदि हो तेरी अभिराम।
प्रकृति का पा सामीप्य, विचार
कहाँ जीवन पथ पर विश्राम?
कर्म-रत रह, उपकार करो?
विषमता-द्वेष-घृणा को छोड़
हृदय में भरकर नव-अनुराग।
जला जीव की ज्योति परार्थ
यही निर्वाण, यही है त्याग॥
मृत्यु का हँस-सत्कार करो!
रामस्वरूप खरे ‘साहित्य रत्न’
सम्पादकीय-