गायत्री जयन्ती की महत्ता और हमारा कर्त्तव्य

May 1960

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(डॉ. चमनलाल गौतम)

महापुरुषों की जयन्ती मनाने का अभिप्राय यह होता है कि हम उस दिन उनके जीवन पर एक दृष्टि डालें, उनके कार्यों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करें कि उन्होंने किन कठिन परिस्थितियों का सामना करके उनसे जूझकर लोक सेवा, परोपकार और निःस्वार्थ भावना से ओत-प्रोत होकर तप और त्याग के माध्यम से देश, जाति और राष्ट्र का कल्याण किया। जयन्ती मनाना उनके कार्यों की प्रशंसा व सम्मान करना है ताकि भविष्य में भी लोग इसी मार्ग पर अग्रसर हों, क्योंकि लोग जिस वस्तु या गुण का सम्मान करते हैं लोग उन्हीं को अपनाने का प्रयत्न करते हैं।

महापुरुषों के अतिरिक्त देवी-देवताओं और अब नारी पुरुषों की भी जयन्तियाँ मनाई जाती हैं जैसे राम, कृष्ण, आदि। प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ला 10 को गायत्री जयन्ती मनाई जाती है। गायत्री लाखों और करोड़ों हिन्दुओं का इष्ट है। यह हमारे जीवन का सब से आवश्यक तत्व है, प्रकाश स्तम्भ है, अज्ञानान्धकार में भटकने वालों को मार्गदर्शन करता है, संसार सागर में डुबकियाँ लगाने वालों को बचाकर पार लगा देता है, प्राणी इस संसार के गोरखधंधे से घबरा जाता है तो मानो अपने प्रिय पुत्र पर वरद हस्त फेर कर उसे साँत्वना देता है, मनुष्य जगत की ठोकरों से तंग आ जाता है तो उसे धैर्य और सहन शक्ति प्रदान करता है ताकि वह कष्ट और कठिनाईयों के बीच भी हंसता रहे, मृत्यु भी सामने आए तो उस से भी संघर्ष करने की ठान ले। गायत्री माता इतनी दयालु हैं कि वह अपने पुत्र का दुःख सहन नहीं कर सकती और उसे दुःख से सुख, अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर ले जाती है। उसके त्रितापों को नष्ट कर देती है। उसके अभावों का दूर करती है लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार की उन्नति में सहायक सिद्ध होती है। मनुष्य को मनुष्य बनना सिखाती है। उसे अपने पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों का ज्ञान कराती है ताकि वह पथभ्रष्ट न जाए। दुष्ट, कुकर्मी, ठग, चोर, बेईमान, व्यसनी, छली, कपटी, स्वार्थी व्यक्तियों को सन्मार्ग पर लाने का यह अमोध अस्त्र है जो हजारों और लाखों बार आजमाया हुआ है।

गायत्री मन्त्र देखने में तो बहुत छोटा सा 24 अक्षरों का मन्त्र दीखता है परन्तु इसमें गजब शक्ति है। हृदय परिवर्तन की यह रामबाण औषधि है। इससे अनेक प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें अनेक प्रकार की विद्याओं का संकेत मिलता है। इसमें वह तत्व ज्ञान भरा पड़ा है जिसे अपनाकर मनुष्य अजर-अमर हो जाता है। इसके एक-एक अक्षर में वह शिक्षाएं भरी पड़ी हैं जिसे अपने जीवन में उतार कर मनुष्य धन्य हो सकता है।

यही कारण है कि आदि काल से ऋषियों ने इस परम पुनीत मंत्र को अपनाया है और इसके बिना जल ग्रहण न करने का आदेश दिया है। इसका चमत्कार प्रभाव उन्होंने अनुभव कर लिया था तभी बच्चों के थोड़ा समझदार होते ही इसकी दीक्षा दे देते हैं, और उसे जीवन भर धारण किए रहने की शिक्षा देते हैं कि इसी के सहारे अपनी जीवन नाव पार करना। जो मनुष्य इतने महान, प्रेरणादायक और कल्याण कारी तत्व को भूल जाता है, वह पतन के मार्ग पर चलना आरम्भ कर देता है। हम संसार के झंझटों में फंस कर इस ज्ञान दीप को भूल न जाएं प्रतिवर्ष इसकी जयन्ती मनाते हैं जो इस वर्ष 5 जून को है ताकि यदि हम किसी कारण इसे भूल गए हों तो पुनः उसे ग्रहण कर लें।

गायत्री माता के चार पुत्र चार वेद हैं। गायत्री के एक-एक चरण की व्याख्या स्वरूप चार वेद बने हैं। इस महामन्त्र का जो अर्थ और रहस्य है, उसका प्रकटीकरण चारों वेदों में ही हुआ है। बीज रूप में जो गायत्री में है, वह विस्तार से वेदों में है। वेद को ईश्वरीय ज्ञान माना जाता है। यह पवित्र हृदय ऋषियों के स्वच्छ, अन्तःकरणों में अवतरित हुआ था। गायत्री की घोर तपश्चर्या करके ही वह इसकी सामर्थ्य प्राप्त कर सके थे, गायत्री के मन्थन का यह परिणाम था। गायत्री हमारी भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। वेद में भी दोनों प्रकार के विषय हैं। यह ज्ञान और विज्ञान का भण्डार हैं। इसने मनुष्य जाति को सब प्रकार की विद्याओं का विज्ञान दिया है, इसने उस की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान किया है। यह वह अमृत है जिसे पीकर उसके आन्तरिक नेत्र खुल जाते हैं, उसे वास्तविकता का ज्ञान होता है, उसके मनः क्षेत्र में ज्ञान का उदय होता है, वह अपने और समाज के जीवन को सत्पथ पर ले जाता है।

परन्तु खेद की बात है कि हम अपने अमूल्य रत्नों को भूल गए। हमारे स्वार्थों ने हमें इन से अलग कर दिया। फलस्वरूप इस जीवन विद्या से वंचित रहने लगे। दीपक के अभाव से जैसे मनुष्य अंधेरे में ठोकरें खाता है। हम भी दिन-दिन अवनति की ओर जाने लगे। जिन लोगों ने इन्हें अपनाया वह इनसे यथेष्ट लाभ उठा चुके हैं और उठा रहे हैं।

प्रसन्नता की बात है कि अ.भा. गायत्री परिवार ने लुप्त प्रायः गायत्री, विद्या को जन-जन के मन मानस में स्थापित करने का प्रयत्न किया और इसमें आशाजनक सफलता भी मिली है। जो कार्य गायत्री परिवार के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने अब तक किया है लाखों और करोड़ों हिन्दुओं तक गायत्री माता का संदेश पहुँचा दिया है, यह इतिहास के पन्नों में अमर रहेगा। परन्तु यह कार्य अभी अधूरा है। माँ की प्रसन्नता तभी प्राप्त की जा सकती है जब उस के पुत्रों की ओर भी ध्यान दिया जाए, उपेक्षा के गर्त में पड़े वेदों का घर-घर में प्रचार हो, शिव जी के मन्दिर में गणेश और स्वामी कार्तिकेय भी होने चाहिए। गायत्री के साथ-साथ उसके चारों पुत्रों- चार वेदों की भी स्थापना होनी चाहिए।

अभी तक वेद विद्या को सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनाने के लिए दो कठिनाइयाँ सामने आ रही थी। एक तो यह कि जो हिन्दी भाष्य उपलब्ध थे, उनके अर्थ इस प्रकार से किए गए थे कि उनको समझना कठिन था और दूसरी यह कि उनका मूल्य इतना अधिक रखा गया था कि वह साधारण व्यक्तियों कि लिए खरीदना सम्भव न था। गायत्री तपोभूमि ने इन दोनों कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न किया है। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय वेद पूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य जी महाराज ने चारों वेदों का सरल भाष्य इस ढंग से किया है कि उसे कोई हिन्दी पढ़ा लिखा व्यक्ति भी पढ़ और समझ सके। दूसरे उसका मूल्य इतना कम रखा गया है कि उसे हर एक व्यक्ति गरीब, अमीर खरीद सकता है। ऋग्वेद की 3, अथर्व वेद की 2, यजुर्वेद की 1 और साम वेद की 1, इस प्रकार कुल सात जिल्दों में बना है। इन सबका मूल्य 45 रु. है, परन्तु प्रचारार्थ 35 रु. में दिया जाएगा। रेल पार्सल द्वारा मंगवाने से 2 रु. और डाक द्वारा 5-6 रुपया लगेंगे जो मंगवाने वाले को ही देने होंगे। 5 सैट मंगवाने वाले को डाक खर्च फ्री किया जाएगा।

गायत्री जयंती के दिन गायत्री माता का गुण गान गाया जाता है, घर-घर में उसके व्यापक प्रचार के संकल्प किए जाते हैं, सभा, आयोजन, यज्ञ और जुलूस निकाले जाते हैं ताकि अग्नि पर पड़ी राख की भाँति यदि गायत्री विद्या का हमारे जीवन से लोप हो गया हो तो, हम उसे पुनः स्मरण करें और अपने जीवन में चरितार्थ करें। माँ अपने पुत्रों को अपनी छाती से अलग नहीं कर सकती। उसे उन्हें चिपकाए रहने में ही प्रसन्नता अनुभव होती है। गायत्री जयन्ती को वेद जयन्ती भी मानना चाहिए। इस दिन गायत्री परिवार की प्रत्येक शाखा में वेद भगवान की स्थापना हो। प्रदर्शन से उसकी व्यापक जानकारी होती है। वेद भगवान के जुलूस निकाले जाएँ जिस तरह सिख लोग गुरु ग्रन्थ साहब की पूजा पर्व पर करते हैं। वेद भगवान का जय-जय कार हो लाखों हिन्दुओं ने अभी तक वेद भगवान के दर्शन तक न किए होंगे। गाजे बाजे, कीर्तन आदि के साथ निकले जुलूस का जनता पर एक छाप पड़ेगी कि वेद भारतीय संस्कृति के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। स्वस्तिवाचन, हवन, भजन आदि के साथ सुन्दर चाँदी के सिंहासन पर वेद भगवान की स्थापना करनी चाहिए। वेद कथा का प्रबन्ध करना चाहिए। सभा और सम्मेलन करके वेद भगवान की महत्ता हिन्दु जगत पर स्थापित करनी चाहिए ताकि हम और उनका आकर्षण बढ़े और हमारा राष्ट्र दिन-दिन नैतिक व साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर बढ़े।

इसी दिन गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन तप की प्रतिमूर्ति भागीरथ ने गंगा का अवतरण किया था। घोर तप के फलस्वरूप ही वह प्यासी जनता को तृप्त कर सके थे। भागीरथ की आत्मा हमें पुकार-पुकार कर कह रही है केवल योजनाओं और बातों से काम न चलेगा वरन् काम के लिए कमर कसनी होगी और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने जीवनों को खपाना होगा तभी गंगा प्रसन्न होगी और मुँह माँगा वरदान देंगी। अनैतिकता झूठ, छल, कपट, बेईमानी, नास्तिकता, लोभ, स्वार्थीपन, अन्धविश्वास के इस युग में ज्ञान गंगा को अवतरित करने के लिए घोर परिश्रम करना होगा। गायत्री माता को घर-घर पहुँचाने के लिए परिजनों को जो कष्ट मुसीबतें और संघर्षों का सामना करना पड़ा वैसे ही समय परिश्रम और तप की बलि अब भी देनी होगी। एक शाखा में एक वेद की स्थापना तो सरल है। कुछ सदस्य मिलकर इस कार्य को कर सकते हैं गाँव मुहल्ले से चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं। परन्तु यहाँ तक हमें सीमित नहीं रहना है। हमें तो सारे विश्व को वेद ज्ञान ने सींचना है। संसार में वेदों की धूम मचा देनी है और एक बार फिर दिखा देना है कि भारत जगतगुरु है और सारे विश्व को अध्यात्म ज्ञान देने का अधिकारी है, वह सबका नेतृत्व करेगा और वेदों की अद्वितीय महत्ता को और स्थापना करेगा। गायत्री का न अक्षर हमें यह शिक्षा देता है कि जो कुछ तुम्हारे पास है परहित के लिए लुटा दो। अपने पास कुछ मत रखो। वेद सृष्टि का आदि ज्ञान है। हमें इस बीज को सब ओर बखेर देना हैं ताकि उससे सुन्दर फल देने वाले कल्याणकारी और शान्तिदायक पेड़ उगे और उसकी छाया में बैठकर विश्व सुख और समृद्धि का अनुभव करे।

गायत्री परिवार के कर्मठ कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है कि सबसे पहिले अपना शाखा में वेद स्थापना की योजना बनाएं। जुलूस का प्रबन्ध करें ताकि निश्चित रूप से गायत्री जयन्ती के शुभ अवसर पर वेद भगवान की स्थापना हो जाए। इसके साथ-साथ अपने क्षेत्र में धर्म फेरी करके कम से कम 4 वेदों की स्थापना का प्रयत्न किया जाए। अपने ग्राम व नगर के धर्मप्रेमी जनों को स्वतंत्र वेद स्थापना के लिए प्रेरित किया जाए। गायत्री माता की प्रसन्नता इसी में हैं कि उसके पुत्रों का गुणगान किया जाए। गायत्री जयन्ती के अवसर पर गायत्री माता को यह उत्तम भेंट है। साँस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर यह एक प्रशंसनीय कदम है। आशा और पूर्ण विश्वास है कि गायत्री परिवार की 6 हजार शाखाओं ने जिस प्रकार भारतीय संस्कृति के माता और पिता-गायत्री और यज्ञ का विस्तार किया है। उसी तरह ईश्वरीय ज्ञान-वेद के प्रचार को व्यापक रूप देकर धार्मिक उन्नति में योग देगी।


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