यदि कोई चाहे कि वह दुनिया में अपना स्वार्थ साधन भी करे और ईश्वर को भी प्राप्त कर ले तो यह असम्भव है। -अज्ञात
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दो मनुष्य ईश्वर को प्रसन्न करते हैं एक तो वह जो सच्चे हृदय से उसकी सेवा करता है, क्योंकि वह उसे जानता है, दूसरा वह जो उसे निष्कपट भाव से ढूँढ़ता है क्योंकि उसे नहीं जानता। - पाणिनी