जीवन संग्राम में विजयी कैसे हों?

April 1959

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(डॉ. रामचरण महेन्द्र, एम. ए. पी. एच. डी.)

जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रविष्ट हूजिए, पर प्रविष्ट होने से पूर्व यह समझ लीजिए कि यह एक यज्ञ है, अर्थात् पवित्र कार्य है। ईश्वरत्व के सब गुणों की सहायता से ही आप उसमें पूरी उन्नति कर विकसित और पूर्ण पक्कास्था में पहुँच सकते हैं। आप जीवन के लिए चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न चुनें, आपको नेतृत्व करना चाहिए। दूसरे शब्दों में सामान्य की अपेक्षा ऊँचा उठना चाहिए। आपके पास वे तत्व अधिक मात्रा में होने चाहिए, जो पथ-प्रदर्शकों में होते आये हैं। देश विदेश के महापुरुषों, नेताओं, समाज-सुधारकों और धार्मिक क्षेत्र में कार्य करने वाले नेताओं के जीवनों का अध्ययन कीजिए। आप पायेंगे कि जीवन-यज्ञ में सफलता लाभ करने वाले वे ही व्यक्ति हैं, जिनमें साधारण की अपेक्षा अधिक ज्ञान था और जिन्होंने सफलता-विज्ञान का विशेष अध्ययन किया था।

हरबर्ट कैसन नामक लेखक ने अपनी पुस्तक “नेतृत्व के लिए उपयोगी सूत्र” नामक एक पुस्तक में लिखा है, “नेतृत्व स्वयं अपने आप में एक शास्त्र है। इसमें सफलता के लिए मनुष्य में साधारण की अपेक्षा अधिक गुण होने चाहिए। इसकी शैली और सिद्धि का तरीका भी अलग है। अन्य कलाओं की तरह जीवन की इस उपयोगी कला को भी सीखा जा सकता है। यह सब कलाओं की सिरमौर कला है।”

उसी पुस्तक में कैसन साहब ने निम्न सूत्र दिये हैं, जिनसे मनुष्य पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। इनमें से प्रत्येक सूत्र अपने आप में पृथक रूप कसे मन्थन करने, खूब सोचने विचारने का विषय है, सब में मानवता के उच्चतम गुणों के विकास और दानवता के विनाश का संकेत है। यह दिखाया गया है कि रजोगुण, तमोगुण और दानवता को दूर कर मनुष्योचित सत्वगुणों की वृद्धि करते रहना चाहिए। सात्विक भावों और सामर्थ्यों के विकास कर जाति, धर्म और देश की साँस्कृतिक परिधि को लाँघकर मानवता की सच्ची सेवा करने वाले वैज्ञानिकों, तत्ववेत्ताओं, समाज-सुधारकों के जीवन की झाँकियाँ भी दी जा रही हैं, जिनमें इन तत्वों का विकास पाया जाता है। दैवी गुणों (जिन्हें गीता में दैवी सम्पदा कहा गया है) का विकास करने से मानवता की वृद्धि होती है और जीवन कृतार्थ बनता है; मनुष्य उन्नति करता है।

संसार में ऐसा कोई नहीं है, जो अँधाधुन्ध आगे बढ़ता रहे। प्रत्येक महान् व्यक्ति ने अपनी सेवा या उन्नति का एक क्षेत्र चुना। यह चुनाव बड़ी समझदारी और भविष्य चिन्तन के पश्चात् हुआ। उसकी अच्छाई बुराई, उजला और धुँधला सब पक्ष देखे गए। अन्त में उसका निर्णय हुआ। होने के पूर्व अपनी शक्तियों को अच्छी तरह तोल लिया गया। ये उद्देश्य नाना प्रकार के थे, व्यक्तिगत उन्नति के साथ इनमें समाज, राष्ट्र और मानवता मात्र की सामूहिक उन्नति का विधान था। कोई कला , विज्ञान, धर्म, राजनीति में महान् बना, तो कोई मानवसेवा, समाजसेवा या भगवत्सेवा में बड़ा बना। किसी ने लोकोपकार के लिए अस्पताल, सेवा-सदन, दानशील संस्थाएँ मनुष्य की सेवा के लिए निर्मित कीं। किसी ने दान किया, कमाया और मुक्त -हस्त से दान दिया। किसी ने कला, साहित्य, संगीत चित्रकारी में उच्चतम स्थिति प्राप्त की। आप भी अपनी इच्छानुसार अपने जीवन का उद्देश्य अवश्य रखिए; उसका अच्छी तरह अध्ययन कीजिए; उस क्षेत्र के व्यक्तियों से मिलिये, अधिक से अधिक परामर्श कीजिए।

यदि आप नेता बनना चाहते हैं, तो जल्दी ही निर्णय करना चाहिए। “अमुक कार्य करूं, अथवा न करूं” ऐसे पशोपेश से बचना चाहिए। यदि आप प्रत्येक व्यक्ति की बात या परामर्श स्वीकार करते जायेंगे, तो कहीं भी न पहुँच पायेंगे। कोई कुछ कहेगा, तो दूसरा विपरीत सलाह देगा। प्रत्येक अपनी अपनी इच्छा, बुद्धि, शक्ति , रुचि और दृष्टिकोण से सलाह देगा। फल यह होगा कि आपकी शक्ति सामर्थ्य से कोई भी मेल न खायेगा। सबके सुझाव पृथक-पृथक होंगे; कोई आपके अनुकूल न बैठेगा। प्रत्येक के निष्कर्ष अलग होते हैं। आपके व्यक्तिगत अनुभवों के बल पर ही अपने निर्णय करने चाहिए। आप अपने यहाँ के नेताओं का अध्ययन करें तो आपको प्रतीत होगा कि उनमें शीघ्र निर्णय करने की अद्भुत क्षमता थी। निर्णय करने में अधिक देरी न होने के कारण उनको बहुत सा समय मिल गया और जबकि दूसरे अंधकार में हाथ पाँव फैलाये रहे, ये अपने क्षेत्र में उन्नति करते गये।

नेता भविष्य दृष्टा होते हैं। अर्थात् स्वतंत्र रूप से बहुत आगे की सोचते हैं। शब्दों, विचारों, योजनाओं, और अपने संकल्पों में वे स्वतन्त्र होते हैं। अपना अलग चिन्तन करते हैं। दूसरों के अनुभवों से लाभ अवश्य उठाते हैं, पर अपना मार्ग स्वयं ही निर्धारित करते हैं। आजकल वह युग नहीं कि आदमी अंधगति से जैसा कहा जाय बिना समझे बुझे वैसा ही करता चला जाय। आजकल स्वयं चिन्तन और नये रूप में सोचने का युग है। नया युग है, नई परिस्थितियाँ हैं, नई समस्याएँ हैं, नए मापदण्ड हैं। इन सबके लिए हमें नए रूप में ही सोचना विचारना है। युग के अनुसार अपने आदर्शों को ढालना है। स्वयं ढलना है।

पुनःपुनः अपने निर्णयों या आदेशों को मत बदलिये। आप जानते हैं आप उसी को नेता मान सकते हैं, जो पौरुषपूर्ण हो; चट्टान की तरह दृढ़ हो और स्पष्ट निर्देश दे; जिसे यह ज्ञान हो कि वह वस्तुतः क्या कह रहा है? क्या करना चाहता है? जो कुछ वह कह रहा है उसका क्या प्रभाव होगा? आप कभी उस व्यक्ति पर विश्वास न करेंगे, जो थोड़ी देर में अपने विचारों को बदला करता है? या विषम स्थिति को देखकर डर जाता है। तनिक से विरोध से भयभीत हो जाता है। नेता प्रायः वे ही हैं जिन्होंने अपने मंत्र को खूब सोचा है और फिर उस पर दृढ़ता से डटे रहे हैं।

क्या आप जानते हैं कि जब एब्राहम लिंकन एक युवक थे, तो वे इलिनोस के चुनाव के लिए खड़े हुए थे। इस चुनाव में वे बुरी तरह हारे थे। उसके बाद उन्होंने सफलता के लिए व्यापार को क्षेत्र चुना किन्तु उसमें भी बुरी तरह असफल हुए। 17 वर्षों तक वे गलत साथी के साथ साझे में कार्य करने से उन पर चढ़े हुए कर्ज को निपटाते रहे। एक सुन्दर युवती से उनका प्रेम सम्बन्ध हो गया। बहुत दिनों तक वे उसी के रंगीन जीवन में लगे रहे। एक दिन वह युवती मृत्यु को प्राप्त हुई। फिर वे राजनीति में प्रविष्ट हुए, काँग्रेस के उम्मीदवारी के लिए खड़े हुए, पर हार गये। उन्होंने अमेरिका के लैण्ड आफिस में नौकरी चाही पर वहाँ भी असफलता ही मिली। अमेरिका सीनेट के लिए उन्होंने प्रयत्न किया, परन्तु बुरी तरह पराजित हुए। इतनी असफलताएं से भी वे कदापि निराश न हुए और अन्त में उन्होंने अपने देश का सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और अमर कीर्ति के स्वामी बने। ऐसा व्यक्ति ही सफल नेतृत्व के गुणों से सम्पन्न कहा जायगा। प्रायः हमारी असफलताओं योग्यता के नए पहलू दिखलाती हैं। हमें प्रायः यह ज्ञात नहीं रहता कि जीवन के किस क्षेत्र में, समाज के किस पहलू में हम सफलता प्राप्त करेंगे।

जिन व्यक्तियों ने आपको सहयोग, सेवा, सलाह या प्रेम किया है, मार्ग दर्शन से सहायता की है, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कीजिए। अपने सफल सहयोगियों की दाद दीजिए अर्थात् उनकी सेवाओं के प्रति प्रोत्साहन दीजिए। संगीत, कविता, कला, लेखन अभिनय प्रायः सभी क्षेत्रों के कलाकार (जो हो सकता है आपके सहयोगी भी हों) प्रोत्साहन की आकाँक्षा करते हैं। बड़े नेता सदा ऐसे विकासोन्मुख कलाकारों को सच्चा प्रोत्साहन दिया करते हैं।

एमर्सन को बौद्धिक ब्राह्मण कहा जाता है। वे अपने संकल्पों पर इतने दृढ़ रहा करते थे कि यदि उनका कोई मित्र उनके नैतिक तथा सत्य-सम्बन्धी धरातल पर नहीं होता था तो वे उससे कहा करते थे-”जनाब आप अपने रास्ते जाइये, मैं अपने मार्ग पर जाऊँगा। दंभ करने से कोई लाभ नहीं। यदि हम अपने मतानुसार सत्य मार्ग का अनुसरण करते रहे, तो कभी न कभी आगे चल कर एक हो जायेंगे।” वे न तो किसी मित्र की प्रतिध्वनि बनना चाहते थे और न किसी को अपनी प्रतिध्वनि बनाना चाहते थे। उनका मत था कि हमें लोगों से मिलना जरुर चाहिए, पर अपनी शर्तों पर और क्षुद्र से क्षुद्र कारण पर किसी का प्रवेश या बहिष्कार करने का हमें अधिकार होना चाहिए।

महर्षि इमरसन के ये शब्द लूई पाश्चर के जीवन के निष्कर्ष हैं, “जो मनुष्य सुदृढ़ता से धैर्य का आँचल पकड़ लेते हैं, वे फिर जीवन के ऐसे गड्ढे में नहीं गिर सकते कि जहाँ से वे उठ ही न सकें। मैंने धैर्यवान मनुष्य को प्रायः अपने अभूतपूर्व अभीष्ट पर ही पहुँचते देखा है और वास्तव में मनुष्य में इतना सजीव साहस होना चाहिए कि वह संकटकालीन अवस्था में अपने आप को खड़ा रख सकें।”

मानवता के कष्ट, पीड़ा, वेदना और उत्पीड़न को दूर करने वालों और सुख, समता तथा स्वतन्त्रता से जीवन व्यतीत करने के पक्ष में लगातार संघर्ष करने वालों में अमेरिका के अब्राहम लिंकन का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। उनका जन्म एक साधारण कुल में हुआ; गाँवों में इनका लालन पालन हुआ, शान्ति के वातावरण में वे पनपते रहे और जीवन भर उन्होंने शान्ति और न्याय का पाठ पढ़ाया। जीवन में वे न्याय के लिए लड़ते रहे और निराशा व विरोधों से टक्कर लेते रहे। गरीबों के साथ भी समानता का व्यवहार हो, यही उनका जीवन ध्येय था।

सेमुएल स्माइल्स के ये शब्द सुकरात के कुछ सिद्धान्तों को स्पष्ट करते हैं, “आत्मोद्धार अथवा अपनी उन्नति करने में निर्णयशक्ति , दृढ़निश्चय और तत्परता की आवश्यकता है। इन गुणों की वृद्धि तभी हो सकेगी, जब नवयुवकों में स्वावलम्बनशील होने की आदत डाल दी जाय और आरंभ में जिस हद तक हो सके, उसे स्वयं काम करने को स्वतन्त्र किया जाय। अपने ऊपर विश्वास न होने से हमारी उन्नति में बहुत बाधा आ जाती है।”


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