प्यार करो जीवन से साथी भय न मरण से मानो।
कर्म-साधना के रहस्य को अंतर में पहचानो॥
जीवन के संकल्प नियम के सदृश अनित्य बनाओ।
बनो नहीं देवता स्वयं को मानव किंतु बनाओ॥
व्यर्थ न जाय किसी तरह भी यह जीवन की थाती।
पथ का अंधकार हरने को जलो स्वयं बन बाती॥
आओ जीवन की कर्मठता को दो नूतन भाषा।
अमृत-घट से भरो मनुजता का मानस चिर प्यासा॥
यह विभेद, विद्वेष, विषमता के सब बंधन तोड़ो।
नहीं चरण को पथ पर, पग की ओर पंथ को मोड़ो॥
लक्ष्य-तीर्थ-पाथेय बने अभिनव अभियान तुम्हारा।
नव सर्जन का भवन बने अब संस्कार की कारा॥
युग के मोहक आमंत्रण को तुमने यदि स्वीकारा।
जन-जन में,कण-कण में जय-जागृति का स्वर गुँजारा॥
अरुण उषा का चेतनता अंतस में स्वयं उतारी।
तब यह मरुस्थल बन जायेगा कुँकम-केसर क्यारी॥
याद रखो जन-जन मिलकर ही अजय राष्ट्र रचते हैं।
जनता में ही राष्ट्र-देवता मोद सहित बसते हैं॥
“पंचायती राज्य”