विज्ञान और धर्म परस्पर विरोधी नहीं।

April 1959

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन्)

धर्म के विषय में पूर्व और पश्चिम दोनों की स्थिति बड़ी उलझनपूर्ण है। मनोविज्ञान और समाज विज्ञान, जीव-विज्ञान और मानव-जाति-विज्ञान की खोजों के कारण प्रत्येक प्राचीन धर्म की नींव खोदी जा रही है। विभिन्न मजहबों के भिन्न-भिन्न प्रकार के विवरणों के आधार पर कितने ही लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ईश्वर मनुष्य के हृदय का एक स्वप्न है। इस प्रकार ईश्वर का बहिष्कार करना आजकल एक फैशन हो गया है। ऐसे फैशनेबल लोग, धर्म जीवी लोगों को, जो परलोक की बातें करते हैं, पागलखाने के योग्य बतलाते हैं। प्राचीन काल के सिद्धान्त नये दिमागों में घुसते ही नहीं। वे कहते हैं कि जब हर एक चीज का कारण है तो ईश्वर का भी कारण होना चाहिये। यदि ईश्वर को बिना किसी कारण का अर्थात् स्वयम्भू माना जाय तो जगत को ही उसी न्याय से स्वयम्भू क्यों न मान लिया जाय? यह संसार जैसा त्रुटिपूर्ण दिखलाई पड़ता है वह किसी चतुर और योग्य ईश्वर की कृति नहीं माना जा सकता। हम जो सदैव न्यायपूर्ण संसार की अभिलाषा करते रहते हैं, जिसमें अन्याय का चिन्ह न हो और कोई शोकग्रस्त दिखलाई न पड़े, उससे सिद्ध होता है कि जगत दूषित है। धर्मजीवी या स्वार्थी लोग कुछ भी कहें ऐसी श्रद्धा डूबते हुये मनुष्य के तिनका पकड़ने के तुल्य ही है।

मतमतान्तरों के धर्मग्रंथों में जो किस्से भरे पड़े हैं वे मनुष्यों की नासमझी का लाभ उठाते हैं। उदाहरण के लिये उनमें ईश्वरीय रोष, बदला लेने, शत्रुओं को दण्ड देने, मनुष्यों को अनन्त काल तक असीम कष्ट पहुँचाने, और फिर कभी इन कष्टों के बदले में स्वर्ग, बैकुण्ठ आदि के आनन्द प्रदान करने आदि की जो बातें लिखी हैं उनका मूल्य परियों की कहानियों से बढ़कर नहीं समझा जा सकता। वे उस समय की चीजें हैं जब मनुष्य आदिम अवस्था में था। पुराने जमाने के ग्रंथ वर्तमान समय की समस्याओं को सुलझाने में अधिक सहायक सिद्ध नहीं हो सकते। अगर हम प्राचीन ग्रंथों की ऐसी व्याख्या करें जो आधुनिक अवस्था के अनुकूल हो तो इससे यहीं सिद्ध हो सकता है कि हम उन ग्रंथों का सम्मान करते हैं। पर इसे सचाई या ईमानदारी नहीं कहा जा सकता।

निस्सन्देह हमारे अधिकाँश देश भाई इन विचारों को पढ़कर नाक भौं सिकोड़ेंगे, पर सच बात यही है कि यह कहानी किस्सों का धर्म अब अनपढ़ और अनसमझ लोगों के मतलब की चीज ही रह गया है। विद्वान और विचारक लोग उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखते। अगर हम चाहें कि धर्म को आलोचना से ऊपर रखा जाय तो यह ठीक नहीं। दिमाग की हत्या कर डालना उसका सुधार नहीं कहा जा सकता। मशीन के समान कट्टर धर्म को भविष्य में कोई ठिकाना नहीं मिल सकता।

यह सच है कि मनुष्य की आत्मा को अदृश्य सत्ता के विषय में कुछ जानने की अभिलाषा अनिवार्य रूप से होती है, इसलिये धर्म के किसी न किसी रूप का बना रहना आवश्यक है। जब तक मनुष्य,मनुष्य बना हुआ है, तब तक धर्म के नष्ट हो जाने का खतरा कतई नहीं है। हमारी समस्या केवल धर्म का सुधार करने की है। हम को विश्व के स्वरूप के सम्बन्ध में ऐसे नवीन तथ्य खोज निकालने हैं जो आधुनिक ज्ञान और आलोचना के अनुकूल बैठ सकें।

लोग विज्ञान को धर्म का शत्रु समझते हैं, पर बात ऐसी नहीं है। वरन् जिस अज्ञेय और अनादि सत्ता को खोजने के लिये हम अभी तक अंधकार में टटोल रहे थे उसकी तरफ जाने के लिये ठीक मार्ग दिखलाने का कार्य विज्ञान कर रहा है। जहाँ वह मूल सिद्धान्तों की रक्षा करता है, वहाँ थोथे क्रियाकलापों का खंडन भी करता है। विज्ञान ईश्वर के उन अनेकों स्वरूपों को नष्ट कर देता है जो मनुष्यों ने अपनी सुविधा के लिये बनाये हैं, पर इस विश्व के निर्माण का आधार जो आत्म-तत्व है उस पर जोर देता है। यह कल्पना कि निराकार परमात्मा एक कुम्हार की तरह बैकुण्ठ में प्राणियों को गढ़ता रहता है मूर्खों को समझाने की बात है। इसके विपरीत विज्ञान हमको उस सर्वव्यापी तत्व की ओर प्रेरित करता है जो हममें और प्रत्येक वस्तु में मौजूद है। वह संसार में इस तरह मिला है जैसे समुद्र में नमक या फूल में सुगन्धि। वह सुनिश्चित नियमों के अनुसार कार्य करता है जो किसी भी खास या आम व्यक्ति के लिये बदल नहीं सकते। अगर हम गलती करें तो कोई देवी देवता हमारी रक्षा नहीं कर सकता। कानून तोड़ने वाले के लिये वहाँ हर्गिज क्षमा नहीं है। उसके अनुसार हमारा भूत सुनिश्चित है भविष्य चाहे जैसा स्वतंत्र हो। भविष्य की दुनिया इसी वैज्ञानिक धर्म की ओर जा रही है और जो लोग जबरदस्ती पुराने कट्टरता पूर्ण मतों के लिये लड़ झगड़ रहे हैं वे व्यर्थ में अपनी शक्ति का अपव्यय कर रहे हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118