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April 1959

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हमारा भाग्योदय क्यों नहीं होता? इसलिये कि हम यत्न याने उद्यम नहीं करते। करने से तो सब कुछ होता है, अतः पहले उद्योग करना सीखो। यत्न को ही देव समझकर दिल में धारण करो। निर्दोष प्रयत्न ही देव है और प्रमाद दैत्य! यत्न न्यायाधिष्ठित होना चाहिये, क्योंकि न्याय ही भगवान का रूप होता है और अन्याय शैतान का।

—समर्थ रामदास


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