वेद ही भारतीय संस्कृति का मूल है।

April 1957

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(श्री ‘शंकर’)

भारतीय संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान बहुत गौरव का है। श्रुति (वेद) की दृढ़ नींव के ऊपर ही भारतीय धर्म तथा सभ्यता का भव्य भवन टिका है। हिंदुओं के आचार-विचार, रहन-सहन, धर्म-कर्म को भली-भाँति समझने के लिए वेदों का ज्ञान विशेष आवश्यक है। हमारे महाज्ञानी ऋषियों द्वारा अनुभूत आध्यात्म तत्वों की विशाल राशि का नाम ही वेद है। स्मृति तथा पुराणों में वेद की बड़ी प्रशंसा की गई है। मनु के कथनानुसार जिस प्रकार संसार की वस्तुओं को देखने के लिए आँखों की जरूरत है उसी प्रकार पारलौकिक और आध्यात्मिक तत्वों को जानने के लिए वेद की आवश्यकता है। वेद का विशेष महत्व इस बात से है कि वह बड़े-बड़े कठिन और गुह्य विषयों का रहस्य प्रकट कर देता है। उदाहरणों के लिए “ज्योतिष्टोम” यज्ञ के करने से स्वर्ग मिलता है। इसलिए वह करने योग्य है और ‘कलंज’ भक्षण से हानि होती है, इसलिए वह त्यागने योग्य है। इन विषयों का निर्णय कोई भी विद्वान अपनी विद्या या तर्क के द्वारा नहीं कर सकता। इस प्रकार के अनगिनत प्रश्नों का उत्तर हमको वेद द्वारा ही ज्ञात हो सकता है।

वेद की भारतीय धर्म में इतनी प्रतिष्ठ है कि -कोई विद्वान तर्क द्वारा किसी भी विषय को सिद्ध कर दे, पर यदि वह वेद विरुद्ध जान पड़ेगा तो उनको उसके सामने सर झुकाना पड़ेगा। हमारे अधिकाँश भाई ईश्वर को नहीं मानते उनको ‘आस्तिकता’ से विहीन नहीं कहा जाता, पर जो वेद की प्रामाणिकता को अस्वीकार करते हैं उनको निश्चित रूप में ‘नास्तिक’ की पदवी दे दी जाती है। इस प्रकार वेदों का महत्व हिंदू धर्म में सबसे अधिक है। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में स्पष्ट लिखा है कि धन से भरी हुई पृथ्वी के दान से जितना पुण्य होता है, तीन वेदों के अध्ययन करने से उससे अधिक पुण्य मिलता है।

मनु भगवान ने वेद के जानने वाले विद्वान की प्रशंसा करते हुए कहा है कि “वेद शास्त्र तत्व को जानने वाला व्यक्ति किसी भी आश्रम में रहे, वह इसी लोक में रहते हुए ब्रह्म का साक्षात्कार करता है।”

इस विवेचन से ज्ञात होता है कि यदि हम भारतीय धर्म के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो हमको वेदों का अनुशीलन करना आवश्यक है। मनु ने वेद का अध्ययन न करने वाले ब्राह्मण की बड़ी निंदा की है और कहा है कि जो ब्राह्मण वेद का अध्ययन किये बिना अन्य शास्त्रों को पढ़ने में परिश्रम करता है वह अपने वंश सहित शूद्र के दर्जे को पहुँच जाता है। द्विज का द्विजत्व तभी सार्थक हो सकता है जब वह गुरु से दीक्षा लेकर वेदों का अध्ययन करे।

इसलिए हम कह सकते हैं कि वेद का अनुशीलन प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है क्योंकि इसके बिना वे अपने धर्म और संस्कृति के असली तत्वों की जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते। परंतु आजकल लोगों ने इसकी पूरी तरह से उपेक्षा कर रखी है। अपना पेट पालने के लिए हमारा शिक्षाकाल तो अधिकाँश में विदेशी भाषा और साहित्य का अध्ययन करने में ही निकल जाता है। जो संस्कृत पढ़ते हैं, वे भी काव्य, नाटक आदि के द्वारा आनन्द प्राप्त करने में संलग्न रहते हैं, वेदों की तरफ कोई आँख उठाकर भी नहीं देखता।

क्या यह खेद का विषय नहीं है कि हम काव्य, नाटक आदि के अध्ययन को तो महत्व दें और समस्त भारतीय साहित्य के मूल स्वरूप वेदों की तरफ से उदासीन रहें। साधारण संस्कृत जानने वाले लोगों की बात तो छोड़ दीजिए अष्टध्यायी के जानकार पंडित भी सिवाय सूत्रों को रटने और उन पर वाद-विवाद करने में वेदों के पढ़ने की तरफ रुचि नहीं रखते। जिन विद्वान ब्राह्मणों के ऊपर समाज को मार्ग दिखलाने का उत्तरदायित्व है वे ही संसार के ग्रंथों में शिरोमणि माने जाने वाले इन ग्रंथरत्नों, वेदों से अनभिज्ञ रहें, यह कितनी लज्जा की बात है। काशी, पूना जैसे केन्द्रों में आज भी अनेक वैदिक पण्डित ऐसे मौजूद हैं जिन्होंने ऐसे विपरीत समय में भी घोर परिश्रम करके समस्त वेद मंत्रों को कंठस्थ किया है और वे उनका उच्चारण ठीक उसी भाँति कर सकते हैं जैसा कि वैदिक युग के ऋषि किया करते थे। इन लोगों की वेदभक्ति और सच्ची लगन की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। पर उनमें एक बड़ी त्रुटि यह होती है कि वे वेदमंत्रों के अक्षर तो जानते हैं पर अर्थ को नहीं जानते, इसलिए उनका महत्व कम हो जाता है।

भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी वेदों का अध्ययन बड़े महत्व का है और यही कारण है कि विदेशों के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में वेदों की भाषा का अध्ययन किया जाता है। यह सिद्ध हो चुका है कि संसार के सभी प्रमुख भाषाओं का आदि स्रोत वैदिक भाषा ही है। वैदिक संस्कृत के शब्दों से फारसी, अरबी और उनसे ग्रामि, लैटिन, अंग्रेजी आदि के शब्दों की समानता के बहुत से उदाहरण विद्वानों ने दिये हैं। जैसे-पितृ, पिदर, फादर, मातृ-मादर-मदर, दुहिता, दुख्तर, डॉटर। इस प्रकार के सैकड़ों शब्द पाये जाते हैं जिनका मूल वैदिक भाषा में ही मिलता है। इस दृष्टि से दुनिया भर के भाषा-शास्त्र के जानकार वेदों को बड़े सम्मान की निगाह से देखते हैं। वैदिक भाषा और व्याकरण का विशेषज्ञ अन्य भाषाओं का ज्ञान अपेक्षाकृत बहुत शीघ्र प्राप्त कर सकता है क्योंकि वह उनकी बनावट के मूलतत्व को जानता है।

ऐसे विपरीत समय में वेदों के अर्थ को जानकर जो लोग उनमें बतलाये गये धर्म, आचार, व्यवहार तथा आध्यात्म के सिद्धाँतों को समझने तथा अन्य जिज्ञासुओं में उनका प्रचार करने का उद्योग करते हैं वे अवश्य ही श्रद्धा के पात्र हैं।


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