वेदों के स्वर्णिम सूक्त

April 1957

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प्रति यः शासमिन्वति। ऋग्वेद 1/14/7

जो अनुशासन पालता है- वही शासन करता है।

मागृधः कस्यस्विद्धनम्। यजु. 40/1

धन किसी व्यक्ति का नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र का है।

केवलाधो भवति केवलादी। ऋग्. 10/117/6

जो अकेला खाता है- सो चोर है।

ध्वस्मन्वत् पाथः त्वोतु। ऋग्. 12/118

वह अन्न खाओ जो पाप की कमाई न हो।

वयस्कृत तब जामयो वयम्। ऋग्. 1/31/7

एक ही पिता के पुत्र सब मनुष्य भाई-भाई हैं।

भद्रं भवन्ति नः पुरः। अथ. 20/20/6

गुंडागर्दी नहीं सज्जनता अपनाओ।

रमन्ताँ पुण्या लक्ष्मीः।

लक्ष्मी पुण्यात्माओं के यहाँ रहती है।

सत्यं वक्ष्यामि नानृतम्। अथ. 4/9/7

असत्य नहीं, सत्य ही बोला करो।

ते हेलो वरुध नमोमि। ऋग्. 1/24/6/24

क्रोध को नम्रता से परास्त करो।

अन्यो अन्यं अभिहर्षत। अथ. 3/30/1

एक दूसरे को प्यार और प्रसन्नता प्रदान करो।

कद व ऋतं कद व नृतं क्व प्रत्रा। ऋग्. 1/105/6

क्या उचित है क्या अनुचित यह निरंतर विचारो।

सखा सखाय मतरद् विषूचाः। ऋग्. 7/18/3

सच्चा मित्र वह है जो बुराई से बचावे।

शुचिं पावके ध्रुवं। ऋग्. 7/113

केवल उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं।

अवहितं देवा उन्नयथा पुनः। ऋग्.10/137/1

सज्जनों! जो गिर गये हैं उन्हें फिर उठाओ।

अचेतनस्य पथः मा विदुक्षः। ऋग्. 7/4/7

उस मार्ग पर मत चलो जिस पर बेवकूफ चलते हैं।

घृतात स्वादीयो मधुनश्च वोचत। अथ. 20/35/2

घृत सी बलवर्धक और शहद सी मीठी वाणी बोलो।

केवलो नान्यासाँ कीर्तयाश्चन। अथ. 7/38/4

पर नारी का चिन्तन तक मत करो।

मा गताना मा दीधी थाः। अथ. 8/1

जो गुजर गया उसके लिए शोक करना व्यर्थ है।

ईशानः वधं यवय। ऋग्वेद 1/2/6

मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता आप है।

अतप्त तनूर्न तदायो अश्नुते। ऋग्. 9/83/1

सुख उन्हें नहीं मिलता जो कष्ट से डरते हैं।

अन्नं न निन्द्यात्। तद् व्रतम्। तैत्तरीय 3/7

जूठन छोड़कर अन्न देवता का तिरस्कार न करो।

दस्मत कृणोष्यध्वरम्। ऋग्. 1/74/4

सज्जनों, सत्कार्यों में सहायता किया करो।

उतोरपिः पृणतो नोपदस्यति। ऋग्. 10/117/7

दानी की सम्पदा घटती नहीं बढ़ती है।

अशत्र्चिन्दो अभयं नः कृणोतु। अथ. 6/40/2

मत किसी से शत्रुता करो-मत किसी से डरो।

यज्ञाय गृणते सुगं कृधि। ऋग्. 1/94/9

यज्ञ परायण के लिए सब कुछ सुगम है।

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वर्ष-17 संपादक-श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-4

ज्योति-याचना

(श्री सुमित्राकुमारी सिन्हा)


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