गायत्री उपासना के अनुभव

April 1957

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लकवा ठीक हुआ

श्री मन्नूलाल तिवारी, पिछोर झाँसी से लिखते हैं-मुझ पर सन् 1955 में अचानक एक लकवा जैसे भयंकर रोग का आक्रमण हुआ। मुँह दाँत सभी बंद हो गये। शरीर पत्थर की तरह अकड़ गया। सिविल सर्जन ने जवाब दे दिया। असह्य पीड़ा से छटपटाता हुआ मैं जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहा था। पल-पल पर बेहोशी के दौरे आते थे। इसी बीच गायत्री माता का स्मरण किया। आर्त पुकार मचाई। माता ने ग्राह के मुँह में फंसे हुए गज की तरह मुझे बचा लिया। जल मंदिर शिवपुरी की श्री बाई जी महाराज ने मेरी बड़ी सहायता की। धीरे-धीरे अच्छा होने लगा और कुछ ही दिनों में पूर्ण स्वस्थ हो गया। तब से अब तक अनन्य श्रद्धा से गायत्री उपासना में लगा हूँ। 19 अनुष्ठान कर चुका। 5 बार गायत्री तपोभूमि में माता के दर्शन कर आया।

असह्य पीड़ा दूर हुई।

श्री प्रहलाद जोशी अध्यापक, तनौड़िया से लिखते हैं- मैं कई मास से शारीरिक पीड़ा से संत्रस्त था। पैर का खून जम गया था, कष्ट के मारे मृत्यु की इच्छा होती थी। एक दिन गायत्री यज्ञ की अन्तःप्रेरणा हुई। दूसरे दिन यज्ञ कराया तीसरे ही दिन आश्चर्यजनक रूप से पीड़ा घटनी आरंभ हुई और एक हफ्ते के अंदर पैर बिल्कुल ठीक हो गया।

ड्राइवर मर गया पर मैं बच रहा

अतर्रा (बाँदा) से श्री रामसिंहजी लिखते हैं कि मैं मोटर ठेला से इलाहाबाद होते हुआ कानपुर से अतर्रा आ रहा था। दुर्भाग्य से अतर्रा से 28 मील पर हमारा मोटर ठेला उलट गया। ठेले में 170 मन वजन भरा था। मोटर उलटने से ड्राइवर तो 5 मिनट के अंदर मर गया। दूसरे आदमी का पैर टूट गया। मुझे गायत्री माता ने बचाया। सिर में मामूली चोट आयी। एक ही जगह बैठे हुए लोगों में से मेरा इस प्रकार बच जाना माता का अनुग्रह ही है।

पारिवारिक अशाँति दूर हुई

श्री सुँदरलाल नाग, विरमुड़ी (रायपुर) से लिखते हैं-मैं बहुत समय से गृह जंजाल में बड़ा शोकातुर था। गृहणी बड़ी कर्कशा कटुवादिनी, लड़ाकू थी। जब से मैंने गायत्री उपासना आरंभ की है, घर में बड़ी शाँति रहने लगी है। आर्थिक समस्या भी हल हुई है। अभी-अभी डेढ़ हजार रुपये में 5 एकड़ जमीन खरीदी है। नित्य दस माला जपने के अतिरिक्त दोनों नवरात्रियों में अनुष्ठान करता हूँ।

गृहस्थ सुख में वृद्धि

श्री महावीर प्रसाद शर्मा नान्दा (कोटा) से लिखते हैं-एक बार मेरे वाला (नारु) फोड़ा हुआ और पीलिया रोग के चंगुल में फँस गया। इन विपत्तियों को मैंने गायत्री माता की शरण लेकर पार किया। धर्मपत्नी से मनोमालिन्य का जो क्लेश रहता था वह भी शाँत हुआ। माता की कृपा से एक सुँदर पुत्र उत्पन्न हुआ है। आर्थिक स्थिति भी सुधरी है।

परीक्षा में उत्तीर्ण

श्री जगतराम पस्तोरे गनेशगंज (टीकमगढ़) से लिखते है-मेरे जीवन का पिछला समय ऐसे वातावरण में व्यतीत हुआ है जहाँ नास्तिकता की ही प्रधानता थी। पूजापाठ को ढोंग और बेवकूफी माना जाता था। पिछली बार परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहा तो मेरे मित्र पं. छेदीलाल शर्मा ने बुद्धि वृद्धि तथा साँसारिक सुख के लिए अचूक उपाय गायत्री मंत्र बताया। विश्वास तो न होता था पर परीक्षा के रूप में नवरात्रि में एक अनुष्ठान, माला के अभाव में 108 कंकड़ गिन-गिन कर पूरा किया। परीक्षा में पास हुआ, उसी वर्ष ट्रेनिंग में भी नाम आ गया। अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होकर आज अच्छे ग्रेड पर अध्यापन कार्य कर रहा हूँ। साथ ही गायत्री उपासना का क्रम भी चलता है।

डाकू कुछ बिगाड़ न सके

श्री कृष्णराम हरिभाऊ धोन्डे, वापी (गुजरात) से लिखते हैं-हम लोग वापी से 30 मील दूर घने जंगल में एक आवश्यक काम के लिए बैलगाड़ी में जा रहे थे। रात अंधेरी थी, जंगल बहुत घना था। इस सुनसान में डाकुओं ने हमें घेरा और गाड़ी रोक ली, हमारे पास कुछ धन भी था। बहुत घबराहट हुई। अंत में माता का नाम लेकर गाड़ी के बैलों को जोर से भगाया, उन कमजोर बैलों में न जाने कहाँ से इतनी ताकत आई कि इशारा देते ही घुड़-दौड़ भागने लगे। डाकू बराबर दो मील तक पीछा करते रहे पर पकड़ न सके। अंत में पुलिस स्टेशन आ गया। वहाँ आकर हम लोगों ने शरण ली और जान बचाई। माता जिसकी रक्षा करती है उसे कौन मार सकता है।

दुश्चरित्रता में सुधार हुआ

श्री रामसिंह जी विछियाँवा (इलाहाबाद) से लिखते हैं-मेरे एक मित्र के आचरण कुसंग के कारण बहुत बिगड़ गये थे। वेश्या गमन, नशेबाजी, जुआ आदि से उसने घर का सब पैसा फूँक दिया, स्त्री के जेवर तक बेच दिये। उसके पिता तथा घर के सब लोग बहुत दुखी थे। चूँकि बचपन से ही मेरी मित्रता थी, इसलिए उसके सुधार का संकल्प लेकर मैंने गायत्री उपासना की। उसका बड़ा अच्छा परिणाम हुआ। थोड़े ही दिन में उसके सब दुर्गुण दूर हो गये। घर के सब लोग संतुष्ट हैं। अब वह मित्र भी गायत्री उपासक बन गया है।

आपत्तियाँ टलीं

श्री सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी कोट पुतली से लिखते हैं। गत वर्ष परीक्षा में फेल हो गया, सारे सर्टिफिकेट तथा सारे सामान और रुपयों समेत बक्स चोरी चला गया। नौकरी के लिए सर्वत्र मारा फिरा पर कहीं सफलता न मिली। इन परेशानियों से घबरा कर मैंने गायत्री अनुष्ठान आरंभ किया। जप पूरा होते ही एक छोटी नौकरी मिल गयी, श्रद्धा बढ़ी, सवालक्ष अनुष्ठान किया। अब मुझे साइन्स अध्यापक की अच्छी जगह मिल गई है। आगे अधिक उन्नति होने की आशा है।

बिजली गिरी किंतु सब बच गये

श्री गंगा प्रसाद सिंह जी बरिया घाट (मिर्जापुर) से लिखते हैं-ता. 9 सितंबर 54 को दिन के तीन बजे वर्षा हो रही थी, घर में सब भाई-भतीजे चारपाई पर बैठे थे। अचानक घर पर आकाश से भयंकर गड़गड़ाहट के साथ बिजली गिरी। औरतें जोर से रोने लगीं। मेरे मुँह से भी गायत्री माता की पुकार निकली। बिजली गिरने से छप्पर की खपरैल टूट गयी। घर में धुआँ भर गया। बारूद की सी तेज गंध आ रही थी। दीवाल व नीचे की जमीन जहाँ लड़के बैठे थे बुरी तरह फट गई। मकान से सटा हुआ नीम का पेड़ जल गया। इतना सब होते हुए भी घर के किसी व्यक्ति को कोई क्षति न पहुँची। जहाँ सब लोग बैठे थे, ठीक उनके नीचे की जमीन का बिजली के भयंकर प्रहार से फटना और किसी का बाल भी बाँका न होना सभी दर्शकों के लिए एक आश्चर्य की बात थी। तब से हम लोगों की गायत्री माता पर अनेक गुना श्रद्धा बढ़ गयी है।

अनेकों आपत्तियाँ टली

श्री दुर्गालाल जी रिटायर्ड मजिस्ट्रेट बूँदी से लिखते हैं-गायत्री उपासना से मेरी अनेकों उलझनें दूर हुई हैं। पेंशन मिलने में बड़ी कठिनाइयाँ थीं वे हल हुईं। ज्येष्ठ पुत्र की आजीविका संबंधी समस्या सुलझी। कन्या के प्रसव काल से जो प्राण घातक संकट उपस्थित था वह टला। पौत्री की अत्यंत भयंकर ज्वर एवं मूर्छा से जीवन रक्षा हुई। इस प्रकार मैंने अपने जीवन में गायत्री मंत्र के प्रयोग द्वारा अनेक चमत्कारी लाभ होते देखे हैं।

छूटी हुई नौकरी फिर मिली

श्री सीताराम काशीनाथ राठी, वोरीबली (बम्बई) से लिखते हैं-सन 54 दिसम्बर में मुझे लकवा मार गया। इलाज की हद कर दी गयी पर लाभ कुछ न हुआ। एक मित्र के परामर्श से मैंने मानसिक गायत्री उपासना की। प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लिया, धीरे-धीरे स्वास्थ्य सुधरने लगा। बम्बई प्लास्टिक लि. में नौकरी करता था। वह भी अस्वस्थता के कारण छूट चुकी थी। स्वास्थ्य सुधरा तो पैसे की तंगी की विपत्ति सामने आई। छूटी नौकरी को पुनः प्राप्त करने की कोशिश की तो मना का, दो टूक जवाब मिल गया। सब ओर से निराश होकर सवालक्ष गायत्री अनुष्ठान पर बैठा। अनुष्ठान पूरा होने में दो दिन की देर थी कि कम्पनी का घर बैठे बुलावा आया और फिर काम पर लग गया। गुजर होने लगी। पहले मेरी स्त्री और बालक बार-बार बीमार पड़ते थे सो भी अब नहीं पड़ते। माता की दया से अब आनंद ही आनंद है।

सर्प विष उतरा

श्री वेणी प्रसाद जी ट्रालिमैन, चिचौड़ा (वैतृल) गायत्री मंत्र शक्ति के बारे में लिखते हैं-मैं एक दिन निमौटी गाँव जा रहा था। रास्ते में वर्धा नदी के किनारे साँप के डसने से एक गाय छटपटा रही थी। बहुत लोग अनेक उपचार कर रहे थे, पर कोई लाभ नजर नहीं आता था। मैं गायत्री जपता तो था, पर उसका प्रयोग कभी नहीं किया। उस समय अंतर से प्रेरणा पाकर मैंने थोड़ा सा गंगाजल मंगा कर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर गाय को पिला दिया शेष उसके शरीर पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही गाय एक दम उठ कर खड़ी हो गयी फिर अभिमंत्रित जल पिलाने पर वह चरने लग गयी। इस मंत्र शक्ति को देख मेरे सहित सभी लोग चकित हो रहे थे।

रेल से कटने से बचा

अ.ज.भा. गवली, थाना (बम्बई) माता की कृपा का वर्णन करते हैं-नौकरी से घर वापिस आ रहा था। स्टेशन पहुँचकर चलती ट्रेन पकड़ने की कोशिश की। हैंडल पकड़ कर पायदान पर खड़ा ही हुआ था कि मेरे हाथ से हैण्डल छूट गया और मैं गाड़ी के नीचे लुढ़क गया। पर पता नहीं कैसे मेरे गिरते ही गाड़ी सहसा रुक गयी और मैं थोड़ी सी चोट मात्र खाकर बाल-बाल बच गया। लोग मेरे भाग्य की सराहना कर रहे थे और मैं प्राण रक्षिका अपनी इष्ट देवी गायत्री माता की याद में आँसू बहा रहा था।

मरते-मरते बचा

श्रीराम किशन वडाले, मालेगाँव नासिक से लिखते हैं-गणेश उत्सव की तैयारी में मैं सीन बनाने में लगा हुआ था। एक बिजली का तार वहाँ नीचे लगा हुआ था। अचानक मेरे हाथ का पंजा उस तार पर जा पड़ा और चिपक गया। बिजली का करंट मेरे सारे शरीर में फैल गया और मेरे प्राणों को खींचने लगा। मेरे बड़े भाई और मित्रगण भी वहीं थे, पर कुछ नहीं कर सके। मेरा प्राण जाने ही वाला था-मैंने माता को व्याकुलता से याद किया। बोलने की सामर्थ्य थी ही नहीं। याद करते ही जिस होल्डर में से यह वायर आया हुआ था, वह होल्डर टूट कर नीचे गिर पड़ा और मेरे प्राण बच गये। ठीक उसी क्षण में होल्डर का गिर पड़ना माता की साक्षात कृपा नहीं तो क्या है?

आवश्यकता की पूर्ति

श्री शिवशंकर मिश्र, कामठी, माता की छिपी सी कृपा का वर्णन करते हैं-मेरी लड़की की सगाई स्थिर हो गयी थी पर उसके खर्च का उपाय नहीं हो रहा था। कर्ज माँगने पर कर्ज भी नहीं मिल सका। मैं व्याकुल भाव से माता की प्रार्थना करता रहता। आठ ही दिन विवाह में शेष थे। मेरी व्याकुल प्रार्थना भी बढ़ रही थी। अन्तः प्रेरणा से पुनः महाजन से कर्ज माँगने गया। इस बार उसने बिना हिचक के सात सौ रुपये का सामान और तीन सौ रुपये नगद दे दिया। जब दो दिन शेष रहे तो अनायास ही 18 सौ रुपये का प्रबंध हो गया। मैंने माता को धन्यवाद देते हुए विवाह सम्पन्न किया।

बालक कुचल जाने से बचा

श्री भागीरथ जी हरदिया, कसरावद अपने अनुभव की घटना लिखते हैं-मेरे यहाँ भाई एवं बहन की शादी थी। मैंने अपने दो साथियों के संग पानी की कोठी भरने के लिए कुएँ पर जा रहा था। साथ में मेरी बुआ का आठ वर्ष का लड़का भी था। एक पत्थर पर गाड़ी के चढ़ जाने के कारण वह 7-8 मन भारी कोठी उस बालक पर गिर पड़ी और बालक गिर कर चक्के के नीचे आ गया। उसके पेट पर से चक्का निकल गया। लड़के को वमन होने लगा और छटपटा कर कराहने लगा। मैं व्याकुल होकर माता की प्रार्थना कर रहा था। तुरंत बालक को डॉक्टर के यहाँ लेकर गया। डॉक्टर ने भली-भाँति जाँच कर कहा-लड़का अब पूरा स्वस्थ है। सभी आश्चर्य में थे कि इतनी भारी गाड़ी का भार सहकर वह कैसे पूरा स्वस्थ रह सका। मैं विवाह अवसर पर इस महाविघ्न से बचा लेने के लिए माता को धन्यवाद दे रहा था।

बारूद विस्फोट में भी सुरक्षा

श्री नंदकिशोर तिवारी, धवाली सागर लिखते हैं- तपोभूमि के महायज्ञ की पूर्णाहुति करके घर लौटा जा रहा था। मेरे गुरुवर गायत्री के परम उपासक श्री परमानंद मिश्र जी साथ ही थे। वीना स्टेशन पर उतरकर वे प्लेटफार्म पर बैठकर संध्या करने लगे। मैं उसी जगह खड़ा रहा। उसी समय एक ठेला पर चार बारूद की पेटी ट्रेन से उतारकर कुली लिए आ रहा था। सहसा एक पेटी फूट गयी और स्टेशन पर आग लग गयी। गुरुदेव के बिल्कुल निकट ही छह व्यक्ति अत्यधिक जल गये जिन में तीन अस्पताल जाकर मर गये। मेरा सारा वस्त्र और शिखा तक जल गये। शरीर में दो जगह थोड़े-थोड़े जलने के निशान बन गये, पर मेरे गुरुदेव को जरा सी आँच भी न आयी। उनके निकट के अन्य सभी काफी जल गये। मैं खड़ा होकर माता की संरक्षण लीला आंखें फाड़कर देख रहा था।

माता ने जान बचा ली

श्री भगवान सिंह (एकलवारा) मनावर, धार, अपना अनुभव लिखते हैं-मैंने अब तक करीब साढ़े पन्द्रह लाख गायत्री मंत्र का जप किया है। इसमें मैं दानव से मानव, दरिद्रता तथा डायजेक्शन की बीमारी से मुक्त हुआ हूँ। 30 अक्टूबर 1956 को मैं अपने मकान की ऊपरी छत पर बैठ कर भोजन कर रहा था। अचानक मकान के नीचे का खम्भा टूट जाने से सारा मकान ही गिर गया। मैं भी उसके साथ ही ऊपर से नीचे गिरा। दीवारें गिरीं, चाँदनी के पतरे गिरे, पाट-खपड़े आदि सब ही मेरे ऊपर गिरे, पर न तो मुझे कुछ चोट आई, और न कुछ लगा ही। गाँव के लोग दौड़े आये और सुरक्षित देखकर सभी गायत्री माता की जय-जयकार करने लगे।

सुहाग की रक्षा

श्री फूलवती शर्मा देहरादून से लिखती हैं-मेरे मन में अनायास ही गायत्री उपासना के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ था और नित्य प्रेम से माता की आराधना किया करती थी। एक बार मेरे पतिदेव एक ऊँचे पहाड़ पर गये थे चढ़ने का रास्ता संकीर्ण और खतरों से भरा था। संभल-संभल कर पग रखना पड़ता था, पर पता नहीं क्या होनहार था। सारी सावधानी के बर्तते हुए भी आखिर इनके पैर फिसल ही गये। मीलों की ऊँचाई थी। शरीर को चकनाचूर हो जाने के सिवाय और कोई बात नहीं हो सकती थी। पर माता को अपनी बेटी का सौभाग्य सिंदूर जो बचाना था। थोड़ी दूर तक गिरने पर वे बीच में ही अटक गये, जैसे किसी ने उन्हें अपनी गोद में ले लिया हो। केवल हाथ में थोड़ी चोट आयी, सुरक्षित होकर आकर मुझ से मिले। उस माता के चरणों में हजार-हजार न्यौछावर हूँ।

रक्तपित्त -रोग अच्छा हुआ

श्री नन्हकू मिश्र वीहट मुँगेर से गायत्री उपासना से हुए लाभ के बारे में लिखते हैं-एक बार रात को मेरी छाती में जोरों से दर्द पैदा हुआ। मैं छटपट करने लगा। दवा खाने से जरा भी पीड़ा कम न हुई। कुछ देर बाद खून की कै हुई और मैं बेहोश हो गया। फिर विविध औषधि उपचार होने लगे। समय बीतता गया और प्रतिदिन दर्द तथा रक्त वमन की मात्रा बढ़ती ही गयी। मैं जीवन से निराश होकर मन ही मन गायत्री जपने लगा। रात में माता का स्वप्न में दर्शन हुआ। प्रातः गायत्री जप का संकल्प लेकर स्वयं भी पड़े-पड़े जप करता रहता। अब मैं दिनों दिन रोग की घटती एवं सुधार की अवस्था बढ़ती हुई देखने लगा। दो मास में मैं स्वस्थ हो गया। अब कृतज्ञ भाव से यथासाध्य नित्य जप किया करता हूँ।

दुष्ट रोग से छुटकारा

श्रीराम राज पाण्डेय, जमशेदपुर (सिंहभूमि) माता की कृपा का वर्णन करते हुए लिखते हैं-मैं धातु रोग से जर्जर हो गया था। सब तरह का इलाज कर हार चुका था। एक हितैषी मित्र ने मुझे गायत्री माता का अंचल पकड़ने की सलाह दी। उपासना विधि गुरुदेव से शिक्षा ग्रहण कर प्रारंभ की। काफी सुधार हुआ। फिर टायफैड हुआ। उससे भी रक्षा हुई। अंतिम कर्म भोग रूप में सारे शरीर में भयंकर दर्द शुरू हुआ। रात दिन मेरी चीख से आकाश फटता रहता। एक दिन रात में दर्द इतना बढ़ गया कि मैंने समझ लिया कि आज मेरे जीवन की अंतिम रात्रि है। भोर में थोड़ी देर नींद आयी। स्वप्न में गुरुदेव आश्वासन दे रहे थे-अच्छे हो जाओगे। सूर्योदय होते समय पर नींद खुली। रात्रि की भाँति दर्द ने भी शरीर से बिदा ले ली।

चोर हानि न कर सका

श्री कपिलदेव पाण्डेय, मिर्जापुर लिखते है- मरे पड़ोस के श्री सदानंद जी सपत्नीय गायत्री उपासना करते हैं। एक दिन रात में उसके घर में चोर घुसा। उसके वस्त्रादि उठा ले गया। खड़खड़ सुनकर उसकी पत्नी की नींद टूट गयी और उसने पति को जगाया। आवाज सुन चोर भी शीघ्रता से भाग गया। उन लोगों ने देखा-वस्त्र गायब थे। पुनः वे लोग सो गये। उनकी पत्नी को स्वप्न हुआ। तुम्हारा वस्त्र चोर नहीं ले जा सका है। तुरंत लैम्प जलाकर खोजने से घर के पीछे सभी वस्त्र मिल गये।

पत्थरों की वर्षा से रक्षा

श्रीगोकुलचंद शर्मा, मोडक (कोटा) सपरिवार प्राण रक्षा की कृपा के बारे में लिखते हैं-कृष्णाष्टमी की दूसरी रात में हम लोग पति-पत्नी एवं बच्चों सहित एक कत्तलपोश तिवारी के नीचे सो रहे थे। अचानक दरवाजे का पत्थर टूट जाने से वह पत्थर और उसके ऊपर का कत्तल सभी एक साथ ही नीचे गिर पड़े। जिस पलंग और खाट पर हम लोग सोये थे वह चूर-चूर हो गये। हमारे ऊपर कत्तलों के ढेर थे, परंतु हम लोग बाल-बाल सुरक्षित थे। सभी लोग गायत्री माता की आश्चर्य भरी रक्षा व सराहना कर रहे थे। हम लोग बाहर निकल व कृतज्ञता के आँसुओं से भर रहे थे।

बुरे दिन पलट गये

पं. राम प्रसाद मिश्रा वेदौलिया (बस्ती ) अपना अनुभव लिखते हैं-पिताजी के पास एक हजार बीघा जमीन थी। काफी सम्पन्न थे, पर समय का कुचक्र वह सब कुछ चला गया। घर भी फूट गया। झोंपड़ी में रहने लगे। पेट को भोजन तक नसीब न होता आखिर 16) मासिक की नौकरी की। वह भी बीमारी के कारण छूट गयी। फिर सरयू तट पर गन्ने के खेत में रखवाली के लिए दिन रात वहाँ रहना पड़ा। जहाँ से तीन-तीन मील कोई गाँव न था तथा पास श्मशान घाट था। रात को अकेले रहने में बहुत डर लगता। कपड़ों के अभाव में लकड़ी जलाकर रात काटनी पड़ती। विपत्ति जो करावे सो कम है। एक रात को उस सुनसान जंगल में एक गेरुए वस्त्रधारी बाबा आ निकले। रात को उसी झोंपड़ी में ठहर गये। उनके पास एक पाव कोदों का चावल था जो मिट्टी की हाँडी में पकाया गया वही हम दोनों ने खाया। सबेरे चलते समय उनने मुझे गायत्री मंत्र सिखाया और कहा बेटा यह मंत्र सब सुख संपत्ति का दाता है। तू इसका जाप कर तेरे सब कष्ट मिटेंगे। मैंने उनकी आज्ञा शिरोधार्य की। उसी रोज से दिन फिर गये। खेती में लाभ हुआ। बैल खरीदे। गिरवी रखी हुई जमीन छूटी। कर्ज चुकाया। मेरा विवाह हुआ। अच्छी नौकरी लगी। सब प्रकार की सुख शाँति से घर भर गया। जहाँ रहता हूँ गायत्री का प्रचार करता हूँ।

मोटर का पहिया फिरने पर भी जीवन रक्षा

श्री पूरनमल जी गौतम, कोटा से लिखते हैं-मैं मोटर ड्राइवर हूँ। गत मास साँगोद जाते समय धानाहेड़ा गाँव के पास एक दुर्घटना हुई। तीन औरतें आपस में ठिठोली करती हुई सड़क पर चली आ रही थीं। जैसे ही मोटर बराबर आई की एक औरत ने दूसरी को धक्का मारा जो मोटर के पहिए के बिल्कुल आगे आ गयी। मैंने बहुत बचाया मगर उसके मडगार्ड की ठोकर लग ही गयी और वह पहिए के नीचे आ ही गयी। मैंने सोचा एक पहिए के नीचे कुचली तो भी यदि पीछे के पहिए से बच जावे तो शायद इसकी जान बच जाये। माता का नाम लेकर गाड़ी तेजी से घुमाई। लारी बबूल के पेड़ से टकराई। मैं बुरी तरह घबरा रहा था कि औरत भी मरी गाड़ी भी टूटी। जब नीचे उतरा तो देखा कि वह औरत मोटर के नीचे से खुद ही निकलकर बाहर आ रही है। औरत के हाथ पैर के जिन जेवरों पर होकर पहिया गुजरा था वे तो टूट गये पर उसको जरा भी चोट न आई। लारी में ठसाठस भरी हुई सवारियों में से किसी का बाल भी बाँका न हुआ। माता की इस कृपा को जितना भी धन्यवाद किया जाय कम है।

माता की कृपा के अनेक अनुभव

श्री भगवती प्रसाद तिवारी, बीना से लिखते हैं-गायत्री उपासना के बड़े प्रभावशाली अनुभव मुझे हुए हैं। कितने ही व्यक्तियों को इस महामंत्र की उपासना की प्रेरणा मैंने दी है और उनको आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त करते देखा है। कई वर्ष पूर्व मुझे लकवा हुआ था। बड़ी भयंकर स्थिति थी वह भी मानसिक जप से बिल्कुल अच्छा हो गया। अब इस वृद्धावस्था में माता ने एक पुत्र दिया है। इसका संकेत कुछ दिन पूर्व माता ने मुझे दिया था और लड़के क्या नाम रखा जाय यह भी मुझे नोट करा दिया था। माता की महानता पर मेरा अटूट विश्वास है।

प्रेतात्मा को शाँति

श्री रतन सिंह गोहेल मिठापुर (सौराष्ट्र) से लिखते हैं- गतवर्ष मेरे एक मित्र की मृत्यु मोटर दुर्घटना से हो गई थी। मुझे अनुभव हुआ कि उनकी आत्मा अशाँत है और गायत्री उपासना का पुण्य फल चाहती है। मैंने उस आत्मा की शाँति और सद्गति के लिए जप आरंभ किया। बहुत दिन बाद फिर उस आत्मा का प्रत्यक्ष हुआ तो उसने बताया कि उस गायत्री जप से उसे पूर्ण शान्ति मिली है उसकी एक कामना वासना जो और शेष थी उसे पूर्ण करने का भी प्रयत्न कर रहा हूँ। गायत्री माता जीवित और मृत सभी को शाँति देती है।

क्षय का घाव भर गया

श्री रामकुमार फरक्या रामपुरा से लिखते हैं-मुझे भयंकर क्षय हुआ था सेनेटोरियम में एक मित्र से अखण्ड ज्योति प्राप्त हुई। उससे प्रेरणा लेकर मानसिक गायत्री उपासना आरंभ की। फल यह हुआ कि एक पैसे बराबर गोलाई की कैविटी जो अकसर दो-दो वर्ष में भी बंद नहीं होती तीन मास में ही ठीक हो गयी। डॉक्टर आश्चर्यचकित रह गये।


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