दो हाथ और दो पैर होने से मनुष्य नहीं होता। मनुष्य वह होता है जो दूसरों के दुःख से दुःखी और सुख से सुखी होता है। घर में जब अभाव होता है तो सब हिस्से अनुसार बाँटकर खाते हैं। सारा संसार एक परिवार है इसमें सबका हिस्सा है। मैं चाहता हूँ कोई भूखा नंगा न रहे कोई दुःखी न रहे। यही ईश्वर का भजन है।
- संत विनोबा भावे