चिर यौवन का स्रोत

April 1957

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अमेरिका के भूतपूर्व सर्वोच्च सेनापति जनरल डगलस मैकार्थर की मेज के ठीक सामने सुँदर फ्रेम में मढ़ा हुआ एक सुभाषित सदैव टंगा रहता है, जिसे पढ़कर किसके हृदय में साहस, विश्वास और स्फूर्ति का संचार नहीं होगा।

“यौवन जीवन का कोई नियत समय नहीं अपितु मन की स्थिति है, इच्छा का उद्वेग है, कल्पना की विशिष्टता है, अनुभूतियों का प्राबल्य है, भीरुता पर पराक्रम का प्रभुत्व है, आलस्य के प्रति प्रेम की अपेक्षा साहसिक कार्यों की भूख है।”

“अधिक वर्षों तक जीने से ही कोई वृद्ध नहीं हो जाता। लोगों पर बुढ़ापा तभी आता है जब वे अपनी इच्छा शक्ति का त्याग कर बैठते हैं। आयु शरीर पर झुर्रियाँ डाल देती है। किंतु उत्साहहीनता आत्मा पर झुर्रियाँ डालती है। चिंता, संदेह, आत्म-संशय, भाग्य और निराशा ही वे लम्बे-लम्बे वर्ष हैं जो सिर को झुकाकर विकासोन्मुख आत्मा को मिट्टी में मिला देते हैं।”

“सत्तर का हो अथवा सत्रह का-प्रत्येक के हृदय में रहस्यों के प्रति आश्चर्य तथा नक्षत्रों और नक्षत्रों जैसी वस्तुओं के प्रति मधुर आकर्षण होता है। तभी वह घटनाओं की निर्भीक चुनौती को बच्चों की अतृप्त जिज्ञासा के समान उल्लास और जीवन की क्रीड़ा समझता है।”

“तुम उतने ही जवान हो जितना तुम्हें विश्वास है, और उतने ही बूढ़े हो जितना तुम्हें संदेह है।” “तुम उतने ही जवान हो जितनी तुममें आत्मदृढ़ता है और उतने ही बूढ़े हो जितना तुम्हें भय है।”

“तुम उतने ही जवान हो जितनी तुम्हारी आशा है और उतने ही बूढ़े हो जितनी तुम्हारी निराशा है।” जब तक इस पृथ्वी पर तुम्हारा हृदय, सौंदर्य, उल्लास, साहस, वैभव और शक्ति का संदेश मनुष्य और निस्सीम से प्राप्त करने में समर्थ है तब तक तुम जवान हो।

“जब सारे तंतु ढीले पड़ गये हों और तुम्हारे हृदय का केन्द्र स्थान नैराश्य के शीत और कटुता की बर्फ से ढ़क गया हो तभी तुम्हें अपने को बूढ़ा समझना चाहिए और तब परमात्मा तुम पर अपनी कृपा करें। “


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