विपत्ति के हेतु हमारी कमजोरियाँ हैं।

September 1947

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आज से लगभग 800 वर्ष पूर्व चंगेज खाँ ने भारतवर्ष पर हमला किया था। हमले के लिए वह एक बड़ी सेना अपने साथ लाया था। यहाँ आकर उसने हिन्दू जाति की आन्तरिक अवस्था का कुछ दिन बारीकी के साथ अध्ययन किया और जितनी सेना साथ लाया था उसमें से केवल एक तिहाई साथ रखकर दो तिहाई वापिस लौटा दी। उसका कहना था जिस जाति की आन्तरिक दशा इतनी अव्यवस्थित है, उसे परास्त करने के लिए बहुत बड़ी शक्ति की कोई आवश्यकता नहीं। उसे तो मामूली बल प्रयोग से दबाया जा सकता है।

चंगेज खाँ का अनुमान ठीक निकला। मुट्ठी भर मुसलमानों के काफिले, अफगानिस्तान से आते रहे और जरा-जरा प्रयत्न से विशाल भूखंडों पर शासन जमाने और प्रचुर सम्पत्ति लूट-लूट कर ले जाने में सफल होते रहे। सात सौ वर्ष तक वे मुट्ठी भर लोग राज्य करते रहे। इसके बाद थोड़े से योरोपियन छोटी-छोटी डोंगियों में व्यापार करने आये। कुछ ही दिन तिजारत की थी कि यह तथ्य उनकी समझ में भी आ गया कि हिन्दू जनता अपनी भीतरी निर्बलताओं में इतनी ग्रस्त है कि इसके ऊपर नाम मात्र के प्रयत्न से शासन जमाया जा सकता है। उन्होंने अपनी नगण्य शक्ति से हाथ-पैर फैलाने शुरू कर दिये। कुछ ही वर्षों में उन्होंने मुसलमानों को धकेल कर अपना कब्जा जमा लिया। मुसलमानों से शासन छीनने में अंग्रेजों को कोई बहुत बड़ी कठिनाई नहीं हुई। क्योंकि वे लोग भी किसी शक्ति के कारण शासन नहीं कर रहे थे। केवल हिन्दुओं की कमजोरी अपने सिर पर उन्हें खुद ही चिपकाये हुए थी। अंग्रेजों के एक धक्के में उन्हें लुढ़का कर एक तरफ गिरा दिया और उनकी जगह पर खुद आ विराजे। मुसलमानों की तरह अंग्रेज भी यहाँ मुट्ठी भर ही आये। इतने कम संख्या वाले लोगों का, इतने बड़े देश पर, इतनी शताब्दियों तक ऐसा कठोर शासन रहना, यह एक हैरत की बात होते हुए भी सत्य है।

एक समय हिन्दु जाति बहुत ऊंची दशा में थी, उसका चक्रवर्ती राज्य था, घरों पर स्वर्ण के कलश धरे रहते थे और उत्सवों पर मणि−मुक्ताओं के चौक पूरते थे। दूध-दही की नदियाँ बहती थी। विद्या में, विज्ञान में, युद्ध में, शिल्प में, स्वास्थ्य में, धर्म में सभी बातों में यह देश अग्रणी था। पर था तब, जब एक जीवित जाति के लक्षण उसमें मौजूद थे। जब से उन लक्षणों की कमी हुई तभी से जातीय जीवन भी नष्ट होता गया। आज हम उस स्थिति को पहुँच गये हैं कि किसी दूसरे के सामने वास्तविक बात कहते हुए शर्म आती है और खुद विचारते हैं तो आत्मग्लानि से छाती फटने लगती है।

इस देश में मुसलमानों की संख्या करीब एक चौथाई है। हिन्दू उनसे तीन गुने अधिक हैं। इस पर भी सब जगह हिन्दुओं की ही दुर्दशा होती है। जिन प्रदेशों में वे बहु संख्यक हैं वहाँ भी और जहाँ अल्प संख्यक हैं वहाँ भी उन्हें ही पिटना पड़ता है। गत एक वर्ष से मुसलिम लीग ने जो नृशंस “सीधी कारवाही” की है, उसके परिणाम किसी से छिपे नहीं हैं। हजारों निरपराध बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुषों को त्राहि-त्राहि करते हुए प्राण गंवाने पड़े। यह निर्बाध नृशंसता इस प्रकार बढ़ चली कि हमें उनकी मन माँगी मुराद पाकिस्तान देकर किसी प्रकार अपनी जान छुड़ानी पड़ी। इस पर भी अभी पीछा छूटता नहीं दिखता। अनेकों स्थानों के अनेकों समाचार इस आशंका को पुष्ट करते हैं कि आत्म समर्पण कर देने पर भी स्थायी शान्ति के दर्शन अभी दुर्लभ ही हैं। “हंस के लिया पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिन्दुस्तान” के नारे आये दिन हमारे कान सुनते हैं। और नारे लगाने वालों की कथनी और करनी की एकता के पिछले उदाहरणों को देखकर इन नारों को व्यर्थ की बकवास मानने को जो नहीं चाहता।

गत पन्द्रह अगस्त को एक हद तक राजनैतिक स्वाधीनता मिल गई है। शासन सत्ता हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के नेताओं के हाथ में आ गई है। पाकिस्तानी शासक जिस नीति का आचरण कर रहे हैं उसके बावजूद यहाँ फूँक-2 कर पैर रखा जा रहा है। गौवध बन्दी जैसी सर्वमान्य न्याय पूर्ण आवश्यक बात को पूरा कराने के लिए इतनी झिझक अनुभव हो रही है। इसे अपनी कमजोरी के अतिरिक्त और क्या कहा जाय?

आक्रमणकारियों का बढ़ता हुआ आतंक और आत्म रक्षा की विवशता अपनी कमजोरी के कारण ही सामने उपस्थित है। यह कमजोरी जब तक रहेगी तब तक यही स्थिति बनी रहेगी जो नौ सौ वर्ष से हमारे सामने मौजूद है। आन्तरिक कमजोरी एक ऐसा भयंकर कारण है, जिसका कोई न कोई रूप सामने आ ही खड़ा होता हैं। भेड़ जहाँ जाती हैं उसकी मुँडाई होती है। बेचारे बकरे के लिए हिंसक पशु, माँसाहारी मनुष्य ही नहीं देवी देवता भी घात लगाये बैठे रहते हैं, उसकी कमजोरी के कारण उसकी जान का खतरा हर जगह साथ लगा फिरता है। हमारी आन्तरिक कमजोरियों ने हमारे जातीय जीवन को खोखला कर दिया है, फलस्वरूप हिन्दू जाति के पास बहुत बड़ा जनबल, धनबल, बुद्धिबल होते हुए भी उसे नगण्य विघ्नों के नीचे अपना मस्तक नीचा करना पड़ता है। यह कमजोरियाँ जब तक रहेंगी तब तक मुसीबतों का अन्त नहीं उनका रूपांतर होता रहेगा, तौर तरीके बदलते रहेंगे एक आपत्ति समाप्त न होने पायेगी कि दूसरा नया संकट सामने आ खड़ा होगा। और जिस तेजी से हिन्दू जाति का ह्रास हो रहा है उसी गति से होता रहा तो थोड़े समय बाद आर्य संस्कृति एक ऐतिहासिक वस्तु रह जायगी।

यदि वस्तुतः हमें अपना अस्तित्व प्यारा है, यदि वास्तव में दूसरों द्वारा अपने को पद दलित एवं तिरष्कृत होने में हमें बुरा लगता है, यदि हर जगह दबना, पिटना, लुटना और सताया जाना हमें खटकता है तो इसके लिए गंभीरतापूर्वक उन कमजोरियों को तलाश करना होगा जिनके कारण हमारी आये दिन दुर्दशा होती है। बाहरी सहायता से कुछ तात्कालिक लाभ भले ही हों, पर स्थायी सुधार तभी होगा जब हम अपने भीतर छिपी हुई उन कमजोरियों को निकाल देंगे जो निमंत्रण दे-दे कर नित नई आपत्तियों को बुलाया करती हैं।

चीन स्वतंत्र हैं पर उस स्वतंत्रता से वहाँ की जनता को कोई राहत नहीं मिली। हम आज जैसे हैं वैसे ही भविष्य में भी रहेंगे तो हमें जो स्वतंत्रता प्राप्त हुई है वह भी हमारे लिए कुछ विशेष लाभदायक सिद्ध न होगी। बलवान ही चैन और सम्मान के साथ रह सकते हैं। हिन्दू जाति में इस दशा तक पहुँचाने वाले कौन-कौन दोष घुस गये हैं और उनके निवारण के क्या उपाय हैं, इस संबंध में अगले मास से सुविस्तृत चर्चा की हम एक लेख माला आरंभ करेंगे।


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