मलेरिया से बचिए।

September 1947

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री वाचस्पति शर्मा)

आजकल कोई बिरला ही घर होगा, जिस में कोई न कोई मलेरिया ज्वर का शिकार न होता हो। विशेष कर वर्षा ऋतु के मध्य से लेकर शरदकाल के पूर्वार्ध तक इस ज्वर का अधिक प्रकोप रहता है।

डाक्टरों के मतानुसार मलेरिया का कारण मलेरिया के मच्छरों द्वारा काटना है। मच्छरों के काट ने से शरीर के रक्त में एक प्रकार का विष फैल जाता है, और उसी से ज्वर का प्रकोप हो जाता है।

परन्तु वैद्यक के मत से निम्न कारण हैं- रूखे हलके और शीतल पदार्थों का सेवन करना। अधिक परिश्रम करने, वमन, विरेचनादि पंच कर्मों के अतियोग, मल-मूत्रादि के वेग को रोकने तथा उपवास था व्रत करने शस्त्रादि से चोट लगने, विधि हीन स्त्री प्रसंग, घबराने, शोक करने, अत्यन्त रक्त स्राव, रात में जागने, आदि कारणों से वायु कुपित होकर रोग उत्पन्न करती है।

जब मलेरिया का पूर्ण प्रकोप हो जाता है तो उस समय निम्न लक्षण दिखाई देते हैं। सर्दी लगना, कंपकंपी होना, ज्वर कभी मन्द कभी तेज, कण्ठ, होठ, मुख का सूख जाना, निद्रा का तथा छींकों का न आना, सिर, हृदय और शरीर में दर्द होना, मुख का स्वाद बिगड़ जाना, पाखाने का न होना, यदि हो तो सूखा और थोड़ा सा होना। आदि-2 लक्षण मलेरिया या वात ज्वर के हैं।

हमारा विश्वास है कि जब तक हमारा आहार-विहार ऋतु अनुकूल है और उसमें कहीं पर भी कोई भूल नहीं हैं तो कभी मलेरिया का क्या किसी भी रोग का प्रकोप हम पर नहीं हो सकता। क्योंकि ‘सर्वेषामेव रोगाणाम् निदानं कुपिताः मला’ सब रोगों का मूलभूत कारण है मलों का कुपित होना। और मलों का प्रकोप होता है, आहार-विहार की गड़बड़ी से या ऋतु विपरीत खान-पान से। अतः रोगों से मुक्ति पाने का सहज और सरल उपाय यही है कि अपने आहार-विहार को ऋतु अनुकूल बनावें। जिससे मलों का प्रकोप न होने पावे।

वर्षा की ऋतु में रूखे, खट्टे और ठण्डे आहार से बचकर हल्के और चिकने वात नाशक भोजन करना और भ्रमण करना तथा मच्छरों से बचे रहने के लिये सूखे स्थान में रहना चाहिये। साथ ही इस बात का भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये-कि प्रातःकाल पेट भली प्रकार से साफ होता रहे, किसी प्रकार की विबन्धता (कब्जी) न होने पावे। क्योंकि यही एक सब रोगों की जड़ है। आजकल के मौसम में नींबू और हरी मिर्चों का विशेष तौर पर उपयोग करना चाहिये। दो-चार तुलसी दल और दो चार काली मिर्च नित्य खाते रहने से मलेरिया से बचाव हो सकता है।

यदि बुखार का प्रकोप हो ही जाये तो निम्न प्रकार से उसका उपचार किया जा सकता है।

ज्वर आते ही औषधि विशेष का प्रयोग करने का यत्न मत करिये। अपितु स्वाभाविक तौर पर उनका पाचन होने दीजिये। क्योंकि ज्वर की प्रथम या नवीन अवस्था में औषध प्रयोग करने से मल अन्दर रुक जाने का भय है। मलों का भीतर शरीर में रोकना और भी रोग को निमंत्रण देना है। अतः कम से कम 3 दिन तो रोगी को औषध न देकर उपवास कराना ही हितकर है। इस बीच में कोई पाचक पेय पदार्थ आदि देना चाहें तो दे सकते हैं अन्यथा केवल दुग्ध पान पर ही रोगी को रखना चाहिये। फलों का रस भी दे सकते हैं।

(2) मलेरिया पर डॉक्टर लोग कुनीन को ही सर्वोत्तम औषधि मानते हैं। उनका कथन है कि मलेरिया कीटाणुजन्य है और कुनीन कीड़ों का विष नष्ट करके समाप्त कर देता है। परन्तु आयुर्वेद के मत से कुनीन दोषों को निकालती नहीं है अपितु शरीर में रोक देती है और रुके हुए दोष दूसरे और रोगों को खड़े कर देते हैं, इसलिये कुनीन जैसी औषधियों का प्रयोग न करके ऐसी औषधियों का प्रयोग करें जिससे मलों का दोष शान्त हो जाय और पुनः किसी रोग के कारण वे कुपित दोष न बन सकें इस लिए आयुर्वेद की औषधियों का व्यवहार करना सर्वोत्तम हैं।

(3) अमलतास का गूदा, पीपला मूल, नागरमोथा, कुटकी और बड़ी हरड़ समान भाग लेकर जौ कूट लें। इसमें से दो तोले दवा एक लीटर पानी में पकावें जब आधा लीटर रह जावें तो ठंडा करके थोड़ी मिश्री मिला कर पी लें। इसके पीने से सब दोष पचते हैं तथा पेट साफ होकर ज्वर भी उत्तर जाता है।

(4) त्रिफला, हल्दी, दारु हल्दी, कटेरी, कटाई, कचूर, त्रिकुटा, पीपला मूल, मूर्वा, गिलोय, धमासा, कुटकी, पित्त पापड़ा, नागर मोथा, त्रायमाण, सुगन्धवाला, नीम की छाल, पोहकर सूल, मुलैठी, कुड़ेकी छाल, अजवायन, इन्द्र जौ, भारंगी, सहजनाबीज, सोंठ, जावित्री, बच, दालचीनी, पदमाख, खश, चन्दन, अतीस, खरैटी शालपर्णी, (सरिवन) पृष्टिपर्णी (पिथिवन) वायविंडग, तगर, चीता, देवदार, चव्य, पटोल पत्र, जीवक, ऋषभक लौंग, बंसलोचन, पुण्डेरिया, सुगन्धद्रव्य, काकोली, तेजपात, तालीसपत्र इन सबको समान भाग लेकर कूट पीस कर कपड़े में छान लो यही सुदर्शन चूर्ण है।

4 माशा चूर्ण गर्मजल से जवान को और बालक को एक माशे से डेढ़ माशे तक देने से सब प्रकार का ज्वर नष्ट होता है।

(5) नीम पत्ते दस भाग, हरड़ एक भाग, आमला एक भाग, बहेड़ा एक भाग, सोंठ एक भाग, पीपल एक भाग, अजवायन पाँच भाग, सैधानौन एक भाग, संचर नमक एक भाग, काला नमक एक भाग और जवाखार एक भाग। सबको कूट छानकर रख लो और सुदर्शन की तरह व्यवहार में लाओ।

इसके खाने से भी समस्त प्रकार के कठिन से कठिन ज्वर भागते हैं। विशेष कर मलेरिया के लिये तो ये दोनों योग राम बाण सिद्ध हुए हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: