यह फैशन परस्ती छोड़िए।

September 1947

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बनावटी, अस्वाभाविक, रूप से, दूसरों को भ्रम में डालने या आकर्षण में फंसाने के लिए जो मायाचार किया जाता है वह दंभ कहलाता है। दंभ की शास्त्रकारी ने पाप में गणना की है। क्योंकि उसके मूल में अनीति का, अहंकार का, असत्य का, ठगी का दुर्भाव काम करता है। दंभी मनुष्य ऐसे प्रपंच रचता है जिससे वह दूसरों की दृष्टि में जैसा कि वह वास्तव में है उससे अधिक ऊंचा जंचे। इस प्रकार के आडंबर से वह दूसरों के ऊपर अपना आतंक जमा कर सम्मोहित करता है और अपने अहंकार को तृप्त करता है।

इस दंभ को, भड़कीली फैशन के रूप में हम अपने चारों ओर फैला हुआ देखते हैं। जिन कपड़ों की स्वास्थ्य की दृष्टि से तनिक भी आवश्यकता नहीं है उन्हें फैशन के नाम पर बेतरह लादे हुए लोग दिखाई पड़ते हैं। गर्मी की ऋतु में बनियान, कमीज, वासकट, कोट, चार-चार कपड़े लादे हुए देखकर, देखने वालों का जी अकुलाने लगता है। शरीर से निकलने वाली उष्णता को शान्त करने के लिये पसीना सुखाने के लिए हवा की आवश्यकता महसूस होती है परन्तु बाबू जी गले को नैकटाई से और कस देते हैं जिससे देह तक हवा न पहुँच सकें। पतलून के कारण घुटने मोड़ने में कठिनता पड़ती हैं, कसर में कसी हुई बेल्ट के कारण पाचन क्रिया में बाधा पड़ती है, परन्तु फैशन के नाम पर उसे धारण किया जाता है। योरोप के ठंडे मुल्कों में जो पोशाक भयंकर सर्दी से प्राण बचाने के लिए पहनी जाती है वह भारत जैसे गरम देश के लिए बिल्कुल निरर्थक ही नहीं उलटी हानिकर भी है, इस बात को बाबूजी भली प्रकार जानते हैं। जाड़े के दो-तीन महीनों को छोड़कर शेष नौ-दस महीने बराबर उससे असुविधा अनुभव करते हैं फिर भी उसे छोड़ते नहीं, कारण इसका एक ही है। अंग्रेजी पोशाक पहन कर आँशिक रूप से उन्हें अपने में अंग्रेज होने जैसा अहंकार आता है। उस अहंकार को इस दंभ पूर्ण फैशन से वे तृप्त करते हैं।

केवल अंग्रेजी फैशन की ही बात नहीं, देशी फैशन भी उसके जोड़ के मौजूद हैं। बढ़िया, कीमती से कीमती, अधिक से अधिक वस्त्र लादने की लोग यथा-संभव कोशिश करते हैं। जिन कपड़ों को लोग घर पर साधारण स्थिति में नहीं पहन सकते उन कीमती कपड़ों को पहन कर हाट बाजार में, नाते रिश्ते में, गोष्ठी, पार्टी में जाते हैं। देखने वाले भी जानते हैं कि इतने कीमती कपड़े नित्य पहनने की इनकी हैसियत नहीं हैं, यह पोशाक जाने-आने के लिए सुरक्षित रखी रहने वाली है। एक-दूसरे की पोल को जानते हैं, फिर भी दूसरे को चकमा देने की कोशिश करते हैं। अनावश्यक पैसा खर्च होता है, शरीर को कठिनाई पड़ती है, उन वस्त्रों की साज संभाल विशेष रूप से रखनी पड़ती है, इतना सब होते हुए भी यह भेद छिपा नहीं रहता कि बाबू जी इतने अमीर नहीं हैं कि ऐसी कीमती पोशाक नित्य पहनें यह तो दिखाने वाले हाथी के दाँत हैं। अब विचार कीजिए कि ऐसी स्थिति में उस तड़क-भड़क भरी खर्चीली पोशाक का क्या महत्व रहा? उसे धारण करने से क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ? दूसरों को मूर्ख बनाने के प्रयत्न में यह फैशन परस्त लोग स्वयं मूर्ख बनते हैं।

केवल वस्त्रों तक ही फैशन सीमित नहीं रहती। वेश विन्यास इस युग की एक कला का रूप धारण करता जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से नहीं सजावट की दृष्टि से, आकर्षण की दृष्टि से, अपने को अधिक रूपवान सिद्ध करने की दृष्टि से यह सब होता है। जूता, टोपी, छड़ी, इत्र, फुलेल, क्रीम, पाउडर सब पर फैशन की छाप रहती है, रंगीला पन, हर चीज से टपकता है। विलासिता और फैशन की सामग्री दिन-दिन बढ़ती जाती है। उनका खर्च दिन-दिन अधिक होता जाता है।

वे लड़कियाँ और स्त्रियाँ जिन तक पश्चिमी सभ्यता का असर पहुँच गया है। पुरुषों से इस मामले में चार कदम आगे हैं। वे काली मेम साहब बनने का भरसक प्रयत्न करने में अपने बस की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती। देशी फैशन में भी तितली और परी बनने की, आभूषणों से लदने की, होड़ सी लगी हुई है। चेहरे को पाउडर से पोतना, होठ और नाखूनों को रंगना, स्त्रियों का एक प्रिय शृंगार बन गया है। भड़कीली कीमती पोशाकें पहने बिना स्त्रियाँ घर से बाहर पाँव नहीं रखतीं। इस कीमती भड़कीली फैशन से सजकर जब वे घर से बाहर जाती हैं तो उनके मन में अपने फैशन का अहंकार रहता है, ऐसे सजे-बजे प्राणी की स्वाभाविक इच्छा यह होती है कि दूसरे उसके सजाव शृंगार को देखें। यह प्रदर्शन भावना का तामसिक बीज अनिष्ट कर दुर्घटनाएं उत्पन्न करता है उससे ऐसी समस्याएं उठ खड़ी होती हैं जो सतीत्व के मार्ग में बड़ी बाधक सिद्ध होती हैं।

एक बार एक नौजवान को लाहौर की सड़क पर एक भले घर की लड़की से भद्दा मजाक करते हमने देखा। हम लोग कई आदमी थे, उसे रोक लिया गया। झगड़ा देखकर काफी भीड़ जमा हो गई। उस नौजवान का कहना था कि ‘मैंने उस स्त्री को वेश्या समझा था।’ बात चाहे उसकी बनावटी ही क्यों न हो किन्तु इसमें शक नहीं कि वह लड़की असाधारण रूप से अपने को तितली बनाये हुई थी। रास्ता चलते आदमी उसकी ओर घूर-घूर कर देखते थे। ऐसी फैशन परस्ती उस सजे-बजे प्राणी के मन में और देखने वाले के मन में अनायास ही कुसंस्कार उत्पन्न करती है।

भड़कीली फैशन के दंभ के मूल में अमीरी का या रूपवान होने का अहंकार छिपा रहता है। यह अहंकार अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वथा हानिकारक है। यदि इसका पोषण होता है तो वह अधिक मजबूत एवं परिपुष्ट बन जाता है। तब वह और अनेक बुराइयों की सृष्टि करता है। ‘श्रम से घृणा’ ऐसी ही एक बुराई है जो मिथ्या अहंकार के कारण उत्पन्न होती है। बाबूजीयों और बबुआइनों को हम इस बुराई में बुरी तरह फंसा हुआ देखते हैं। अपना सूटकेस अपने हाथ में लेकर चलना बाबूजी की शान के खिलाफ है। बबुआइनें अपने छोटे बच्चे को गोदी में लेकर चलते हुए अपनी तौहीन अनुभव करती हैं। पढ़ी-लिखी लड़कियाँ, कहारिन और रसोईदारिन की मुँहताजी करती हैं, चूल्हा चौका करना पड़े तो इसे अपना दुर्भाग्य समझती हैं। जहाँ कुछ समय पूर्व पति के भोजन के समय पंखा करना, धोती, धोना, पैर दबाना स्त्रियों का नित्य कर्म था वहाँ अब यह सब बातें ‘श्रम से घृणा’ के कारण छोड़ दी गई हैं। दांपत्ति जीवन की मधुरता भी इसके साथ साथ ही छूटती जा रही हैं।

भड़कीली फैशन से आध्यात्मिक दंभ बढ़ता है। श्रम से घृणा उत्पन्न होती है। साथ ही उससे अनेकों प्रकार की सामाजिक बुराइयाँ बढ़ती हैं। बड़े लोगों की देखा−देखी छोटे लोग भी आपका ‘बड़प्पन’ प्रदर्शित करना चाहते हैं। वे भी फैशन बनाना चाहते हैं। किन्तु आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी होती नहीं, फैशन के लिए पैसा चाहिए, इस अन्तर्द्वन्द्व के कारण मनुष्य पतन के पथ पर चलता है। चोरी, उठाईगीरी, ठगी, अपहरण अन्याय किसी भी प्रकार से पैसा प्राप्त करने की कोशिश करता है। एक व्यक्ति के पाप जीवी हो जाने से अप्रत्यक्ष रूप से अनेकों व्यक्तियों पर इसका कुप्रभाव पड़ता है। कितने ही पीड़ित होते हैं, उस पीड़ा की प्रतिक्रिया से कितने ही अन्य प्रकार की बुराइयों पर उतारू होते हैं, कितने ही उन पाप जीवियों के प्रभाव से उसी मार्ग के अनुगामी बन जाते हैं इस प्रकार फैशन का भूत एक तक ही सीमित नहीं रहता हैं, एक से अनेकों पर अपना शैतानी प्रभाव डालता हैं और समाज में अशान्ति की शृंखला उत्पन्न कर लेता है। अति की फैशन बनाने वाले व्यक्ति आमतौर से अविश्वस्त, नैतिक धरातल से गिरे हुए, समझे जाते हैं। गरीब श्रेणी का व्यक्ति यदि बहुत चटक-मटक बनाता हो तो उसे उठाईगीरा कहा जा सकता है। अमीर यदि अधिक टीमटाम बनाता हो तो उसे दंभ में मदहोश कह सकते हैं।

यूरोप के देशों में इस फैशन परस्ती ने स्त्रियों के सतीत्व पर घातक प्रहार किया है। चटक-मटक का उद्देश्य दूसरों को आकर्षित करना है। यह आकर्षण केवल विनोद तक सीमित नहीं रहता वह अवाँछनीय मेलजोल उत्पन्न करता है। रूप का गर्व, दूसरों को अपना दास बनाकर ही तृप्ति अनुभव करता है। बढ़ती हुई स्त्री स्वतंत्रता, फैशन से उत्पन्न हुए रूप गर्व के संमिश्रण के कारण सतीत्व धर्म से दूर भागती जा रही है। योरोप के होटलों में व्यभिचार की रोमाँचकारी क्रीड़ाएं नग्न नृत्य किया करती हैं। छोटे-छोटे प्रलोभनों के लिए सतीत्व का विनिमय होता रहता है। यह हवा हमारे देश में अपने ढंग से आ रही हैं। फैशन के वस्त्र आभूषणों की इच्छा को पूर्ण करने के लिए गुपचुप व्यभिचार जिस भयंकर रूप से हमारे समाज में चल रहा है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि हम भी योरोप से बहुत पीछे नहीं हैं। हमारी बेटियाँ और बहनें फैशन की ओर जिस सत्यानाशी वेग से दौड़ रही हैं उसके घातक परिणामों की कल्पना करके कलेजा धड़कने लगता है।

चिंगारी आरंभ में एक छोटी चीज है, पर अन्त में वह एक सर्वग्रासी घातक वस्तु बन जाती है। एक छोटा सा कुविचार यदि मन में पलता रहता है तो अन्त में वह जीवन को नारकीय पापों के गर्त में डुबा सकता है। फैशन परस्ती स्थूल दृष्टि से देखने में एक बहुत छोटी बुराई मालूम पड़ती है। चाय सिगरेट जैसे नशीले पदार्थों की भाँति अभ्यास में आजाने पर फैशन परस्ती में उसके उपासकों को कोई बुराई तक दृष्टिगोचर नहीं होती। कई माता-पिता लाड़चाव में अपने बालकों के ऊपर पर्त के पर्त कपड़े चढ़ाये रहते हैं, चाँदी सोने के ऐसे खुरदरे जेवर पहनाये रहते हैं, चाँदी-सोने के ऐसे खुरदरे जेवर पहनाये रहते हैं जो उनके शरीर में चुभते और कष्ट पहुँचाते हैं। जेवर और कपड़ों के पर्त लाद देने से बालक “बड़े आदमी का बालक” लगता है या नहीं यह तो देखने वालों की आँखें जानें, पर हम इतना जानते हैं कि इसका बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। शरीर से निकलने वाली गंदी हवा बाहर नहीं निकलती, बाहर की शुद्ध हवा त्वचा तक नहीं पहुँचती, जेवर चुभने से नींद टूटती है और कष्ट से वह बार-बार रो पड़ता है। ऐसी दशा में बालकों को आये दिन बीमार रहना स्वाभाविक ही है। जो अभिभावक छोटेपन से अपने बालकों को श्रमशील न बना कर उन्हें फैशन परस्ती सिखाते हैं वे अनजान में उनके साथ शत्रुता का बर्ताव करते हैं।

फैशन परस्ती का विरोध करने का हमारा तात्पर्य भड़कीली, अस्वाभाविक, रंग−बिरंगी, खर्चीला, विचित्र काट-छाँट की पोशाक से है। शरीर की लीपा-पोती तो बड़ी ही उपहासास्पद है। होठ, नाखून मसूड़े, चेहरा आदि अंगों को पोतने के लिए तरह-तरह के डिब्बे और शीशियाँ बाजारों में लाखों रुपये के बिकते हैं। इन्हें शरीर पर लीप-पोत कर मनुष्य सुन्दर तो क्या बनेंगे असल में कुरूप बन जाते हैं। रंगों से पोतना अपनी रूप-हीनता का भद्दा विज्ञापन है। सभ्य समाज में ऐसे नर-नारी उपहासास्पद, हलके बौद्धिक धरातल के समझे जाते हैं।

सादगी अपने आप में एक पूर्ण फैशन है। स्वच्छता पूर्ण सादगी में एक सात्विक सजावट है जो शान्तिपूर्ण सद्भावों का आविर्भाव करती है। स्वदेशी, खादी के स्वच्छ धुले हुए आवश्यक कपड़े शरीर को भली-भाँति सुसज्जित कर देते हैं। धोती, कुर्ता पहने हुए सादगी पसंद व्यक्ति कैसा सुन्दर एवं भला मालूम पड़ता है। सादा वस्त्रों के साथ साथ अन्तःकरण में एक नम्रता, गंभीरता एवं विवेकशीलता की तरंग उत्पन्न होती है। फैशन का भूत, साहब बहादुर, जेन्टलमैन, सेठ या अमीरी का बाना पहनकर मनुष्य का हृदय अहंकार, चंचलता एवं दंभ से लद जाता है किन्तु निर्मल स्वदेशी खद्दर के वस्त्र पहनने पर बिल्कुल दूसरी ही बात हो जाती है जैसे रंगमंच पर खेल करने वाला पात्र जब जनानी पोशाक पहन लेता है तब स्त्रियों के से हावभाव और शब्द प्रयोग करता है किन्तु वही नर जब मर्दानी पोशाक पहन कर स्टेज पर आता है तो उसके हावभाव एवं शब्द दूसरे प्रकार के हो जाते हैं। फैशन के साथ एक संस्कृति का संबंध होता है, योरोपियन, पोशाक पहनने वाले में साहबी बू घुस पड़ती है, इसी प्रकार सादा, शुद्ध, भारतीय संस्कृति से संबंधित पोशाक पहनने वाले में सात्विकता का, धार्मिकता का समावेश अनिवार्य रूप से होता है।

हमारी बहनें, बेटियाँ, माताएं यदि रंग-बिरंगे, खर्चीले, आकर्षक, वस्त्राभूषण न पहन कर श्वेत, शुद्ध, स्वच्छ, स्वदेशी, आवश्यक मात्रा में धारण करें तो एक दैवी सजावट से सुसज्जित प्रतीत होंगी। उनके भावों, विचारों, शब्दों एवं आकाँक्षाओं में जमीन आसमान का अन्तर हो जायगा। सात्विक भावों की वृद्धि होने से वे गृहस्थ जीवन के वातावरण में स्वर्गीय आनन्द का आविर्भाव कर सकती हैं। आदर्श पत्नी, आदर्श माता, और आदर्श पुत्री बनने की इच्छा रखने वाली देवियों का प्राथमिक कर्त्तव्य यह है कि वे वर्तमान भड़कीली फैशन से सच्चे हृदय से घृणा करें, उसे आसुरी चक्र समझ कर दूर से ही नमस्कार करें। सौभाग्य सूचक, आवश्यक आभूषणों को पर्याप्त समझें, जेवरों से लदने की तृष्णा से अपना पिण्ड छुड़ावें। सादे शुद्ध स्वदेशी, वस्त्रों को धारण करें।

आप सादगी पसंद कीजिए अपने विचारों की भाँति वेशभूषा को भी सात्विक रखिए। फैशन परस्ती छोड़िए क्योंकि यह सब दृष्टियों से आपके लिए अनावश्यक एवं हानिकर है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118