वेद की अमर वाणी

September 1947

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तद्दूरे तद्वन्तके

यजुर्वेद 40, 5

वह परमात्मा अज्ञानियों के लिए दूर और ज्ञानियों के लिए समीप है।

अवहितं देवा उन्नयथा पुनः

ऋग् 10, 137, 1

जो गिरे हुओं को फिर उठाते हैं वे देव हैं।

शतहस्त समाहर, सहस्रहस्त संकिर

अथर्व 3,24,5

सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से दान करो।

पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा

ऋग्वेद 3, 8, 5

ज्ञानवान, विवेक द्वारा कर्मों को पवित्र बना लेते हैं।

भस्मान्त् शरीस्म्।

यजुर्वेद 40, 15

यह शरीर एक दिन राख में मिल जाने वाला है।

तमसोमा ज्योतिर्गमय।

शत पथ 14, 3, 1, 30

हे प्रभो हमें अन्धकार से बचा कर प्रकाश की ओर ले चलो।


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