प्रतिष्ठा का ध्यान रखना और बात है, तथा अपने को बड़ा समझना और बात है।
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संसार बलवान को ही नत मस्तक होता है उसी की प्रतिष्ठा और मान करता है, इसलिये यदि तुम अपनी प्रतिष्ठा और कीर्ति चाहते हो तो छोटे-छोटे स्वार्थों का त्याग करके अपने आत्मिक, बौद्धिक, शारीरिक एवं सामाजिक बल को बढ़ाने का निरंतर प्रयत्न करते रहो।
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त्याग में कितना बल और सुख है और अनुचित संग्रह में कितनी निर्बलता एवं तकलीफ है। इसका ठीक-ठीक अनुभव भुक्तभोगी ही कर सकता है।