(प्रो. मोहनलाल वर्मा एम.ए.एल.एल.बी.)
घंटों निरर्थक बकवास करने से एक छोटे से तत्व या उपदेश पर अमल करना, अपनी आत्मा का विकास करना, सामाजिक तथा आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना अधिक कल्याण कर है। बहुत सी बातें बनाना बड़ा सरल है, दूसरों को उपदेश देने में बहुत तेरे कुशल होते हैं किंतु वास्तविक तथ्य तो यह है कि जो बात अन्तरात्मा को लगे, उसे कार्य रूप में परिणत कर प्रत्यक्ष किया जाय। कर्म ही संसार में मुख्य तत्व है। सफलता के लिए यदि कोई आवश्यक चीज है, तो वह कठोर कर्म ही है। केवल बातें बनाना, शेखचिल्लियों तथा ढपोरशंखों का काम है। असली मनुष्य वही हैं, जो बात कम करता है किन्तु काम बहुत अधिक करता है।
उन्नति करना अपने आप पर अपने कार्यों पर ही निर्भर है, जो मनुष्य केवल दूसरों का मुँह ताकता और बातें बनाता है, वह भीतरी आत्म शक्ति को व्यर्थ बरबाद करता है।
विचार दो प्रकार के होते हैं-केवल कल्पना ही कल्पना मनुष्य के लिए अहितकर हैं। हमारे विचारों में क्रिया का समन्वय अवश्य होना चाहिये। जो व्यक्ति उत्साहपूर्वक कार्य में प्रविष्ट होता है, वही विजयी भी होता हैं। जो केवल माला जपने में रहेगा, स्वयं परिश्रम न करेगा उसे कुछ भी प्राप्त न होगा। हम मानते हैं कि विचार में प्रबल शक्ति है, किन्तु विचार में शक्ति तब ही है, जब उसे अंकुरित होने का सुअवसर प्राप्त हो। जो विचारों के प्रवाह को अवरुद्ध करता है, वह अपनी उन्नति को पीछे ढकेलता है। जो विचारों में क्रिया का योग नहीं देता, वह विचारों के अंकुरों को पल्लवित होने से, उन्हें फलित होने से रोकता है। कार्य तथा उन्नति का नित्य संबंध है।