राष्ट्रीय नेताओं से

September 1947

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(श्री हरदेव सहायजी)

गोरक्षा से हमारा जीवन तथा गौवध से हमारा मरण है। इस जीवन-मरण के प्रश्न को महत्व दें। आज का बढ़ा हुआ गौवध अंग्रेजी राज्य की देन है, अंग्रेजी राज्य खत्म हो रहा है पर, गौवध पर कोई रुकावट नहीं, आप कल तक अंग्रेजी राज्य की बड़ी बुराई गौवध बतलाया करते थे। सत्याग्रह तथा असहयोग के समय वृन्दावन के गो सम्मेलन में हजारों लोगों की उपस्थिति में गौवध प्रश्न को लेकर ही कांग्रेसी नेताओं ने अंग्रेजी सरकार से असहयोग करने का प्रस्ताव पास कराया था। कितने ही लोगों ने आपके साथ रहकर गौवध बन्द कराने के लिये अंग्रेजी राज्य का विरोध तथा त्याग भी किया। जिस तरह राज्य प्राप्त करने पर सुग्रीव राम के काम को भूल गया था, उसी तरह आप सत्ता प्राप्त करके जनता की भावना को भूल गये।

राष्ट्रीय नेताओं ने बड़े त्याग तथा बुद्धिमानी से देश को स्वतंत्र कराके महान कार्य किया है। देश के लोग तथा उनकी पीढ़ियाँ इन नेताओं की ऋणी रहेंगी, पर स्वतंत्रता देश के लोगों की भावना का आदर करने के लिये है। कुचलने के लिये नहीं। मौलिक अधिकारों तथा उनकी सभ्यता, संस्कृति और जीवन के साधनों की रक्षा और भावनाओं का आदर करने के लिये ही है। यदि जनता की भावना की ही अवहेलना की जाय तो वह जन तंत्र नहीं। नहीं वह स्वाधीनता कहला सकती है। आप उन सब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो स्वराज्य या जनता का राज्य स्थापित होने पर एक भी गाय का वध बर्दाश्त नहीं कर सकते और चाहते हैं कि स्वतंत्रता की घोषणा में ही गौवध-निषेध का उल्लेख करके जनता को उसके अधिकारों की रक्षा का आश्वासन दिलावें। आपने जब स्वयं देश की बढ़ी संख्या का विरोध करते हुए भी दो जातियों के सिद्धान्त को स्वीकार करके देश के टुकड़े-2 करा दिये तब गौवध निषेध जैसे प्रश्नों के लिए ही आनी-कानी क्यों? जनता ने इस विश्वास पर कि आप उनकी भावनाओं का आदर करेंगे। उसके हित को सर्वोपरि समझेंगे चुना था। आपको चाहिये कि इस विश्वास को अधिक दृढ़ करने के लिये उनके जीवन मरण के प्रश्न को अपना प्रश्न बनायें।

यदि आपकी आत्मा की आवाज गौवध-निषेध की आज्ञा देती हो तो निर्भय होकर गौवध निषेध की तजबीज रखें तथा अपना कर्त्तव्य समझते हुए इसके लिए पूरी-पूरी कोशिश करें। इस विषय पर न मौन रहें न आत्मा के विरुद्ध बोलें। मनु ने कहा है- “सभा में जावे नहीं-जावे तो जो ठीक होवे वही बोले। मौन रहने या अनुचित बोलने से पापी होता है।” मि. मैक्डॉनल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय जो राष्ट्रीयता तथा देश की एकता का विरोधी था। सब बुराइयों को जानते हुये भी आपने इसका विरोध न किया तथा मौन रहे। इस नीति के कारण देश में साम्प्रदायिकता का जहर फैला, जिस जहर ने लाखों घरों को उजाड़ दिया, हजारों पुरुषों-स्त्रियों को ही नहीं दुधमुंहे बच्चों तक की नृशंस हत्यायें की। पड़ोसी-पड़ोसी में वैरभाव ही नहीं फैला, दिल के टुकड़े-2 होकर सदा के लिए अलग हो गए। यह सब आपके मौन रहने का परिणाम है। संसार में जब भी जिम्मेदार या अधिकारी लोग अन्याय के प्रति मौन रहे तब-तब जनसंहार हुआ। द्रौपदी के चीर हरण के समय यदि भीष्म-पितामह व द्रोणाचार्य न्याय का पक्ष लेकर कौरवों का प्रतिकार करते तो भारत को चिरकाल के लिये कमजोर करने वाला महाभारत न होता।

आज भी यदि आप मौन रहें या इच्छा होते हुए भी दबाव में आकर विरुद्ध कार्य किया तो देश में जो बची-खुची समृद्धि और सद्भावना है वह भी न बचेगी। यदि आपकी आत्मा गौवध बुरा नहीं समझती-आप गौवध से देश का लाभ समझते हैं तो अपने इस विचारों की स्पष्टता उन लोगों को बतायें जिनका आप प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि वह लोग आपके विचारों का समर्थन करें तो वही रहें-विरोध करें तो मेम्बरी छोड़ दें। जनता की सम्मति का आदर करें। जनता ही जनतंत्र की बुनियाद या अन्तिम निर्णय देने वाली अदालत है कोई संस्था विशेष नहीं। भारत सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों के मंत्री विधान तथा प्रान्तीय असेम्बलियों, डि. बोर्डों, म्युनिसिपल बोर्डों के सब मेम्बरों को जो प्रत्यक्ष किसी भी तरह के चुनाव से मेंबर बनें वह सब गौवध निषेध के बाबत अपनी सम्मति प्रकट करें।


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