अमेरिका के सुप्रसिद्ध धन कुबेर-जिन की संपत्ति अरबों खरबों रुपया है- हेनरी फार्ड ने एक बार कहा था-”धन कुबेर होने पर भी मुझे जीवन में सुख नहीं है। जब मैं अपने लम्बे-चौड़े कारखाने में बेचारे गरीब मजदूरों को रूखा और बिना स्वाद के भोजन बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ करते हुए देखता हूँ तो उन पर मुझे ईर्ष्या होती है। तब मेरा जी चाहता है कि काश, मैं धन कुबेर होने की अपेक्षा एक साधारण मजदूर होता।”
मोटे तौर से देखने पर यह बात अतिश्योक्ति पूर्ण प्रतीत होती है कि एक असीम सम्पत्ति का स्वामी जिसके यहाँ सभी प्रकार के ऐश आराम के साधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं, एक मजूर के भाग्य पर ईर्ष्या क्यों करता है? क्या वह सचमुच मजदूर की अपेक्षा अधिक अभाव ग्रस्त है? इतना धन होते हुए भी कोई क्यों मजदूरों के भाग्य पर ईर्ष्या करते हैं?
विवेकपूर्वक विचार करने से पता चलता है कि केवल माल धन ही ऐसी वस्तु नहीं है जिससे मनुष्य सुखी रह सके। बात यह है कि योग्य पदार्थ उसी को आनन्द दे सकते हैं जिसमें उपभोग की शक्ति हो। उपभोग की शक्ति क्षीण या विनष्ट हो जाने पर भोज्य संपदा कुछ भी सुख नहीं दे पाती। जिसकी पाचन शक्ति नष्ट हो गई है वह दाल दलिये का पथ्य ही ले सकता है। छत्तीस प्रकार के व्यंजनों से सजा हुआ थाल उसके लिए विष के तुल्य है। उस थाल का आनन्द तो वही उठा सकता हैं जिसकी पाचन शक्ति तीव्र है। आँखों की ज्योति चले जाने पर अनेक प्रकार के सुरम्य दृश्य, चित्र, खेल तमाशे आदि दर्शनीय पदार्थों का कोई मूल्य नहीं। नाक ठीक काम न करती हो बढ़िया इत्र और साधारण तेल तक समान है। काम सेवन की शक्ति नष्ट हो जाय, नपुंसकताए घेरे तो रूप यौवन सम्पन्न रमणियाँ उस सुख का रसास्वादन नहीं कर सकती।
उपभोग सामर्थ्य न होने पर भोग्य सामग्री निरर्थक एवं निरुपयोगी हो जाती है इतना ही नहीं उस सामग्री का होना उलटा खतरनाक बन जाता है। नपुँसक पति को नव यौवन पत्नी उसके लिए एक खतरा है। बीमार आदमी के समीप सुस्वादु भोजनों का जमाव उसके लिए कोई दुर्घटना उपस्थित कर सकता है। इस दृष्टि से हेनरी फोर्ड का कथन सत्य था। उन्होंने पैसा कमाने की धुन में अपने पेट को खराब कर लिया था। एकाध बिस्किट छटाँक दो छटाँक फलों का रस वे पचा पाते थे। फोर्ड महोदय जब अपनी फैक्टरी के मजूरों को मोटे-झोटे अनाज की रोटियाँ भर पेट खाते हुए देखते थे तो उन्हें उन मजूरों के भाग्य पर ईर्ष्या होती थी और कहते थे- “काश मैं धन कुबेर होने की अपेक्षा एक साधारण मजूर होता।”
स्वस्थता कमाना और उसकी रक्षा करना, अन्य सभी सम्पत्तियों के उपार्जन और संरक्षण से मूल्यवान है। कई व्यक्ति विद्वान बनते हैं पर उसे प्राप्त करने में इतनी जल्दबाजी करते हैं कि स्वास्थ्य चौपट हो जाता है। कई व्यक्ति धनी बनते हैं पर उस प्रयास में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शक्तियों के अपव्यय के कारण तन्दुरुस्ती खराब हो जाती है। स्वास्थ्य नष्ट होने के उपरान्त वह विद्या और संपत्ति और बीमारी से वे आये दिन ग्रस्त रहते हैं। तब फोड़े की भाँति वे सोचते हैं कि योग्य सामग्रियों का संचय करने में हमने उपयोग शक्ति का बलिदान करके बड़ी भारी भूल की। इस भूल का पश्चाताप उन्हें शेष जीवन के दिन रो रोकर बिताते हुए करना होता है।
अनेक दृष्टियों से समृद्ध होना, भौतिक संपदाओं से सुसज्जित होना, हर मनुष्य को स्वभावतः प्रिय होता है और वह उचित तथा आवश्यक भी है। परन्तु इस उपार्जन की भी सीमा है। स्वास्थ्य की स्थिरता एवं सुरक्षा को ध्यान रखते हुए ही सब प्रकार की संपत्तियाँ उपार्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए जब कार्यक्रम इस मर्यादा को उल्लंघन कर रहा हो और स्वास्थ्य पर उस अति परिश्रम का बुरा असर हो रहा हो तो तुरन्त ही सावधान होने की आवश्यकता है। स्वस्थता में जो सुख है वह हेनरी फोर्ड जितनी संपत्ति के बदले में भी प्राप्त नहीं हो सकता।
उपभोग सामग्री का संयम पूर्वक उपयोग करने से शारीरिक शक्तियाँ ठीक प्रकार काम करती हैं। अति रसास्वादन का असंयम उस उपभोग शक्ति को ही नष्ट कर देता है। अति काम सेवन से नपुँसकता प्रमेह आदि रोग उत्पन्न होते हैं और अति के दंड स्वरूप उस शक्ति से सदा के लिए हाथ धोना पड़ता हैं। इसी प्रकार चटोरे व्यक्ति अपनी पाचन शक्ति को बिगाड़ लेते हैं और कड़ाके की भूख में भोजन करने के आनन्द से सदा के लिए वंचित हो जाते हैं। यही बात अन्य इन्द्रियों के बारे में भी है, इसीलिए शास्त्रकारों ने इन्द्रिय संयम पर विशेष जोर दिया है। इन्द्रिय संयम एक वैज्ञानिक विधान है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन भर उपभोग शक्ति को कायम रख सकता है। ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, मौन आदि आत्म निग्रह के अनेक विधि विधानों का उद्देश्य उन उपयोग शक्तियों को स्थिर रखना है जिनके द्वारा योग्य पदार्थों के आनन्द का रसास्वादन किया जा सकता है।
संसार में जिन्हें जीवन के अनेक आनन्दों का उपभोग करने की इच्छा है उन्हें शक्तियों के अनुचित अपव्यय से बचने का पूरा-पूरा प्रयत्न करना चाहिए। किसी प्रलोभन के आकर्षण में पड़कर जो लोग अपनी शारीरिक शक्तियों को अपव्यय करके गवाँ देते हैं। वे अन्त में हेनरी फोर्ड की तरह पछताते हैं तब सारी संपत्तियाँ मिल कर भी उन्हें वह आनन्द नहीं दे सकती जो स्वस्थता रहने पर अनायास ही मिल सकता था।