(अनुवादक-श्री ब्रह्मचारी प्रभुदत्त शास्त्री बी. ए.)
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।
ओं - सर्वव्यापक जो सबकी रक्षा करते हैं भगवान।
भूः - सर्व को सत्ता स्फूर्ति दाता, सत्य स्वरूप महान॥
भुवः - दुःख के नाशक, चिन्मय, जिनका उत्तम ज्ञान स्वरूप॥
स्वः- सर्व सुखदायक, सुखमय, परम आत्मा, अलख, अनूप॥
तत् - अनन्त हैं, सर्व सार हैं, जिनका कोई पार नहीं।
सवितुः - सर्वोत्पादक, रक्षक, प्रेरक, करे संहार वहीं॥
वरेण्यम् - है वर्णन करने योग्य जगत में उनका नाम।
भर्गो - ज्योतिर्मय, पापों के भजन कर्ता, पूरण काम॥
देवस्य - देते हैं सबको दिव्य प्रकाश, शक्ति, आनन्द।
धीमहि - ध्याता हैं हम सब पूर्ण ब्रह्म श्री परमानन्द॥
धियः - हमारी बुद्धि वृत्तियों को वह दीनबन्धु भगवान।
यो - जो ऐसी महिमा वाले परमेश्वर हैं दया निधान॥
नः - सभी हम जीव मात्र के उर में जिनका वास स्थान।
प्रचोदयात् - जो करें प्रेरणा जिससे हम पायें उत्थान॥
भावार्थ - यत्तेजः सवितुर्देवस्य वरेणयम् तदुपास्महे।
तत्तेजोऽस्माकं बुद्धीः श्रेयस्करेषु नियोजयेत्॥
आदिदेव का श्रेष्ठ तेज जो उसका हम करते हैं ध्यान।
श्रेय कर्म में सदा हमारी बुद्धि लगावे वह भगवान्॥
*समाप्त*