गायत्री-प्रार्थना

May 1946

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(अनुवादक-श्री ब्रह्मचारी प्रभुदत्त शास्त्री बी. ए.)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य

धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।

ओं - सर्वव्यापक जो सबकी रक्षा करते हैं भगवान।

भूः - सर्व को सत्ता स्फूर्ति दाता, सत्य स्वरूप महान॥

भुवः - दुःख के नाशक, चिन्मय, जिनका उत्तम ज्ञान स्वरूप॥

स्वः- सर्व सुखदायक, सुखमय, परम आत्मा, अलख, अनूप॥

तत् - अनन्त हैं, सर्व सार हैं, जिनका कोई पार नहीं।

सवितुः - सर्वोत्पादक, रक्षक, प्रेरक, करे संहार वहीं॥

वरेण्यम् - है वर्णन करने योग्य जगत में उनका नाम।

भर्गो - ज्योतिर्मय, पापों के भजन कर्ता, पूरण काम॥

देवस्य - देते हैं सबको दिव्य प्रकाश, शक्ति, आनन्द।

धीमहि - ध्याता हैं हम सब पूर्ण ब्रह्म श्री परमानन्द॥

धियः - हमारी बुद्धि वृत्तियों को वह दीनबन्धु भगवान।

यो - जो ऐसी महिमा वाले परमेश्वर हैं दया निधान॥

नः - सभी हम जीव मात्र के उर में जिनका वास स्थान।

प्रचोदयात् - जो करें प्रेरणा जिससे हम पायें उत्थान॥

भावार्थ - यत्तेजः सवितुर्देवस्य वरेणयम् तदुपास्महे।

तत्तेजोऽस्माकं बुद्धीः श्रेयस्करेषु नियोजयेत्॥

आदिदेव का श्रेष्ठ तेज जो उसका हम करते हैं ध्यान।

श्रेय कर्म में सदा हमारी बुद्धि लगावे वह भगवान्॥

*समाप्त*


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