डायरी लिखने की आवश्यकता

May 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले.- श्री ‘रामकिशन आर्य’ ग्वालियर)

हम प्रतिदिन देखते हैं कि प्रायः सभी व्यापारिक फर्में अपने दैनिक आय व्यय का ब्यौरा प्रति दिन लिखती हैं। यदि वे केवल एक सप्ताह के लिये भी ऐसा करना बन्द कर दे तो उनका कारोबार चौपट हो जाय, धूलि में मिल जाय और उन्हें अपना व्यापार बन्द करना पड़े। किसी फर्म को ही क्यों एक साधारण स्थिति के दुकानदार अथवा क्लर्क को ही ले लीजिये। यदि कोई दुकानदार अथवा क्लर्क अपने दैनिक अथवा मासिक आय व्यय का हिसाब नहीं रखता तो यह बहुत सम्भव है कि उसका व्यय उसकी आय से बढ़ जाय और वह दिन प्रति दिन ऋण के भार से दबता जाय। जब आर्थिक उन्नति के लिये हमें प्रति दिन डायरी लिखने की इतनी आवश्यकता है तो आत्मिक उन्नति के लिये तो वह और भी आवश्यक है।

रोजनामचा हमारा सच्चा मित्र है। वह हमें बता देता है कि अमुक दिवस हमने अमुक गल्तियाँ की थीं, अमुक व्यक्तियों के प्रति दुर्व्यवहार किया था, अमुक समय क्रोध किया था और साथ ही साथ भविष्य में इनसे बचे रहने के लिये हमें सावधान भी कर देता है। परन्तु यह तभी हो सकता है जब डायरी लिखने वाला डायरी के पन्नों में अपनी आत्मा को उड़ेल कर रख दे, अर्थात् उनसे कुछ छुपायें नहीं, अपना सच्चा रूप ही उनमें अंकित करें। तभी वह उपयोगी सिद्ध हो सकेगी। डायरी किसी को दिखाने के हेतु नहीं लिखी जाती, वह तो आत्म शुद्धता के लिये ही लिखी जाती है। फिर सच लिखने में शर्म कैसी?

अब प्रश्न होता है कि डायरी में लिखें क्या? शय्या-त्याग का समय, रात्रि में शयन का समय, जप-ध्यान का समय, आसन-प्राणायाम का समय तो डायरी में लिखना ही चाहिये, इसके साथ-साथ दिन में जितनी बार मिथ्या भाषण किया हो किसी के साथ दुर्व्यवहार किया हो, किसी पर क्रोध किया हो, जितना समय व्यर्थ गपशप में बिताया हो, उनके प्रायश्चित-स्वरूप कोई दण्ड अपने आप को दिया हो, आदि सब बातें भी लिखनी चाहिये। इससे हमें पता चल जायगा कि हमने दिन में क्या और गल्तियाँ की हैं। हमें अपनी डायरी को प्रति सप्ताह देख जाना चाहिये और पिछले सप्ताह जो गल्तियाँ की हों, इस सप्ताह उनसे बचे रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिये। तभी हम डायरी लिखने का सच्चा लाभ उठाने में समर्थ हो सकेंगे और डायरी हमारी ‘आँख खोलने वाली’ सिद्ध हो सकेगी।

समस्त संसार के महापुरुषों की उन्नति का राज उनके लिखे गए डायरी के पन्नों में निहित है। महात्मा गाँधी अपनी डायरी में लिखते हैं। इसी से उनके समय का विभाजन ठीक रीति से हुआ करता है। उनके पास एक मिनट भी व्यर्थ बिताने के लिये नहीं बचता। वे प्रत्येक क्षण का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। बेंजमिन फ्रेंकलिन का नाम सबने सुना होगा। वह प्रति दिन अपनी डायरी लिखता था। वह दिन प्रति दिन अपनी गल्तियों की संख्या में कमी करता गया और एक दिन आया कि वह विश्व-विख्यात महापुरुष बन गया।

अध्यात्म मार्ग के पथिकों को डायरी लिखना आवश्यक है। अपने भले बुरे कार्य का दैनिक विवरण रखने से मनुष्य अपनी आत्मिक स्थिति से भली प्रकार परिचित रह सकता है और सुधार तथा निर्माण कार्य को दिन-दिन आगे बढ़ाता हुआ, नियत लक्ष तक पहुँच सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118