(डॉक्टर दुर्गाशंकर जी नागर)
साधारण मनुष्यों की यह मान्यता है कि प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त प्रसाद है किन्तु ये धारणाएं भूल से भरी हुई हैं। आज के मनोविज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि प्रतिभा शक्ति जन्म से जिनमें होती है वे ही विकास कर सकते हैं, यह कोई बात नहीं है, किन्तु मनुष्य मात्र में यह अलौकिक शक्ति अप्रकट रूप से विद्यमान है। प्रयत्न, उद्योग और उत्साहपूर्ण आग्रह से यह शक्ति प्रत्येक में जागृत हो सकती है।
प्रतिभा क्या है? यह अलौकिक बुद्धि है, जो बल और योग्यता प्रदान करती है। अलौकिक बुद्धि अर्थात् मन से गुप्त महान सामर्थ्यों को जाग्रत करना है। प्रतिभा अंतर्मन की शक्ति है। प्रतिभा को जाग्रत करने के लिए अंतर्मन को अधिकाधिक जाग्रत करने से ही मनुष्य व्यवहार कुशल बन सकते हैं। प्रत्येक बात का, जो अन्तर से प्रकट होती है, सर्वोत्तम प्रकार से उपयोग करना सीखो और तुम में अधिक कार्य करने की कुशलता प्राप्त होगी।
प्रतिभा सम्पन्न मनुष्य में दो प्रधान लक्षण होते है। प्रथम तो यह कि वह शक्तियों के समुदाय पर मन की सब वृत्तियों और बल को स्वाभाविकता से एकाग्र कर सकता है और दूसरे उसका अंतर्मन का विशेष भाग व्यापार मुक्त और सदैव जागृति (Vigilant) रहता है।
प्रतिभा को प्रकट करने की कुँजी अंतर्मन को जाग्रत करना है। अन्तःकरण से कोई भी विचार स्वीकार करने से वे दृढ़ता से हमारे अन्तःकरण पर अंकित हो जाते हैं। अतः भावना जगत में तुम कभी अपने को साधारण बुद्धि का मनुष्य मत समझो।