(ले.- कुमारी कैलाश वर्मा)
केवल भाग्य पर विवश रहने वाला व्यक्ति मूर्ख है और अकेले पुरुषार्थ की डींग हाँकने वाला आदमी दम्भी और अभिमानी है। भाग्यवादी यही कहा करते हैं कि सब अपने भाग्य से ही होता है-जैसा दैव करता है। मनुष्य में सामर्थ्य नहीं कि कुछ भी परिवर्तन कर सके। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न देश के कर्म वादियों का कथन है कि जो कुछ होता है वह अपने कर्म से होता है कर्म की गति अपरम्पार है, अनिवार्य है।
क्या भाग्यवाद एवं कर्मवाद इस रूप में सत्य हैं? यदि ऐसा है तब तो मनुष्य दैव के हाथ में एक कठ पुतली है जो सर्वथा परतंत्र है और वही नाच नाचता है जो दैव नचाता है और जिसकी गति की एक सीमा है।
परन्तु वास्तव में बात ऐसी नहीं है। पुरुषार्थ द्वारा मनुष्य भाग्य का निर्माण करे, पुरुष नाम को सार्थक बनावे किन्तु साथ-साथ जगत नियामक की, सत्ता के नियमों पर श्रद्धा रखे, आत्मा का विकास होने दे, वही सच्चा पुरुष है। ऐसा पुरुष उत्पन्न करने की प्रथा का नाम आध्यात्म शिक्षा है।