सच्चा नाता किससे?

August 1945

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(श्री देशराज जी ऋषि, रुड़की)

माता अपने पुत्र से प्रेम करती है। स्वयं अनेक प्रकार के दुख उठा कर उसे सुख पहुँचाने का प्रयत्न करती है। बालक के प्रति माता की ममता असाधारण होती है। परन्तु वह बालक जब मर जाता है तो मृत शरीर के सामने उपस्थित होने पर भी वह व्याकुल और बिछोह का अनुभव करती है। ऐसे ही पत्नी अपने-अपने पति का बड़ा आदर एवं मान सम्मान करती है। परन्तु वहीं शरीर जब मृतक हो जाता है तो आदर मान सम्मान आदि व्यर्थ समझे जाते हैं। इससे प्रतीत होता है कि पुत्र, पति, पत्नी, माता, भाई आदि के जो नाते माने जाते हैं। वह उनके शरीरों से नहीं होते। क्योंकि शरीर तो मृत अवस्था में भी सामने उपस्थित होता है, फिर भी उससे कोई नाता नहीं रहता।

सच्चा नाता आत्मा का हैं। रामायण में कहा है-

पूजनीय प्रिय परम जहाँ ते॥ माननीय सब राम के नाते॥

जब कभी, जिस किसी का-जिस किसी से भी नाता रहता है वह राम से-परमात्मा से ही रहता है। प्राणियों के शरीरों में स्थित आत्मा से, परमात्मा से ही सब लोग विभिन्न भावों का संयोग करके आमोद-प्रमोद और मनोरंजन करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। हमारा हर एक सम्बन्ध राम के साथ ही चलता है। अन्य कोई तत्व ऐसा नहीं है जिसमें साथ किसी प्रकार का संबंध नाता स्थापित किया जा सके या चल सके। इस नाते की वास्तविकता समझ लेना और उसे ठीक प्रकार निबाहने के लिए प्रस्तुत होना यही आत्मिक साधनाओं का उद्देश्य है।

=कोटेशन============================

पुण्य मय श्रेष्ठ कार्य करने में उतनी धन की जरूरत नहीं है जितनी कि सुहृदयता एवं दूरदर्शिता की।

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