अभिमान और तुच्छता, आत्म प्रशंसा और शेखी के रूप में प्रगट होते हैं, जिससे उनका सामाजिक जीवन सबके लिये असह्य और अनाकर्षक बन जाता है। जनता आपकी प्रशंसा कर सकती है, किंतु वह उसके मुख से सुनना नहीं चाहती। यदि आप अपनी प्रशंसा न्याय और सत्य के अनुसार भी करते हों तो भी वह विरोधी हो जाते हैं, और आपके दोषों को ही देखने लगते हैं।
अपनी सफलता को ऐतिहासिक स्त्री पुरुषों के कार्यों से तुलना करके नम्रता सीखो। ऊँट तभी तक अपने को ऊँचा समझता है, जब तक पहाड़ के नीचे नहीं आता। अपने से बड़े प्रसिद्ध पुरुषों से मिलते जुलते रहते का उद्योग करो। इस प्रकार की मित्रता आपको अत्यन्त प्रभाव पूर्ण नम्रता की शिक्षा देगी। इस बात को स्मरण रखो कि अभिमान से आप बहुत कुछ खो देते हो। अभिमानी को बहुत से मनुष्य ने प्रशंसा करते न सहायता करते और न प्रेम करते हैं। अभिमान आपके व्यक्तिगत विकास को भी रोकता है। यदि आप अपने को सबसे बड़ा समझने लगोगे तो आप अधिक बड़ा बनने का यत्न करना छोड़ दोगे। यदि आपने कोई कार्य ख्याति तथा विज्ञापन योग्य किया है तो उसके विषय में स्वयं कुछ मत कहो। आपको पता लगेगा कि उसके विषय में दूसरे भी किसी न किसी प्रकार कुछ अवश्य जानते हैं। इस प्रकार नम्रता से आपकी कुछ हानि नहीं होती। आपके गुण अधिक समय तक छुपे नहीं रहेंगे। आपको स्वयं उनकी घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है।