कवि से

August 1945

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नये युग के आराधक मीत! बना दो हे कवि! नूतन गीत।

जिनको सुनकर इन जीवित मृतकों में आये चेतन। हरियाली फिर से पावे यह शुष्क विमूर्छित उपवन॥ इस निराश सुनसान, क्षितिज पर आयें आशा के घन।

पाकर नव सन्देश कर उठें मन मयूर कल नर्तन॥

इस टूटी वीणा में से भी, बजे भव्य संगीत। नये युग के आराधक मीत! बना दो हे कवि! नूतन गीत॥

हे निर्माता! अब ऐसे जीवनमय गीत बनाना। सत्य और शिव सुन्दर का जिनमें हो ताना बाना॥ नव निर्माण कार्य करना है, नव संसार बसाना। सड़ गल गई पुरानी कड़ियाँ, जग हो गया पुराना॥

यह शैतानी सत्ता हारे, दैवी जाये जीत। नये युग के आराधक मीत! बना दो हे कवि! नूतन गीत॥ हे उत्पादक! इस मरु थल में नूतन बीज बखेरो। अरे, सड़ी जाती है संस्कृति, इसको लौटो फेरो॥

युग-युग की प्यासी मानवता माँग रही है पानी। अपना हृदय निचोड़ पिला दो, हे तपस्वी! हे ज्ञानी!! मर्त्य लोक में बरसा दो अमृत के जलद पुनीत। नये युग के आराधक मीत! बना दो हे कवि! नूतन गीत॥

चला मनुज मानवता को तज पशुता को अपनाने। छोड़े त्याग, तप, प्रेम-सुसंयम, लगा लूटने खाने॥ इसको समझाओ, लौटाओ, पुनः मनुष्य बनाओ। साधक! अपनी सर्व साधना यहीं समेट लगाओ॥ सुलझा दो, उलझी गुत्थी जो हुई विषम विपरीत।

नये युग के आराधक मीत! बना दो हे कवि! नूतन गीत॥

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: