जीवन का उद्देश्य

August 1945

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सच्चे स्त्री पुरुष का उद्देश्य व्यक्तित्व की उन्नति होता है, न कि क्षणिक आनन्द। उन्नति प्रकृति का सार्वजनिक नियम है। शाहवलूत का फल अपने आप को अपने वृक्ष में पूर्ण करता है, छोटा सा अण्डा स्वर्ग के सुन्दर पक्षी अथवा प्रतापी उक्राव में विकसित होता है। नवजात बालक पूर्ण स्त्री और पुरुष के पास ही बढ़ता है, जैसा कि अरस्तु का कहना है प्रत्येक प्राणी को उस जाति की अधिक से अधिक उन्नति से जाँचना चाहिये। इसी कारण हमको बौने आदमी पर दया आती है, यद्यपि पूरा बढ़ने पर उसके भोजन और वस्त्र का व्यय भी बढ़ जाता है, किन्तु वह पूर्ण पुरुष नहीं होता। हम अपने बच्चों के बढ़ने को ध्यानपूर्वक देखा करते हैं, उनकी उन्नति से हमको अत्यन्त आनन्द होता है और हमारा हृदय आत्मगौरव से भर जाता है किन्तु हम उस बात को भूल जाते हैं कि वयस्क आयु प्राप्त कर लेने पर भी हमको उन्नति करने के कार्य को बन्द नहीं करना चाहिये। श्वाँस लेने और भोजन करने के समान उन्नति भी जीवन भर करनी चाहिये। निरुत्साहियों के लिये दंड ही यह है कि उनकी उन्नति रुक जावें।

यदि आप नैतिक विकास को इन्द्रियजन्य आनन्द के लिए उपेक्षा करोगे तो आप प्रेम, परोपकार, आत्मसंयम और त्याग के आनन्द का कभी उपभोग न कर सकोगे। जिस प्रकार बौने अथवा बहरे को, मनुष्य जन्म की सब सुविधायें नहीं मिलतीं, उसी प्रकार उन्नति का न होना स्वयं भी एक दंड है। संसार में उत्पन्न होने वाले प्रत्येक बालक का कर्त्तव्य ऐसी उन्नति करना है जो निर्विघ्न और अविरल प्रवाह वाली हो, जो सभी विभागों में एक सी हो, जो जीवन भर सदा होती रहे, और जो केवल मृत्यु होने से ही रुके, ऐसी उन्नति को ही स्थिर एवं साधारण उन्नति कहते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118