नशा पीना छोड़ो।

August 1945

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(महात्मा गाँधी)

बहुत से लोग समझते हैं कि जो चीज हम खाते हैं वही आहार की सामग्री है पर वास्तविक में यह नहीं हैं। शराब, भाँग, अफीम भी लोग खाते-पीते हैं तो क्या यह भोजन है? इनको भोजन समझना पाप है। शराब ने न जाने कितने ही घर खराब कर डालें।

भाँग की भी यही दशा है। भंगोड़ियों का घर प्रायः तबाह देखा गया है। अफीम से भी बड़ा नुकसान होता है। चीन का राजा भी इसी के पीछे तबाह है।

तमाखू तथा सिगरेट और बीड़ी के भी न जाने कितने उपासक हैं। कितने ही पढ़े-लिखे लोग भी इसके गुलाम हैं। इसके प्रचार में बड़ी-बड़ी तरकीबें लगाई जाती हैं। नाना प्रकार के विषैले पदार्थों से यह सिगरेट तैयार होती है। लाटरी, वायसकोप तथा नाना प्रकार के आमोद से समस्त यूरोप इसके प्रचार में लगा है। स्त्रियाँ भी इसकी उपासिका हैं। सिगरेट पर कवितायें भी बनाते हैं। आधुनिक सभ्यता ने भारत में भी इसका प्रचार खूब बढ़ा रखा है।

सिगरेट पीने वालों की विवेक बुद्धि ठीक नहीं रहतीं। वह चोरी तक करने को तैयार हो जाता है। रूसी ऋषि टॉलस्टाय ने लिखा है कि एक आदमी ने सिगरेट पीकर अपनी स्त्री की हत्या कर डाली। टॉलस्टाय की राय यह है कि वास्तविक में सिगरेट शराब से बढ़कर भयंकर नशा है। कितने तो सिगरेट के ही कारण दरिद्र बन रहे हैं। इससे पाचन शक्ति कम हो जाती है, खाने पीने की लज्जत जाती है। दाँत काला और चहरा पीला पड़ता जाता है। मुँह से जो दुर्गंधि निकलती है उसे पास बैठने वाले कभी पसंद नहीं करते। स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए सिगरेट, तंबाकू बीड़ी, नशीली चीजों का छोड़ना जरूरी है। ये नशे हमारे धन को ही नष्ट नहीं करते बल्कि परलोक दोनों बिगाड़ते हैं।


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