उत्तम जीवन

August 1945

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(श्रीयुत-महेश वर्मा, हर्बर्ट कॉलेज, कोटा)

यह कल्पना कर लेना केवल पुस्तकों के अध्ययन से तथा धार्मिक या तात्विक बातों को मान लेने से ही उत्तम जीवन प्राप्त हो जाता है और आत्मिक उन्नति के सिद्धान्त समझ में आ जाते है, एक साधारण भूल है। ऋषि मुनियों की अमृतोपम वाणी से आत्मनिष्ठा की परिपक्वता कदापि प्राप्त नहीं हो सकती। स्नान, ध्यान, यम-नियम योग इत्यादि भी अपने-अपने स्थान पर उत्तम हैं किन्तु वास्तव में इनमें से कोई भी हमें सफलता लाभ नहीं करा सकता।

उत्तम जीवन तो मन, वचन, तथा कार्य के शुभ योग से प्राप्त होता है। सर्वोत्कृष्ट मन जो चित्र बनावे यही वचन अर्थात् वाणी से प्रकट हो, फिर वही कार्यों में परिणत हो जाये-तभी उत्कृष्टता प्राप्त हो सकती है।

मन को पूर्ण शान्त अवस्था में रखिए। समस्त भ्रान्तियों, सन्देहों, शक शुबा इत्यादि को निकालिये और श्रद्धापूर्वक अपने संकल्पों का निर्माण कीजिए। कोई ऐसा कार्य नहीं जो दृढ़ श्रद्धा और दृढ़ संकल्प के योग से पूरा न हो सके। श्रद्धा तुम्हारे विचार की शक्तियों को केन्द्रित करेगी और संलग्न तुम्हें कार्य में संकल्प होने की प्रेरणा देंगे। मन, वचन, तथा कार्य जीवन के प्रेरक हैं। इन्हीं तत्वों के शुभ योग का प्रयत्न कीजिए।

=कोटेशन============================

ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने हृदय का द्वार सदा खुला रखो। हर बात पर विवेक और विवेचना के साथ विचार करो। अन्ध विश्वासी मत बनो, पर संशयी और अविश्वासी भी न हो जाओ। तर्क और विवेक के आधार पर जीवन भर सत्य की खोज करते रहना चाहिए।

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