युद्ध के बाद की दुनिया

January 1943

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पिछले लेखों में यह बताया जा चुका है कि गत शताब्दियों की सामाजिक, राजनैतिक, शारीरिक तथा मानसिक पापों का संशोधन करके संसार को निर्मल बनाने के लिये यह विपत्ति आई है। इसका उद्देश्य अव्यवस्था और अनीतियों को दूर करके नीति की स्थापना करना है। युद्ध चाहे कितनी ही जल्दी समाप्त हो जाय या कितना ही लम्बा चले पर इतना निश्चित है कि युद्ध का अन्तिम अन्त होने के उपरान्त एक विश्व व्यापी सतयुगी व्यवस्था का जन्म होगा।

इस व्यवस्था के मुख्य आधार यह होंगे (1) साम्प्रदायिक कलह का अन्त (2) पैसे का समुचित विभाजन (3) विश्व बन्धुत्व (4) शक्ति पर न्याय का नियन्त्रण (5) सदाचार को प्रोत्साहन (6) अधिकारों की रक्षा (7) अनिवार्य शिक्षा (8) सार्वभौम शासन (9) विज्ञान का सदुपयोग। इनकी रूपरेखा का मोटा ढांचा इस प्रकार समझना चाहिए।

(1) साम्प्रदायिक कलह का अन्त - शिक्षा की वृद्धि के साथ साथ सांप्रदायिक अन्धविश्वासों का अन्त हो जायेगा। यह लोगों की व्यक्तिगत मान्यता की चीज समझा जायेगा। उनको इस सीमा तक न बढ़ने दिया जायेगा कि एक दूसरे से उलझें या अपना दबाव दूसरे पर डालें। एक ही मानव धम्र की व्यापकता होगी। साधारणतः सब लोग एक ही धर्म को मानेंगे। व्यक्तिगत मत रखने की छूट होगी तो भी मजहबों को इतनी प्रधानता न मिलेगी कि दो व्यक्तियों को एक दूसरे से अलग कर दें। जैसे एक भाई कृष्ण उपासक दूसरा राम उपासक रहते हुए भी वे दोनों साथ-साथ एक घर में रहते हैं वैसे ही पति-पत्नी, पिता-पुत्र भिन्न मजहबों को पसन्द करते हुए भी प्रेम पूर्वक एक साथ रहेंगे। मजहब भेद के कारण व्यावहारिक जीवन पर कोई असर न पड़ेगा। इस प्रकार साम्प्रदायिक कलह का कोई कारण ही न रह जावेगा।

(2) पैसे का समुचित विभाजन- कोई आदमी आवश्यकता से अधिक व्यक्तिगत पूँजी जमा न करेगा। रोजगार हर आदमी को देने की जिम्मेदारी सरकार की होगी हर समर्थ आदमी को भोजन पाने के लिये परिश्रम करना पड़ेगा। व्यापार जनता की आवश्यकता पूरी करने के लिये होंगे धन एकत्रित करने के लिये नहीं। पैसा एक स्थान पर जमा न होकर सब लोगों तक पहुँचे ऐसी आर्थिक व्यवस्था बनाई जायेगी।

(3) विश्व बन्धुत्व - देश भक्त के नाम पर या जाति भक्ति के नाम पर, दूसरे देश या दूसरा जाति वालों के स्वार्थों का अपहरण न किया जायेगा। विदेशियों का शोषण करना, गुलाम बनाना, आक्रमण करना, संसार भर के सभी देशों को भाई चारे और समानता की दृष्टि से देखा जायेगा। देश भक्ति का अर्थ पड़ोसियों की अधिक सेवा ही रहेगा पर उसकी संकुचित सीमा न रहने दी जायेगी जिसके कारण अन्य देश जाति वालों के साथ अनीति का व्यवहार किया जाता है।

(4) शक्ति पर न्याय का निमंत्रण- आत्मोन्नति के लिए शक्ति बढ़ाने का अधिकार तो सब को होगा पर उन बुद्धि, शरीर, या पैसे की शक्तियों से दूसरों पर अन्याय करने का हक किसी को न होगा। अपने से कम शक्ति वालों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सताना, भ्रम में डालना, विवश करना, अपराध समझा जायेगा और उस अपराध को रोकने का राज्य की ओर से कठोर नियंत्रण किया जायेगा। बलवान को उच्छृंखल न होने दिया जायेगा। जिससे वह सेवा की बजाय शोषण में उसे लगावें।

(5) सदाचार को प्रोत्साहन -दूसरों की भलाई करने वाले परोपकारी, ज्ञानी, धर्म प्रचारक, वैज्ञानिक, शोध करने वाले, समाज सेवी, व्यक्तियों को राजकीय प्रोत्साहन प्राप्त होगा। भलाई, नेकी, ईमानदारी, परस्पर सहायता को कूट कूट कर मानव स्वभाव में भर देने के लिए शिक्षा के प्रत्येक सूत्र से काम लिया जायेगा। लोगों को सद्गुणी, सदाचारी, सेवाभावी, कर्तव्य परायण बनाने के लिए वातावरण तैयार किया जायेगा।

(6) अधिकारों की रक्षा- प्रत्येक मनुष्य को स्वतन्त्रता, समानता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है किन्तु स्वार्थी लोग अपने लाभ के लिए दूसरों के इस अधिकार का हनन करके नीच कोटि का जीवन बिताने के लिए बाध्य करते है। स्त्रियों के साथ, शूद्रों के साथ, भारतवर्ष में ऐसी ही अनीति ब्रती जाती है। विदेशों में भी अल्प ज्ञान और शक्ति वाले लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होता है। यह अनीति बन्द कर दी जायेगी और लेखन सम्बन्धी, भाषण सम्बन्धी, आत्मोन्नति सम्बन्धी, स्वेच्छानुसार रहन सहन सम्बन्धी तथा कानून व्यवस्था में भाग लेने के नागरिक अधिकार सब लोगों को समान रूप से प्राप्त होंगे।

(7) अनिवार्य शिक्षा - अशिक्षित मनुष्य संसार के लिए भार रूप हैं मानसिक विकास की सुविधाएं शिक्षा के बिना प्राप्त नहीं हो सकती और न इस युग में अशिक्षित व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन समुन्नत हो सकता है। इसलिए समाज का यह कर्तव्य होगा कि हर व्यक्ति को कम से कम काम चलाऊ शिक्षा प्राप्त करने के लिए बलपूर्वक प्रेरित करें। अशिक्षित रहना कानूनन जुर्म बना दिया जायेगा। जो लोग स्वेच्छा से न पढ़ेंगे वे कैदखाने में पढ़ने के लिए बाध्य किये जावेंगे।

(8) सार्वभौम शासन - विश्व भर का एक संगठित राज्य होगा जो सब देशों को नीति मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करेगा और आन्तरिक शासन में तथा दूसरे देशों पर अनीति करने से सत्ताधारियों को रोकेगा। यद्यपि भाषा, संस्कृति और भौगोलिक दृष्टि से अलग अलग देशों की रचना रहेगी और उनका शासन भी वही के लोग करेंगे फिर भी सार्वभौम शासन का हर देश पर नियन्त्रण रहेगा जिससे कोई किसी को सता न सके।

(9) विज्ञान का सदुपयोग - विज्ञान द्वारा नित नये आविष्कार होते हैं। इनका उपयोग केवल मानव जाति की अधिक सेवा सुविधा के लिए ही किया जायेगा। चन्द लोगों के स्वार्थ साधन के लिए असंख्य लोगों के शोषण का कार्य जो आजकल यान्त्रिक आविष्कारों द्वारा हो रहा है वह न रहेगा। केवल उन्हीं आविष्कारों को प्रचलित रहने दिया जायेगा, जो सार्वजनिक लाभ के लिए सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर भी उपयोगी सिद्ध हो, हानिकारक यंत्र और आविष्कारों का प्रचलन न होने दिया जायेगा। उपरोक्त आधारों पर संसार की नई व्यवस्था रची जायेगी। कानून व्यवस्था, प्रथा, परिपाटी, संस्कृति, कला, शिक्षा का इस आधार पर निर्माण होगा जिससे चारों ओर ऐसे साधन जुट जावेंगे जो मानव जीवन की उन्नत, विकसित, सरल एवं प्रसन्नता मय बनाने में सहायक हों। अनीतियों और भ्रम पूर्ण धारणाओं के विरोध में ऐसा प्रचण्ड लोकमत तैयार होगा, जिसमें उनका एक क्षण के लिए भी जीवित रहना कठिन हो जायेगा। सब लोग सत्य, प्रेम, न्याय, सहानुभूति, सहायता एवं भ्रातृभाव के साथ सुखी सम्पन्न एवं सादा जीवन व्यतीत करेंगे। द्वेष, कलह, कपट, छल, दुराचार कही दिखाई भी न पड़ेगा। ऐसा सतयुग निकट भविष्य में शीघ्र ही आने वाला है। युद्ध की अन्तिम समाप्ति तक वर्तमान लोगों से बहुत लोग जीवित न रहेंगे पर जो रहेंगे वे उस स्वर्गीय समय का आनन्द प्राप्त करेंगे।


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