पितृ श्राद्ध

January 1943

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राजा सगर के सौ पुत्र अपने दुष्कर्मों के कारण कपिल मुनि के कोप भाजन होकर जलकर भस्म हो गये और पाप परिणाम से नरक की दुखद यंत्रणाएं सहने लगे।

इन सौ नरकगामी राजकुमारों के भाई अंशुमान राजगद्दी पर बैठें पर वे सदैव इस चिंता में जलते रहे कि किस प्रकार अपने भाइयों का उद्धार करें। अंशुमान के पुत्र दिलीप भी अपने पितृ ऋण को भुला न सका। उसने पितरों के उद्धार के निमित्त घोर तपस्या की पर सफल मनोरथ न हो सका। दिलीप का पुत्र भागीरथ भी चुप न बैठा, पुरखों का उद्धार करना, उनके किये हुये पाप का प्रतिशोध करना आवश्यक था। अपने पूर्वजों की कलंक कालिमा को धोये बिना कोई सपूत कैसे चैन पा सकता है।

बताया गया कि सगर के सौ पुत्रों ने पृथ्वी पर जो पाप का बीज बोया है इसका कलंक तब छूट सकता है जब इस संसार पर भगवती गंगा जी लाई जायें। जिनके शीतल जल से उजाड़ खण्ड हरे हो जायें और प्यासे प्राणियों के सूखे कंठों को शीतलता प्राप्त हो। अभाव की पूर्ति का यही उपाय है कि जितनी हानि पूर्व काल में हो चुकी है उतना ही लाभ पहुँचा दिया जाय। पितरों के उद्धार का यही रास्ता है कि उनसे दुनिया का जो उपकार बन पड़ा हो वह सब पाई पाई चुका दिया जाये।

भागीरथ के हृदय में सच्चा पितृ प्रेम था, वे पितरों का श्राद्ध करके उनकी परलोकस्य आत्माओं को शान्ति लाभ करना चाहते थे इसलिए सुख वैभव छोड़कर शक्ति सम्पादनार्थ वे घोर तप करने लगे। तप में, संयम में, एकाग्रता में, लगन में, शक्ति का सारा केन्द्र छिपा हुआ है। यह भागीरथ ने जाना और एक महान कार्य को पूरा करने की तैयारी के लिये तप में प्रवृत्त हो गये। तप के बाद उनका पौरुष जागा और वे देवताओं की सहायता से भू-मण्डल पर गंगा जी को ले आये।

गंगा जी के आने से संसार का बड़ा उपकार हुआ। सगर सुतों द्वारा दुनिया में जितना अधर्म हुआ था उससे अधिक भागीरथ का धर्म हुआ। पितामहों के दुष्कर्म का परिमार्जन पौत्र के कार्यों द्वारा हो गया। पितरों की आत्माओं को स्वर्ग में शान्ति मिली, उनकी आन्तरिक जलन बन्द हो गई, कुम्भी पाक ही - आत्मवेदना की -कोठरी में घुटता हुआ जी सुस्थिरता अनुभव करने लगा। सच्चे पिंडोदक पाकर पितरों की आत्मायें आशीर्वाद देने लगी।

पूर्वजों की भूलों के परिणाम आज हमारा देश शैतान द्वारा पद दलित हो रहा है, पितृओं के कुविचारों के कारण हमारे समाज में नाना प्रकार के भ्रम पाखण्ड घुस पड़े हैं। जिनके पाप से आज हमारी जाति असंख्य कष्ट कठिनाइयों का अनुभव कर रही है। परलोकस्य पितृ अपनी संतति की ओर दृष्टि लगाये बैठे हैं कि कोई भागीरथ उपजे और देश जाति में सुव्यवस्था उत्पन्न करके हमें पिण्डोंदर प्रदान करे। चिन्ह पूजा करने वाले गोबर गणेश तो बहुत हैं पर सच्चा श्राद्ध करके पितृओं की अन्तरात्मा को शान्ति देने वाले भागीरथ दिखाई नहीं पड़ते।


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