(ले. श्री सत्यभक्त जी संपादक सतयुग)
इस समय संवत् 2000 ने काफी महत्व प्राप्त कर लिया है। कुछ भविष्यवक्ताओं की कृपा से जिनमें सच्चे और झूठे दोनों ही तरह के शामिल हैं सर्व साधारण में यह ख्याल फैल गया है कि संवत् 2000 में पृथ्वी की काया पलट हो जायेगी, अवतार प्रकट होगा और सर्वत्र सतयुग बढ़ने लगेगा, जिससे मनुष्य मात्र अत्यन्त सुख पूर्वक रहने लगेंगे।
मेरे विचार से भी संवत् 2000 में युग परिवर्तन की सम्भावना है, पर उसको लोगों ने जो बढ़ा हुआ काल्पनिक रूप दिया है वह भ्रमोत्पादक है। मेरा तो ख्याल है कि जो लोग 1 अगस्त 1943 को अवतार के प्रकट हो जाने और पूर्ण रूप से सतयुग का साम्राज्य कायम हो जाने का दावा करते हैं, उनको आठ महीने बाद ऐसी डींगें मारने का मौका न मिलेगा और शरमिन्दा होना पड़ेगा। मैं यह नहीं कहता कि इस तरह से सभी लोग धूर्त या स्वार्थी हैं, पर इतना तो कहना ही पड़ेगा कि वे बहुत भोले हैं और युग परिवर्तन जैसे गम्भीर विषय को समझने के लिये अयोग्य हैं।
मैंने अपनी सामान्य बुद्धि से तथा प्राचीन भविष्यवाणियों से सहायता लेकर इस विषय पर जितना विचार किया है उससे मुझे यही प्रतीत होता है कि संवत् 2000 एक बड़े महत्व का वर्ष होगा, जिसकी चर्चा इतिहास में सैकड़ों वर्ष तक होती रहेंगी। उसमें जो घटनायें होंगी उनसे युग परिवर्तन की सत्यता सब लोगों पर प्रकट हो जायेगी और यह निश्चित रूप से दिखलाई पड़ने लगेगा कि संसार का मौजूदा रूप अब कायम नहीं रह सकता।
पर यह कहना या ख्याल करना कि संवत् 2000 में सब लड़ाई झगड़े खत्म होकर सुख शान्ति का समय आ जायेगा कतई ठीक नहीं। यह कहना भी कि इस वर्ष में तमाम पापियों का नाश हो जायेगा और केवल धर्मात्मा ही बचे रहेंगे एक ख्याली पुलाव पकाना है। संवत् 2000 में युग परिवर्तन का क्या स्वरूप होगा इसके विषय में कुछ लोगों से बातें करते हुये मेरे दिमाग में एक उपमा आई थी।
वह यह कि संवत् 2000 में नये युग का आगमन उसी प्रकार होगा जिस प्रकार 25 दिसम्बर को बड़ा दिन माना जाता है। अगर किसी साधारण मनुष्य या स्त्री से 28 या 30 दिसम्बर को भी पूछा जाय कि क्या दिन बड़ा हो गया? तो वह कभी इसे ठीक न बतलायेंगे। वे लोग एक डेढ़ महीने बाद ही यह अनुभव कर सकते हैं कि दिन कुछ बड़ा हुआ है और मौसम में भी अन्तर पड़ने लगा है।
इसी प्रकार संवत् 2000 में वर्तमान स्थिति की गम्भीरता और भयंकरता अपनी चरम सीमा पर पहुँच जायेगी, जिससे अधिक बढ़ना सम्भव न होगा। पर इसके बाद भी बहुत समय तक संसार में मार काट और नाश के कार्य होते रहेंगे और कोई सुख की नींद न सो सकेगा। हम यह नहीं कहते कि वर्तमान योरोपीय महासागर अन्त तक इसी तरह चलता रहेगा या महंगाई एक ऐसा ही रूप बना रहेगा। नाश के और भी बहुत से रास्ते हो सकते हैं जिनको गिनाने की यहाँ जरूरत नहीं।
हमारा अनुमान है कि यह नाश का सिलसिला कम से कम पन्द्रह-बीस साल तक भिन्न-भिन्न रूपों में चलता रहेगा जिसके फल से पृथ्वी की आबादी बहुत कम हो जायेगी और किसी के मन में युद्ध का हौंसला शेष न रहेगा। उसके बाद नये सिरे से दुनिया का संगठन होगा जिसमें वर्तमान राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सब प्रकार के विचार बदल जायेंगे और मनुष्यों में मौजूदा समय की अपेक्षा बहुत अधिक एकता और समानता उत्पन्न हो जायेगी। इस कार्य का संचालन ‘अवतार’ करेगा या कोई हमारे जैसा साधारण मनुष्य यह तो मैं नहीं कह सकता पर इतना मुझे दिखलाई पड़ता है कि उस समय तक यूरोपियन देशों की प्रधानता नष्ट हो जायेगी और उनकी जगह अमेरिका दुनिया का नेता माना जाने लगेगा। एशिया के प्रति उसका व्यवहार और आचरण भी योरोप वालों की बनिस्बत मित्रता और सहानुभूति का होगा और इसके फल से संसार में से बहुत समय के लिये आपस की कलह और युद्धों का अन्त होकर एक विश्व संघ की स्थापना हो सकेगी।