कष्ट दान का उद्देश्य

January 1943

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(लेखक श्री रामदयाल जी गुप्त, कोसीकलाँ)

मिथला का राजा चित्र दत्त बड़ा धर्मात्मा था उसकी इच्छा रहती थी कि प्रजा में सदैव धर्म भावनाएं जागृत रहें, सब लोग धर्म कर्म में प्रवृत्त रहें। लेकिन प्रजा की दशा उस समय राजा की इच्छा के विपरीत थी। लोग चोरी, जारी, छल, कपट, अनीति, अन्याय का आचरण करने में अधिक रुचि लेने लगे। चारों ओर पाखण्ड और असत्य का प्रचार बढ़ने लगा।

अपनी प्रजा के ऐसे आचरण देखकर राजा को बड़ा दुख हुआ। उसने सोचा कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि लोक में फैली हुई पाप प्रवृत्ति मिट जाय और लोग धर्माचरण करते हुये सुख शान्ति का जीवन व्यतीत करें। राजा ने अपने प्रमुख अधिकारियों को बुलाया और उनकी सलाह से एक गुप्त मन्त्रणा तैयार कर ली।

दूसरे दिन राजा ने हुक्म दिया कि प्रजा के घरों में आग लगवा दी जाये। आज्ञा पाते ही सिपाही दौड़े और अनेक स्थानों पर आग लगा दी गई। अग्नि की लपटें आकाश को छूने लगी। शहर नगर और गाँवों में प्रलय के दृश्य उपस्थित होने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया प्रजा के बहुत से लोग एकत्रित होकर राजा के पास पुकार करने गये कि-”महाराज यह क्या हो रहा है? हमें इस प्रकार क्यों सताया जा रहा है?”

जो लोग पुकार करने गये थे राजा ने उन सबको पकड़वा कर जेल में बन्द करवा दिया और घोषित कर दिया कि कुछ दिन बाद इन्हें कोल्हू में पिलवा दिया जायेगा। इस भयंकर दण्ड को सुनकर प्रजा में त्राहि-त्राहि मच गई सब लोग ईश्वर को आर्त स्वर से पुकारने लगे। दुख में ऐसा गुण है कि उसके प्रभाव से अनायास ही मनुष्य ईश्वर को याद करता है और धर्म को संभालता है। सब जगह ईश्वर की पुकार होने ली। अधर्म अनीति के कार्य बन्द हो गये। दुख पड़ने पर शैतानी करना लोग भूल जाते हैं।

राजा को यह सब पता लगा। उसे मन ही मन बहुत सन्तोष हुआ। दूसरे दिन उसने यह घोषणा की कि ईश्वर ने मुझे स्वप्न में आदेश दिया है कि 6 महीने तक आग लगवाना और कोल्हू में पेलना स्थगित रखूँ। इसलिये अब पकड़े हुए कैदियों को 6 महीने बाद मर वाया जायेगा और तभी अग्नि काण्ड कराये जायेंगे।

प्रजा ने एक सन्तोष की साँस ली। 6 महीने का समय मिला था। इस समय को लोगों ने धर्म कर्मों द्वारा ईश्वर को प्रसन्न करने की तैयारियाँ की। क्योंकि राजा के कोप से 6 महीने के लिए ईश्वर ने ही बचाया है और उसी की कृपा से आगे भी संकट टल सकता है। घर-घर में भजन कीर्तन, पुण्य-दान, यज्ञ-तप होने लगे। अधर्मी प्रजा विपत्ति की एक ही ठोकर से धर्म की ओर मुड़ पड़ी।

6 महीने पूरे हुये। सब लोग नई घोषणा की प्रतीक्षा में थे। नियत समय पर राजा ने सन्देश दिया कि ईश्वर ने अब 6 महीने का समय और देने को कहा है। अब 6 मास पश्चात सारे देश को उजड़वाऊंगा और तभी कत्ले आम होगा। प्रजा ने सन्तोष की साँस ली। आशा की सुनहरी किरणें दिखाई देने लगी, सम्भव है ईश्वर की कृपा से यह संकट सदा के लिये टल जाये। इस आशा से अधिक ईश्वर भजन और अधिक धर्माचरण होने लगा।

पूरे एक वर्ष तक भयग्रस्त जनता ने धर्माचरण की ओर विशेष ध्यान दिया। जिससे वैसे उत्तम कर्मों की स्वभावतः आदत पड़ गई, बुरे कर्म करना छूट गया। राजा ने प्रजा को धर्मरत देखा तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई। वर्ष के अन्त में उसने प्रजा को बुलाकर कहा-”तुम लोगों को असत् मार्ग से हटा कर सन्मार्ग पर लगाने को यह त्रास दिया गया था। अवश्य ही इसमें बहुत कष्ट उठाना पड़ा, परन्तु आगे उस कष्ट की अपेक्षा अनेक गुना लाभ भी तुम्हें प्राप्त होगा। पिछले वर्ष अग्नि काण्ड में जिसका जितना नुकसान हुआ था वह सब राज्य के खजाने से भरपाई कर लें जावें और जेल में पड़े हुये लोग अपना हर्जाना लेते हुये घर जावें।

प्रजा कुछ समय कष्ट में रही पर अन्त में उसे अपार लाभ हुआ। अधर्म के विष से पीछा छुड़ाकर धर्म का कल्पवृक्ष पाया। आज हमारे ऊपर विपत्तियाँ आई हुई हैं हो सकता है कि सम्राटों का सम्राट अपनी प्राणप्रिय प्रजा को धर्मात्मा और सुखी बनाने के लिये ही यह प्रपंच रच रहा हो।


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